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1950 का संविधान
25-Jan-2022 11:53 AM
1950 का संविधान

26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान क्रियान्वित हुआ।  संविधान का मूल आधार  जनतंत्र की भावना थी।  जनता में इस भावना का संचार  राष्ट्रीय आंदोलन ने ही किया था।   भारत की संविधान सभा में 389 सदस्य थे।  इनमें 296 ब्रिटिश भारत से और 93 भारतीय रियासतों से थे, लेकिन प्रारंभ में संविधान सभा में केवल ब्रिटिश भारत के ही सदस्य शामिल थे।  इसके लिए जुलाई-अगस्त 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत चुनाव हुए।  सामान्य श्रेणी वाली 210 सीटों में कांग्रेस ने 199 पर विजय प्राप्त की।  कांग्रेस ने पंजाब में 4 सिख सीटों में से 3 जीतीं, वहीं 78 मुस्लिम सीटों में 3 सीटें हासिल कीं, तीन सीटें कुर्ग, अजमेर-मारवार और दिल्ली से प्राप्त हुईं,  इस प्रकार कांग्रेस को कुल 208 सीटें मिलीं। मुस्लिम लीग ने 78 मुस्लिम सीटों में से 73 पर विजय प्राप्त की।

 20 नवंबर, 1946 को संविधान सभा का अधिवेशन बुलाने की घोषणा की गई । इस प्रकार भारत की संविधान सभा का पहला अधिवेशन 9 दिसंबर 1946 को हुआ।  पहले अधिवेशन में 207 सदस्यों ने भाग लिया।  मुस्लिम लीग ने इसमें भाग लेने से इंकार कर दिया।  डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा इसके अस्थायी सदस्य थे।  11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इसके स्थायी सदस्य निर्वाचित हुए। 13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहर लाल  नेहरू ने प्रसिद्ध -उद्देश्य संबंधी प्रस्ताव पेश किया।  15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा एक सार्वभौम संस्था बन गई और साथ ही नए राज्य के लिए एक विधायिका भी।

 संविधान को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने का श्रेय डॉ. भीमराव अंबेडकर को जाता है।  इसलिए उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है। 21 फरवरी 1948 को संविधान सभा में संविधान का प्रारूप पेश किया गया।  विचार विमर्श के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने प्रारूप समिति के प्रस्ताव को पारित कर दिया। इस प्रकार 9 दिसंबर 1946 से लेकर 26 नवंबर 1949 तक संविधान सभा के 11 अधिवेशन हुए। 24 जनवरी 1950 को  संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन हुआ  जिसमें निर्णय लिया गया कि 26 जनवरी 1950 को भारत में नवीन संविधान क्रियान्वित कर दिया जाए। भारत का संविधान बनने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे थे।  नया संविधान लागू होते ही  भारत लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान का मूल चरित्र और दर्शन तैयार किया। साथ ही उन्होंने इसकी प्रत्येक प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेकर एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया।  सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के प्रतिनिधियों को संविधान सभा में लाने में निर्णायक भूमिका अदा की। डॉ . राजेन्द्र प्रसाद को अध्यक्ष के रूप में निष्पक्षता और आत्मसम्मान के लिए यश प्राप्त किया।  मौलाना आजाद ने गंभीर पहलुओं , मुद्दों पर दार्शनिकता का परिचय देते हुए संविधान निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।  संवैधानिक सलाहकार  बी. एन. राऊ ने दूसरे देशों के संविधानों में शोध करके दस्तावेज तैयार किया।  डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान का प्रारूप तैयार किया गया जिसे जनता के बीच बहस और टिप्पिणियों के लिए प्रसारित किया गया और इस तरह से संविधान को अंतिम स्वरूप मिला।


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