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रत्ना पाठक शाह क्यों मानती हैं कि आज एक्टिंग सिखाने वाले कहीं नहीं हैं
02-Aug-2025 10:03 PM
रत्ना पाठक शाह क्यों मानती हैं कि आज एक्टिंग सिखाने वाले कहीं नहीं हैं

जानी-मानी अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह कहती हैं कि उनकी जिंदगी में प्लान के मुताबिक तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन जो कुछ हुआ बहुत ख़ूबसूरत और दिलचस्प हुआ।

वह कहती हैं, ‘ये जिंदगी जो मुझे बख़्शी गई है, वह मुझे ऐसी लगती है, जैसे किसी की दुआ लगी हो। मुझे हमेशा बढ़ते रहने का अवसर मिलता रहा।’

उनका कहना है कि जि़ंदगी ने उन्हें बहुत नेमतें दी हैं। इनमें उनके माता-पिता, उनका परिवार और साथ काम करने वाले लोग शामिल हैं।

बीबीसी हिंदी की खास पेशकश ‘कहानी जिंदगी की’ में इस बार अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने अपनी जिंदगी के कई अहम पलों को इरफान के साथ साझा किया।

रत्ना पाठक का परिवार कैसा था

रत्ना पाठक शाह बताती हैं कि उनके परिवार में किसी तरह की रोक-टोक नहीं थी। उनका परिवार स्वीकार करने वाला और प्रोत्साहित करने वाला था।

वह कहती हैं, ‘कभी भी एजुकेशन पर रोक नहीं लगाई गई। लडक़ी हो इसलिए आप यह कर सकती हो, वह नहीं कर सकती हो, ये भी सवाल नहीं उठे। इसके उलट यह कहा कि तुम यह कर सकती हो, कोशिश क्यों नहीं करती हो?’

वह कहती हैं कि परिवार से मिलने वाले इस तरह के सपोर्ट के कारण उन्होंने बचपन में सामने आने वाली चुनौतियों का आसानी से सामना किया और आगे बढ़ पाईं।

रत्ना पाठक के मुताबिक, प्रोफेशनल जीवन में सामने आने वाली चुनौतियों या बुरे वक्त से काफी तकलीफें होती हैं क्योंकि वहाँ सहारा कम होता है।

बहुत निगेटिव रिव्यू मिले

प्रोफेशनल जीवन में रत्ना पाठक के सामने भी चुनौतियां आईं। वह बताती हैं कि उन्हें निगेटिव रिव्यूज़ बहुत मिले।

‘कई बार तो लोगों ने ये भी कहा कि इसको बार-बार लिया क्यों जा रहा है? शायद वह फ़लां की बीवी है या फ़लां की बेटी है। लेकिन वहाँ भी मुझे बहुत सपोर्ट देने वाले इंसान मिल गए।’

उन्हें सपोर्ट करने वाले वे शख्स सत्यदेव दुबे और नसीरुद्दीन शाह थे।

रत्ना पाठक बताती हैं कि सत्यदेव दुबे ने उन्हें बहुत चीजों में राह दिखाई और बार-बार उन्हें चुनौती वाले काम देते रहे।

वह कहती हैं, ‘नसीर ने बहुत साथ दिया। किस तरह की एक्टिंग मैं करना चाहती हूँ? वह किस तरह से करूं? वह समझाने में भी दुबे और नसीर इन दोनों की मुझे बहुत मदद मिली।’

रत्ना पाठक कहती हैं कि उन्हें हर मोड़ पर राह दिखाने वाले लोग मिले और वकत के साथ उन्हें अपने तरह का काम मिलने लगा।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा जाकर निराश हुई थीं रत्ना?

रत्ना पाठक ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में तीन साल पढ़ाई की है।

वह कहती हैं, ‘मैं जो तीन साल थी, मैंने वहां बहुत कुछ सीखा। उन तीन सालों में कोई स्पेशलाइजेशन नहीं था। हम लोग एक कॉमन कोर्स करते थे और मुझे लगता है कि वह मेरे लिए सबसे फायदेमंद रहा।’

हालांकि, वह बताती हैं कि एनएसडी में उनके वक़्त के दौरान और आज भी एक्टिंग का उनका कोई टीचर नहीं रहा है।

रत्ना पाठक बताती हैं, ‘हमारे साथ अलग-अलग डायरेक्टर्स आकर काम करते थे, जो बहुत दिलचस्प था क्योंकि इससे हमें अलग-अलग थिएटर अप्रोचेज़ देखने का मौका मिला। जब मैं वहाँ थी तो एनएसडी स्कूल की तरह चल रहा था, लेकिन एक्टिंग के मामले में बहुत बड़ा खड्डा रहा और ये खड्डा अभी तक नहीं भरा गया।’

अपने एनएसडी के दिनों में एक्टिंग सिखाने को लेकर वह कहती हैं, ‘वहाँ तो ऐसा था कि कोई भी अच्छा एक्टर गुजर रहा हो, तो उसे पांच मिनट बैठाकर वर्कशॉप करा दिया। किसी ने आकर के कुछ सुना दिया, किसी ने आकर बिल्कुल विपरीत ही कुछ और दिखा दिया, ये सब चलता रहा।’

एक्टिंग पढ़ाने और पढऩे का तरीका

रत्ना पाठक शाह के मुताबिक एक्टिंग को पढ़ाने के तरीके क्लियर नहीं हैं। वह कहती हैं कि इसको लेकर बहुत गलतफहमियां हैं और इसमें वह मनगढ़ंत थ्योरीज सुनती आई हैं।

उनका ये मानना है कि एक्टिंग कहीं भी सही ढंग से नहीं सिखाई जा रही है, न भारत में और न ही विदेशों में।

रत्ना पाठक शाह के मुताबिक-‘एक एक्टर का काम है कि वह लेखक की बात दर्शकों तक पहुंचाए। डायलॉग को डायलॉग न दिखा कर बोलचाल की भाषा कैसे बनाए। जिससे कि ऐसा न लगे कि वह लेखक का लिखा पर्चा पढ़ रहा है, बल्कि ऐसा लगे कि वह जो बोल रहा है, वह उसके दिल और दिमाग से पैदा हो रहा है।’

वह कहती हैं कि उसके लिए एक अच्छी जबान होनी चाहिए। एक एक्सप्रेसिव शरीर होना चाहिए और दिल-दिमाग की तैयारी होनी चाहिए। रत्ना पाठक कहती हैं कि उनकी एक्टिंग के एक टीचर से यही अपेक्षा रहेगी कि वह इन चीजों में मदद करे।

साथ ही, वह यह भी कहती हैं, ‘एक्टिंग सिखाई नहीं जा सकती, वह आपको सीखनी पड़ती है, इस प्रोसेस में स्टूडेंट का जो कॉन्ट्रिब्यूशन है, वह जरूरी है। एक्टिंग के स्टूडेंट के लिए ये जरूरी है कि वह ख़ुद को कैसे तैयार कर रहा है।’

रत्ना पाठक ने अपने बाल डाई करना क्यों छोड़ा?

रत्ना पाठक कहती हैं, ‘एक एक्टर के लिए अपनी उम्र को एक्सेप्ट करना मुश्किल चीज है। लेकिन जिंदगी में जो होना है, उससे इंसान कब तक बचेगा?’

रत्ना पाठक बताती हैं कि इसी के मद्देनजर और नसीरुद्दीन शाह ने भी उनसे कहा कि वह अपने बाल डाई करना छोड़ दें।

वह कहती हैं, ‘मैं आपको बता नहीं सकती कि इससे कितनी राहत मिली।’

हालांकि, उन्हें लगता है बाल डाई करना छोडऩे के कारण उन्हें काम मिलने पर असर पड़ा।

वह कहती हैं, ‘मेरे अपोजिट जो मेल एक्टर्स काम कर सकते हैं, वह अभी भी अपने बाल डाई कर रहे हैं। तो अब मेरे सामने कौन आएगा? मैं दादी-नानी के ही कैटेगरी में आ गई और हमारी फिल्मों में दादी-नानी का रोल क्या होता है? जब हीरोइन को ही रोल नहीं देते तो दादी-नानी को क्या देंगे? इसके बावजूद मुझे अच्छे-खासे रोल मिले हैं।’

ओटीटी की किस बात से ख़ुश हैं रत्ना पाठक

रत्ना पाठक शाह का मानना है कि ओटीटी ने राइटर्स, डायरेक्टर्स को नया सोचने के लिए मजबूर किया है।

वह कहती हैं, ‘ओटीटी पर लोग हजार देशों की चीज़ें देखते हैं और पहचानते हैं कि क्या कहाँ से चोरी हो रहा है। अब सब चोरी पकड़ी जा रही है। अब सब को ओरिजिनल सोचना पड़ रहा है।’

उनके मुताबिक ओटीटी ने एक काम तो कर दिया कि अब सिर्फ एक तरह की चीजें बार-बार ऑडियंस को नहीं दिखाई जा सकती हैं, अब नया सोचना पड़ेगा।

रत्ना पाठक का मानना है कि ओटीटी के कारण नए राइटर्स, नए डायरेक्टर्स आए हैं। मुंबई के बाहर से जो डायरेक्टर्स आ रहे हैं, वे नये आइडियाज़ और नया अंदाज़ लेकर आ रहे हैं।

नसीरुद्दीन शाह के बयानों पर क्या सोचती हैं रत्ना पाठक

रत्ना पाठक शाह ने अपने पति नसीरुद्दीन शाह के कुछ बयान के कारण उन पर निशाना साधे जाने पर भी खुलकर अपनी बात रखी।

वह कहती हैं, ‘हमारे आसपास जो हो रहा है, उससे बहुत लोग आँखें मूँद कर चल सकते हैं। कुछ लोग आँखें मूँद कर नहीं चल पाते तो उनको भुगतना पड़ता है। अगर उनमें हिम्मत होती है, तो उन्हें इसके खिलाफ भी भुगतना पड़ता है। फिर उसका रिएक्शन भी देखना पड़ता है। लेकिन अगर आपकी बात में कुछ सच्चाई है और अगर आपका इरादा ग़लत नहीं है, तो फिर सामने वाला सुनता है।’

रत्ना पाठक शाह कहती हैं कि ट्रोल्स तो पेड होते हैं, तो उनकी बातों पर क्यों गौर किया जाए और वह तो अपना धंधा कर रहे हैं।

फिल्मों में ‘अल्फा मेल’ के किरदार पर क्या सोचती हैं रत्ना पाठक

रत्ना पाठक शाह कहती हैं कि फिल्मों में हर तरह के कैरेक्टर दिखाने होते हैं, लेकिन इसमें ये भी अहम है कि हम उन किरदारों को कैसे पेश करते हैं।

वह कहती हैं, ‘अगर एक अल्फा मेल को दिखाते हुए उसे सिर पर चढ़ाया जा रहा है, तो उससे मुझे तकलीफ है, लेकिन अल्फा मेल के साथ-साथ उसके ऑपोजि़ट स्वरूप भी दिखा रहे हैं, तो ठीक है। ताकि एक ऑडियंस के तौर पर मैं डिसीजन ले सकूं कि मैं किस तरह के इंसान को सही समझती हूँ।’

रत्ना पाठक को आज की उन फिल्मों से तकलीफ है, जिनमें पितृसत्ता को ग्लोरिफाई करने की कोशिश हो रही है।

वह कहती हैं, ‘किसी भी समाज में हमेशा से किसी भी बदलाव को लेकर एक कदम आगे बढक़र दो क़दम पीछे जाना हमेशा से रहा है, अब भी वैसा ही हो रहा है। 70, 80 और 90 के दशक में औरतों ने जद्दोजहद करके अपने लिए जो हक कायम किए थे, वे आज फिर से डाँवाडोल हो रहे हैं। फिर से जंग लडऩी पड़ेगी और इस बार उम्मीद है कि बहुत सारे मर्द भी साथ आएँगे।’ (bbc.com/hindi)


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