सामान्य ज्ञान
किशनगंगा पनबिजली परियोजना भारत के नेशनल पावर कारपोरेशन द्वारा किशनगंगा नदी पर बनाई जा रही है। किशनगंगा नदी, झेलम की एक सहायक नदी है। पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद किशनगंगा नदी नीलम के नाम से जानी जाती है। इस परियोजना का कार्य वर्ष 1992 में प्रारम्भ किया गया था। किशनगंगा पनबिजली परियोजना की लागत 3 हजार 6 सौ करोड़ रुपए है।
330 मेगावाट की किशनगंगा पनबिजली परियोजना उत्तरी कश्मीर के बांदीपुरा के निकट गुरेज घाटी में स्थित है। केएचईपी की रूपरेखा ऐसे तैयार की गई है जिसके तहत किशनगंगा नदी में बांध से जल का प्रवाह मोडक़र झेलम की सहायक नदी बोनार नाला में लाया जाना है।
किशनगंगा नदी कश्मीर क्षेत्र की एक नदी है। इसका नाम पाकिस्तान में बदलकर नीलम नदी कर दिया गया है। किशनगंगा नदी जम्मू और कश्मीर राज्य के सोनमर्ग शहर के पास स्थित किशनसर झील (कृष्णसर झील) से शुरू होती है और उत्तर को चलती है जहां बदोआब गांव के पास द्रास से आने वाली एक उपनदी इसमें मिल जाती है। फिर यह कुछ दूर तक नियंत्रण रेखा के साथ-साथ चलकर गुरेज़ के पास पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में दाखिल हो जाती है। वहां से पश्चिम की तरफ़ बहकर यह मुज़्जफ़ऱाबाद के उत्तर में झेलम नदी में जा मिलती है। इसके कुल 245 किमी के मार्ग में से 50 किमी भारतीय नियंत्रण वाले इलाक़े में आता है और शेष 195 किमी पाक-अधिकृत कश्मीर में।
किशनगंगा वादी, जिसे पाकिस्तान नीलम वादी कहता है, एक 250 किमी लम्बी हरी-भरी हिमालय की गोद में स्थित तंग घाटी है। यह मुज़्जफ़ऱाबाद से होकर अठमुक़ाम तक जाती है। यहां हिन्दू और बौद्ध धर्मों का ऐतिहासिक शिक्षा संस्थान, शारदा पीठ, स्थित है। यह पूर्व क्षेत्र सरस्वती देवी से सम्बंधित माना जाता था और इसे पुराने ज़माने में शारदादेश भी कहा जाता था।


