सामान्य ज्ञान
पोलारश्टैर्न जहाज को उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों में भेजने के लिए खास तौर से तैयार किया गया। आज तक दुनिया में ऐसे चुनिंदा जहाज ही बन पाए हैं। पोलारश्टैर्न को दुनिया के बेहतरीन आइसब्रेकर में गिना जाता है। बर्फीले समुद्र में चलने वाले इस तरह के जहाज को आइसब्रेकर कहा जाता है। ए डब्ल्यू आई के पोलारश्टैर्न जहाज की पहली यात्रा 9 दिसंबर 1982 को शुरू हुई। पिछले तीन दशक में इस जहाज को 50 से ज्यादा अभियानों पर भेजा जा चुका है।
जहाज के अंदर नौ प्रयोगशालाएं हैं, जहां बर्फ के नमूने जमा किए जाते हैं। धु्रवों से जानवरों और पौधों के सैम्पल भी लाए जाते हैं । क्रेन और घिरनी की मदद से जहाज पर मशीनें लाई जाती हैं जो बर्फ को नुकसान पहुंचाए बिना नमूने ले सके। साल में लगभग 310 दिन पोलारश्टैर्न अभियान पर बिताता है। नवंबर और मार्च के बीच यह जहाज अंटार्कटिक में घूमता है और जानकारी जमा करता है। रास्ता अधिकतर तूफानी होता है। अभियान के दौरान औसतन तापमान माइनस 15 डिग्री रहता है। इसी में वैज्ञानिकों को नमूने जमा करने होते हैं। इस आधुनिक जहाज पर 50 वैज्ञानिकों और क्रू के 44 सदस्यों के लिए जगह है।


