सामान्य ज्ञान

जैव विविधता दिवस
22-May-2021 12:30 PM
जैव विविधता दिवस

हर साल 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस मनाया जाता है। इसे  विश्व जैव-विविधता संरक्षण  दिवस  भी कहते हैं। इसका प्रारंभ संयुक्त राष्ट्र संघ ने किया था। 
हमारे जीवन में जैव-विविधता का काफी महत्व है। हमें एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव-  विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए हमें अवसर प्रदान कर सकें। जैव-विविधता  के कमी होने से प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता  है इसलिए  हमारे लिए जैव-विविधता का संरक्षण बहुत जरूरी है। 
प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव-विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव-विविधता  दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। 
नैरोबी में 29 दिसंबर 1992 को हुए जैव-विविधता सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था, किंतु कई  देशों द्वारा व्यावहारिक कठिनाइयां जाहिर करने के कारण इस दिन को 29 मई की बजाय 22 मई को  मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प,  संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव-विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले  खतरों के बारे में जागरूक करना है। 

अमृतसर की संधि  
अमृतसर की संधि 25 अप्रैल, 1809 ई. को रणजीत सिंह और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई। उस समय लॉर्ड मिण्टो प्रथम, भारत का गवर्नर-जनरल था।
इस संधि  के द्वारा सतलज पार की पंजाब की रियासतें अंग्रेज़ों के संरक्षण में आ गईं और सतलज के पश्चिम में पंजाब राज्य का शासक रणजीत सिंह को मान लिया गया। कश्मीर जो रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था, उसे राजा दलीप सिंह से ले लिया गया और अंग्रेज़ों ने उसे गुलाब सिंह को दे दिया। इस समझौते ने एक पीढ़ी तक आंग्ल-सिख संबंध को क़ायम रखा। इस संधि का तात्कालिक कारण नेपोलियन की रुसियों के साथ तिलसित संधि (1807) हो जाने के बाद पश्चिमोत्तर क्षेत्र में फ्रांसीसियों के हमले की आशंका एवं महाराजा रणजीत सिंह के सतलुज राज्यों को अपने नियंत्रण में लाने के संयुक्त प्रयास थे।
अंग्रेज़ फ्रांसीसियों के खिलाफ एक रक्षा संधि चाहते थे और वह ही पंजाब को सतलुज तक नियंत्रित रखना चाहते थे, हालांकि यह एक रक्षा संधि नहीं थी, लेकिन इसने सतलुज नदी को लगभग एक मानक सीमा रेखा के रूप में निश्चित कर दिया। मेटकाफ के इस लक्ष्य ने रणजीत सिंह के मन में कंपनी की अनुशासित सेना और युद्ध न करने के निश्चय के प्रति सम्मान पैदा कर दिया। इसके बाद उनका विजय-अभियान पश्चिम और उत्तर की ओर रहा। गुलाब सिंह लाहौर दरबार का एक सरदार था। इसके बदले में उसने अंग्रेज़ों को दस लाख रुपये दिये।
 


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