सामान्य ज्ञान

अग्निरेखा
09-Jun-2022 10:33 AM
अग्निरेखा

अग्निरेखा , महादेवी वर्मा का अंतिम कविता संग्रह है, जो मरणोपरांत 1990 में प्रकाशित हुआ था।

अग्निरेखा  में महादेवी वर्मा के अंतिम दिनों में रची गई रचनाएं संग्रहीत हंै, जो पाठकों को अभिभूत करती है और आश्चर्यचकित भी। इस अर्थ में महादेवी के काव्य में ओतप्रोत वेदना और करुणा का स्वर, जो कब से उनकी पहचान बन चुके हंै, इसमें मुखर होकर सामने आता है।

अग्निरेखा  में दीपक को प्रतीक बनाकर अनेक रचनाएं लिखी गई हैं। साथ ही अनेक विष्यों पर भी कविताएं है। महादेवी वर्मा का विचार है कि अंधकार से सूर्र्य नहीं दीपक जूझता है। उन्होंने इसमें लिखा है-

रात के इस सघन अंधेरे में जूझता

सूर्य नहीं, जूझता रहा दीपक।

कौन सी रश्मि कब हुई कंपित,

कौन आंधी वहां पहुंच पायी?

कौन ठहरा सका उसे पल भर,

कौन सी फूंक कब बुझा पायी॥

अग्निरेखा के पूर्व भी महादेेवी वर्मा ने दीपक को प्रतीक मानकर अनेक गीत लिखे हंै- किन उपकरणों का दीपक, मधुर-मधुर मेरे दीपक जल, सब बुझे दीपक जला दूं, यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो, पुजारी दीप कहां सोता है, दीपक अब जाती रे, दीप मेरे जल अकम्पित घुल अचंचल, पूछता क्यों शेष कितनी रात।


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