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जानए कौन हैं कमल रणदिवे जिनके लिए गूगल ने बनाया है डूडल
08-Nov-2021 1:58 PM
 जानए कौन हैं कमल रणदिवे जिनके लिए गूगल ने बनाया है डूडल

चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं का भी योगदान कम नहीं  है. इसीलिए गूगल ने एक विशेष भारतीय महिला को सम्मानित करने के लिए आज का गूगल डूडल समर्पित किया है. गूगल ने आज का डूडल डॉ कमल रणदिवे के लिए बनाया है जो बायोमेडिकल शोधकर्ता थीं जिन्हें कैंसर के विशेष शोधकार्य के लिए जाना जाता है. इतना ही नहीं वे भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की भी संस्थापक सदस्या थीं. उन्हें विज्ञान और शिक्षा में समानता लाने के प्रयासों के लिए भी जाना जाता है. आज पद्मभूषण से सम्मानित डॉ रणदिवे का 104वां जन्मदिन है.

बचपन से पढ़ाई में तेज
डॉ रणदिवे का जन्म 8 नवंबर 1917 को पुणे में हुआ था. उनके पिता दिनकर दत्तात्रेय समर्थ बायोलॉजिस्ट थे और पूणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ाया करते थे. पिता ने कमल की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया और कमल खुद पढ़ाई में बहुत कुशाग्र थीं. उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में  हुजूरपागा के गर्ल्स स्कूल में हुई थी.

चिकित्सा की जगह जीवविज्ञान
कमल के पिता चाहते थे कि वे चिकित्सा के क्षेत्र में पढ़ाई करें और उनकी शादी एक डॉक्टर से हो, लेकिन कमल ने फर्ग्यूसन कॉलेज में ही जीवविज्ञान के लिए बीएससी की पढाई डिस्टिंक्शन के साथ पूरी की. इसके बाद उन्होंने पूणे के कृषि कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने जेटी रणदिवे से विवाह किया जो पेशे से गणितज्ञ थे जिन्होंने उनकी पोस्ट ग्रोजुएशन की पढ़ाई में बहुत सहायता की थी.

मुंबई में पीएचडी की पढ़ाई
उत्तरोस्नातक में उनका विषय साइनोजेनिक्टस ऑफ एनोकाके था जो साइटोलॉजी की एक शाखा, साइटोलॉजी उनके पिता का भी विषय था. विवाह के बाद कमल मुंबई आने आ गईं जहां उन्होंने  टाटा मेमरियल हॉस्पिटल में काम शुरु कर दिया. और बांबे यूनिवर्सिटी में पीएचडी की पढ़ाई भी करने लगीं.

टिशू कल्चर तकनीक पर काम
पीएचडी पूरी करने के बाद डॉ कमल ने पोस्ट डॉक्टरल शोध के लिए टीशू कल्चर तकनीक पर बाल्टोर की जान हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के जॉर्ज गे की लैब में टीशू कल्चर तकनीक पर काम किया और भारत आकर भारतीय कैंसर रिसर्च सैंटर से जुड़ कर अपने प्रोफेशनल करियर शुरु किया. उन्होंने मुंबई में एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी लैबोरेटरी और टिशू कल्चर लैबोरेटरी की स्थापना में अहम योगदान दिया.

कैंसर पर शोध
डॉ कमल 1966 से लेकर 1970 के बीच में भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र के निदेशक रहीं. यहीं उन्होंने टिशू कल्चर मीडिया और उससे संबंधित रिएजेंट्स विकसित किए. उन्होंने केंद्र में कार्सिजेनोसिस, सेल बायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के शोध शाखाएं खोलीं. उनकी शोध उपलब्धियों में कैंसर की पैथोफिजियोलॉजी पर शोध  प्रमुख था जिससे बल्ड कैंसर, स्तन कैंस और इसोफेगल कैंसर जैसी बीमारियों के कारण पता लगाने में सहायता मिली.

भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा
इसके अलावा उन्होंने कैंसर, हारमोन और ट्यूमर वायरस के बीच संबंधों का पता लगाया. वहां कोढ़ जैसी असाध्य मानी जाने वाली बीमारी का टीका भी उनके शोध के कारण संभव हुआ जो कोढ़ के बैक्टीरिया से संबंधित था.  वे  कैंसर पर काम करने वाली भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए बड़ी प्रेरणा बनीं.

भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा
इसके अलावा उन्होंने कैंसर, हारमोन और ट्यूमर वायरस के बीच संबंधों का पता लगाया. वहां कोढ़ जैसी असाध्य मानी जाने वाली बीमारी का टीका भी उनके शोध के कारण संभव हुआ जो कोढ़ के बैक्टीरिया से संबंधित था.  वे  कैंसर पर काम करने वाली भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए बड़ी प्रेरणा बनीं.

शोधकार्य के अलावा डॉ रणदिवे ने महाराष्ट्र के अहमद नगर में जनजातीय बच्चों के पोषण स्थिति से संबंधित आंकड़ों को जमा करने का का भी किया. इसके साथ  उन्होंने वहां राजपुर और अहमदनगर की ग्रामीण महिलाओं को भी सरकारी परियोजनाओं के जरिए भारतीय महिला संघ के तहत चिकित्सकीय और स्वास्थ्य सहायता प्रदान की. 1982 में उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया.


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