सामान्य ज्ञान
इंडेक्स फंड एक इक्विटी म्युचुअल फंड होता है जो स्टॉक में निवेश करता है और कई स्टॉक सूचकांक यानी इंडेक्स से मिलकर बनता है जैसे भारत में बीएसई सेंसेक्स या एनएसई निफ्टी। इसके फलस्वरूप इंडेक्स फंड में निवेश के लिए निवेशकों को किसी विशेषज्ञ की सलाह नहीं लेनी पड़ती है। इनके द्वारा मिलने वाला रिटर्न अन्तर्निहित सूचकांक यानी अंडरलाइंग इंडेक्स द्वारा उत्पादित किए जाने वाले फंड से समीपता से जुड़ा होता है।
यह फंड किसी विशेष इंडेक्स की सिक्योरिटीज में समान अनुपात में निवेश करता है। इनका का लक्ष्य बीएसई सेंसेक्स या निफ्टी जैसे लोकप्रिय सूचकांक होते हैं। ये फंड किसी विशेष सेक्टर पर आधारित भी हो सकते हैं, जैसे फार्मा, आईटी, एफएमसीजी या ऑटो सेक्टर सूचकांक आदि। इन फंडों से बेंचमार्क इंडेक्स के समान ही रिटर्न मिलने की आशा होती है और इनके जोखिम भी उन सिक्योरिटीज के जोखिम के साथ ही जुड़े होते हैं जिनमें ये निवेश करते हैं। जब बाजार नीचे आते हैं तो उसमें शामिल सिक्योरिटीज के मूल्य में भी गिरावट आती है और इसके साथ ही इंडेक्स फंड भी गिरते हैं।
सक्रिय प्रबंधित निधि, यानी एक्टिवली मैनेजमेंट फंड की अपेक्षा इंडेक्स फंड का शुल्क कम होता है। इंडेक्स फंड के उपभाग, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) का मूल्य इंडेक्स फंड की अपेक्षा कम होता है। हालांकि एक्टिवली मैनेज्ड फंड और पैसिव फंड में से किसी एक में निवेश करना बेहतर रहता है, किन्तु किसी निश्चित सीमा में कुछ एक्टिवली मैनेज्ड फंड, इंडेक्स की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते भी दिखे हैं। इंडेक्स फंड सुरक्षित और दीर्घावधि में एक बेहतर विकल्प होता है।
इंडेक्स फंड इक्विटी या डेब्ट दोनों प्रकार के हो सकते हैं। लंबी अवधि और कम जोखिम के निवेशकों के लिए इंडेक्स फंडों को वरीयता दी जाती है। इंडेक्सिंग निवेश का एक ऐसा उपाय है जिसमें किसी विशेष शेयर बाजार बेंचमार्क या इंडेक्स के समान रिटर्न पाने का प्रयास किया जाता है। इस फंड में लक्षित इंडेक्स की लगभग सभी सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है।
इंडेक्स फंड में निवेश से होने वाला लाभ इंडेक्स की तेजी पर निर्भर करता है। यदि लगातार निवेश करते जाते हैं और पैसा नहीं निकालते हैं तो लाभ से निवेश पर संयुक्त मुनाफा मिलता है। लंबी अवधि के निवेश करने में होने वाले लाभ पर टैक्स भी नहीं चुकाना पड़ता है। फंड प्रबंधन के तौर होने वाला खर्च बहुत कम होता है।
फैक्टरी एक्ट
ब्रिटिश काल में भारत में लॉर्ड रिपन के कार्यकाल में 1881 ई. में पहला फैक्टरी एक्ट पारित किया गया। इसके अंतर्गत सात से बारह वर्ष की आयु तक के बच्चों के काम करने के घंटे निश्चित कर दिए गए। और अब उनसे प्रतिदिन अधिक से अधिक नौ घंटे काम लिया जा सकता था। इसके अलावा उद्योगपतियों को खतरनाक मशीनों के चारो ओर जंगला लगवाने के भी आदेश दिए गए। इस अधिनियम का लागू कराने के लिए अधिकारियों की भी नियुक्ति की गई।


