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बॉलीवुड में 'किंग ऑफ़ रोमांस' माने जाने वाले सुपरस्टार शाहरुख़ ख़ान दो नवंबर को 55 साल के हो गए हैं.
उनके फैंस के लिए ये दिन जश्न से कम नहीं होता. हर साल हज़ारों की संख्या में शाहरुख़ के फैंस उनके जन्मदिन पर अपने सुपरस्टार की एक झलक के लिए उनके घर 'मन्नत' के सामने घंटों खड़े रहते हैं.
और शाहरुख़ ख़ान भी बिना उन्हें नाराज़ किए अपने चाहने वालों से मुख़ातिब होते है.
लेकिन इस साल कोरोना महामारी के कारण शाहरुख़ ख़ान अपने फ़ैंस से वर्चुअली रूबरू होने जा रहे हैं.
टीवी के सुनहरे दौर में एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले शाहरुख़ ख़ान ने फ़ौजी और सर्कस से अपने करियर की शुरुआत की थी.
अपने 30 साल के फ़िल्मी करियर में शाहरुख़ ख़ान ने कई यादगार फ़िल्में दी हैं जिन्होंने हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री पर गहरी छाप छोड़ी है.
फ़िल्म मामलों के जानकार और इतिहासकार अमृत गंगर ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में शाहरुख़ ख़ान की कुछ चुनिंदा फ़िल्मों के बारे में बात की जिसने शाहरुख़ ख़ान को एक अलग तरह का सुपरस्टार बनाया.

दिव्या भारती और ऋषि कपूर के साथ 'दीवाना' फ़िल्म से कदम रखने वाले शाहरुख़ ख़ान ने 1993 में कुछ ऐसी फ़िल्में की जो उस दौर के हीरो नहीं किया करते थे.
निर्देशक अब्बास-मस्तान की फ़िल्म 'बाज़ीगर' में शाहरुख़ ख़ान ने ऐसे हीरो का किरदार निभाया जो अपनी हेरोइन (शिल्पा शेट्टी) को मार डालता है.
वहीं, यश चोपड़ा की 'डर' में शाहरुख़ ख़ान ने एकतरफ़ा प्यार के जुनूनी आशिक़ का किरदार निभाया था जो अपने जुनून में किसी भी हद तक जा सकता था. "आई लव यू.....क.....क ...क... किरण" डायलॉग आज भी वो 'डर' कायम करता है.
अमृत गंगर कहते हैं, "बाज़ीगर के साथ शाहरुख़ ख़ान ने एक शातिर किस्म के हीरो को लॉन्च किया. उसी साल शाहरुख़ ख़ान ने 'डर' में नकारात्मक क़िरदार किया जो उस दौर के परंपरागत हिंदी फ़िल्म हीरो के लिए एक टैबू यानी वर्जित बात माना जाता था.
पर शाहरुख़ ख़ान ने लीक से हटकर नकारात्मक भूमिकाएं जारी रखते हुए फ़िल्म 'अंजाम' में जुनूनी प्रेमी किरदार निभाया जो अपनी प्रेमिका (माधुरी दीक्षित) का पीछा करता है और उसे अग़वा करता है.
जहाँ 'बाज़ीगर' के लिए शाहरुख़ ख़ान को फ़िल्मफ़ेयर का पहला बेस्ट एक्टर अवॉर्ड मिला. वहीं, 'अंजाम' के किरदार के लिए शाहरुख़ ख़ान को फ़िल्मफेयर बेस्ट विलेन का अवॉर्ड भी मिला."

अमृत गंगर का मानना है कि 19वीं सदी के दो फ्रेंच और रूसी उपन्यासों का शाहरुख़ ख़ान के फ़िल्मी करियर में बतौर अभिनेता बहुत बड़ा योगदान है.
महान रूसी उपन्यासकार फ्योदोर दोस्तोवस्की के 19वीं सदी के यादगार उपन्यास 'द इडियट' पर आधारित टीवी फ़िल्म में शाहरुख़ नज़र आए. उस दौर के जाने-माने निर्देशक मणि कौल ने ये फ़िल्म बनाई थी.
निर्देशक मणि कौल नौजवान शाहरुख़ ख़ान के अभिनय की समझ से इतना प्रभावित हुए कि वो शाहरुख़ के साथ एक फ़िल्म बनाना चाहते थे जो उनकी अभिनय क्षमता की एक बहुत बड़ी पहचान थी.
वहीं, केतन मेहता की फ़िल्म 'माया मेमसाब' भी 19वीं सदी के फ्रांसीसी उपन्यासकार गुस्ताव फ्लॉबेर्ट के उपन्यास 'मदाम बोवेरी' पर आधारित थी जिसमे शाहरुख़ ने अहम भूमिका निभाई. इस फ़िल्म में उनके अभिनय की बहुत तारीफ़ हुई.

'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' और 'किंग ऑफ़ रोमांस' का जन्म
हाल ही में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' ने अपनी रिलीज़ के 25 साल पूरे किए. इस फ़िल्म को हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की सबसे रोमांटिक फ़िल्म कहा जाता है. 1995 में आई इस फ़िल्म ने कई रिकॉर्ड तोड़े और रातों-रात शाहरुख़ ख़ान को सुपरस्टार बना दिया.
'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे' में शाहरुख़ की ऐक्टिंग पर अमृत गंगर कहते हैं, "शाहरुख़ के अभिनय में कुछ ऐसी खूबियां थीं जो पहले कभी देखी नहीं गई थी. एक किस्म की दिलेरी थी, संवेदनशीलता भी थी. जहाँ होठों पर अनूठे भाव थे, वहीं, डायलॉग डिलीवरी में एक एक्सपेरिमेंट था. एक नौजवान और शरारती लड़के का आचरण भी था. 'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे' ने एक नए किस्म के सिनेमा को जन्म दिया. जहाँ भारत नई मार्केट इकॉनोमी और उपभोक्तावाद के लिए खुल रहा था, अधिक से अधिक माध्यम वर्गीय भारतीय परिवार विदेश यात्रा कर रहे थे. जहाँ नई पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति अपना रही थी और पुरानी पीढ़ी परंपरा की ललक में थी, उसी दौरान शाहरुख़ खान इन सब बदलावों का एक सिम्बॉलिक चेहरा बनकर उभरे."
'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे' की सफलता के बाद शाहरुख़ कुछ ऐसी रोमांटिक फ़िल्मों का हिस्सा बने जिससे वो 'किंग ऑफ़ रोमांस' माने गए. इन फ़िल्मों में शामिल है यश चोपड़ा की 'दिल तो पागल है', सुभाष घई की फ़िल्म 'परदेस' और करण जौहर की फ़िल्म 'कुछ कुछ होता है' जिसमें एक बार फिर 'दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे' की जोड़ी शाहरुख़ ख़ान और काजोल साथ नज़र आए जिसे दर्शकों ने बहुत प्यार दिया.
वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रम्हात्मज ने बताया कि इसी दौरान ट्विंकल खन्ना के साथ आई फ़िल्म बादशाह के बाद शाहरुख़ ख़ान को 'बादशाह ख़ान' या 'किंग ऑफ़ बॉलीवुड' के नाम से बुलाया जाने लगा. हालाँकि बादशाह फ़िल्म फ़्लॉप रही.
शाहरुख़ का रोमांटिक अवतार बड़े पर्दे पर जारी रहा. आदित्य चोपड़ा की फ़िल्म 'मोहब्बतें' में वो अमिताभ बच्चन के विरुद्ध प्रेम की लड़ाई में नज़र आए जो दर्शकों को बहुत पसंद आया. करण जौहर ने 2001 में तीन पीढ़ी के अभिनेता अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान और नई पीढ़ी के नए अभिनेता ऋतिक रोशन को फ़िल्म 'कभी खुशी कभी ग़म' में साथ लाकर दर्शकों को एक ब्लॉकबस्टर दिया.
1995 में शाहरुख़ ख़ान निर्देशक-निर्माता प्रेम लालवानी की फ़िल्म 'गुड्डू' का हिस्सा बने जिसके पैसे से उन्होंने मुंबई में अपना पहला फ्लैट लिया. 2001 में शाहरुख़ ने महज़ 13.32 करोड़ में बांद्रा के समुद्र किनारे वाला 'विला वियना' लिया जिसका नाम जन्नत रखा. इस घर में आने के बाद उनके सभी मन्नतें पूरी होने लगी तो उन्होंने घर का नाम बदल कर मन्नत रख दिया.
2012 में शाहरुख़ ख़ान यश चोपड़ा की आख़री फ़िल्म 'जब तक है जान' में नज़र आए. फ़िल्म हिट हुई पर यश चोपड़ा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. शाहरुख़ ख़ान-यश चोपड़ा की अभिनेता-निर्देशक की जोड़ी पर विराम लग गया. शाहरुख़ को 'किंग ऑफ़ रोमांस' बनाने में यश चोपड़ा की फ़िल्मों का बहुत बड़ा योगदान रहा. इन फ़िल्मों में शामिल थी 'दिल तो पागल है', 'वीर ज़ारा' और 'जब तक है जान.'
दिलीप कुमार साहब की 1955 में बनी फ़िल्म 'देवदास' की यादें ताज़ा करते हुए 2003 में शाहरुख़ ख़ान संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित 'देवदास' में ऐश्वर्या राय बच्चन और माधुरी दीक्षित के साथ नज़र आए.
फ़िल्म को बहुत वाहवाही मिली. शाहरुख़ ख़ान का रोमांटिक हीरो की छवि बरक़रार रही फ़िल्म 'कल हो ना हो', 'चलते-चलते', 'वीर ज़ारा' से.
2006 में शाहरुख़ ख़ान नई पीढ़ी के लेखक निर्देशक फ़रहान अख़्तर की फ़िल्म 'डॉन' में नज़र आए. ये फ़िल्म महानायक अमिताभ बच्चन की 1978 में बनी हिट फ़िल्म 'डॉन' की रीमेक थी. शाहरुख़ को एक बार फिर दर्शकों ने नकारात्मक किरदार में अपनाया और फ़िल्म हिट हुई. ये फ़िल्म शाहरुख़ ख़ान के लिए उनकी रोमांटिक हीरो की छवि को बदलने वाली फ़िल्म बनी जिसे दर्शकों ने पसंद किया.

निर्देशक करण जौहर शाहरुख़ खान और काजोल की जोड़ी एक बार फिर साथ आई फ़िल्म 'माई नेम इज़ ख़ान' जिसमें शाहरुख़ ख़ान एस्पर्गर्स सिंड्रोम से जूझ रहे रिज़वान खान के किरदार में नज़र आए. 2010 में बनी इस फ़िल्म को अमृत गंगर आज भी प्रासंगिक मानते हैं.
वो कहते हैं, "इस फ़िल्म में शाहरुख़ ने मुस्लिम किरदार रिज़वान खान से बतौर अभिनेता अपना कौशल दिखलाया है. यह एक मेलोड्रामा थी जो विभिन्न देश, महाद्वीप और धर्म को दर्शाते हुए मानवतावादी संदेश के साथ-साथ सहनशीलता और एकता का संदेश देती है. जहाँ पूरा विश्व कोरोना से प्रभावित है और अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं, ये फ़िल्म आज के दौर में भी प्रासंगिक है."
फ़िल्म इंडस्ट्री के तीन बड़े ख़ान शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान और आमिर ख़ान 2015 में 50 वर्ष के हुए. ये हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के पहली पीढ़ी थी, जो 50 की उम्र में भी हीरो का किरदार निभा रही थी. वो हीरोइनों के साथ रोमांस कर रहे थे, और दर्शकों ने इनके बढ़ते उम्र को तवज्जो नहीं दी.
शाहरुख़ और काजोल एक साथ दोबारा 2015 में रोहित शेट्टी की लव एक्शन फ़िल्म 'दिलवाले' में नज़र आए पर फ़िल्म वो जादू नहीं दिखा पाई जो शाहरुख़-काजोल की पहले आई फ़िल्मों ने दिखाई थी.
नई पीढ़ी के निर्देशक मनीष शर्मा की 2016 में आई फ़िल्म 'फ़ैन' में शाहरुख़ अपने खुद के फैन गौरव चांदना के किरदार में नज़र आए. शाहरुख़ का ये बदला हुआ रूप दर्शकों को बहुत पसंद आया.
2017 में शाहरुख़ ने राहुल ढोलकिया की निर्देशित फ़िल्म 'रईस' में नज़र आए. ये किरदार उनकी छवि से बिलकुल हटकर था. फ़िल्म में शाहरुख़ नए दौर के अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के सामने दिखे जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया. फ़िल्म के डायलॉग भी बहुत पॉपुलर हुए जिसमें शामिल है, "कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धरम नहीं होता", "बनिए का दिमाग और मियाँ भाई की डेरिंग."
शाहरुख़ खान 2017 में निर्देशक इम्तियाज़ अली की फ़िल्म 'हैरी मेट सेजल' और 2018 में आनंद राय की फ़िल्म 'ज़ीरो' में नज़र आए. दोनों फ़िल्में दर्शकों को नहीं पसंद आई.
अमृत गंगर कहते हैं, "शाहरुख़ ने अपने करियर में बहुमुखी प्रतिभा दिखलाते हुए कई विभिन्न किरदार और शैली को पार कर अपने आप को एक बेहतर अभिनेता साबित किया और सुपरस्टार बने. इसकी चमक आज भी बरक़रार है."(bbc)


