सामान्य ज्ञान

हरड़
18-Aug-2021 12:20 PM
हरड़

हरड़ का पेड़ पूरे भारत में पाया जाता है। यह एक औषधीय पौधा है। संस्कृत में इसे कई नामों से जाना जाता है। जैसे हरीतकी, अभया, शक्तस्राश्टा, अमृता, नन्दिनी, रोहिणी, जीवन्ती, श्रेयसी, गिरजा आदि।  देश में असम में सबसे ज्यादा हरड़ होता है।  इसके अलावा मध्यप्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश,ओडि़शा में भी यह मिलता है। हिमालय की घाटियों के वनों में हरड़ के पेड़ बहुतायक में मिलते हैं।

आयुर्वेद में हरड़ को सात भागों में बांटा गया है- विजया, रोहिणी, पूतना, चेतकी, अमृता, अभया और जीवन्ती।  विजया हरड़ तोंबी के समान गोल होती है और कोई - कोई लंबी भी मिलती है। रोहिणी हरड़ एकदम गोल होती है।  पूतना हरड़ गुठली वाली होती है। चेतकी के ऊपर तीन लाइनें होती हैं। अमृता नाम वाली हरड़ मोटी होती है। अभया हरड़ के ऊपर पांच लाइनें होती हैं। जीवन्ती हरड़ को बीच से तोडें़ तो वह अंदर से सोने की तरह दिखाई देती है।

सभी प्रकार की हरड़ में विजया हरड़ सबसे गुणकारी होती है। यह आसानी से हर जगह मिल जाती है। हरड़ रुखी और भूख को बढ़ाने वाली होती है। आंखों के लिए फायदेमंद है, हल्की और आयु को बढ़ाने वाली होती है।  पेट के कीड़े, श्वांस रोग, सूजन, उदर रोग,  पेचिश जैसे रोगों के इलाज में इसका उपयोग होता है। यह प्यास और उल्टी को खत्म करने वाली होती है।  इसके अलावा दिल के रोग, हिचकी, खुजली, पीलियादर्द , यकृत के रोग, पथरी, पेशाब की बीमारी और मूत्र घाव को खत्म करती है। हरड़ खट्टी होने से पेट की वायु को खत्म करती है। वैज्ञानिक मतानुसार  हरड़ के फल में चेबुलिनिक एसिड 30 प्रतिशत, टैनिन एसिड 30 से 45 प्रतिशत, गैलिक एसिड़, एन्थ्राक्वीनिन जाति के ग्लाइकोसाइड्स, राल और रंजक पदार्थ पाए जाते हैं। ग्लाइकोसाइड्स कब्ज दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये तत्व शरीर के सभी अंगों से अनावश्यक पदार्थों को निकालकर प्राकृतिक दशा में नियमित करते हैं।


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