मनोरंजन

पश्चिम बंगाल: टॉलीवुड में अभिनेत्रियों की 'खुदकुशी' के बढ़ते मामले, ग्लैमर के पीछे का सच क्या है
12-Jun-2022 10:06 AM
पश्चिम बंगाल: टॉलीवुड में अभिनेत्रियों की 'खुदकुशी' के बढ़ते मामले, ग्लैमर के पीछे का सच क्या है

इमेज स्रोत,PALLAVI SOCIAL MEDIA PAGE


-प्रभाकर मणि तिवारी

"मैं अभिनेत्री पल्लवी डे की मौत के बाद अपनी बेटी को लेकर आशंकित हो गया था. वह भी पल्लवी की तरह अकेली रहती थी. ऐसे में वह कहीं कोई ग़लत फ़ैसला न ले ले."

कोलकाता की उभरती मॉडल विदिशा डे मजूमदार के पिता विश्वजीत डे मजूमदार बताते हैं कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी भी संघर्ष से घबरा कर पलायन का रास्ता चुन लेगी.

वह बताते हैं कि पल्लवी की मौत की ख़बर सुनने के बाद विदिशा की मां बहुत परेशान हो गई थीं और उन्होंने विदिशा से अपने मन का डर भी जताया था.

लेकिन तब विदिशा ने कहा था, "अरे! पल्लवी ने बेवकूफी की है. मैं बहुत मजबूत लड़की हूं. आप एकदम बेफ्रिक रहें. मैं ऐसा नहीं करूंगी."

लेकिन ऐसा कहने वाली उस लड़की ने महज दस दिनों बाद ही अपनी इहलीला ख़त्म कर ली. उसके ठीक दो दिन बाद विदिशा की सहेली और एक अन्य मॉडल मंजूषा नियोगी ने भी इसी तरीके से अपनी जान दे दी.

मंजूषा की मां बताती हैं, "विदिशा की मौत के बाद से ही मेरी बेटी गहरे मानसिक अवसाद में थी और बार-बार उसी का ज़िक्र कर रही थी."

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में मई के आखिरी दो हफ़्तों के दौरान छोटे परदे की तीन उभरती अभिनेत्रियों और एक मॉडल की मौत से टॉलीवुड के नाम से मशहूर बांग्ला फिल्मोद्योग में चिंता का माहौल है.

इनमें से ज्यादातर मामलों को फिल्मी दुनिया की चमक-दमक के नीचे पसरे अंधेरे और संघर्ष में नाकामी से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि एकाध मामलों में असफल प्रेम प्रसंग को कारण बताया जा रहा है.

लेकिन इन चारों की मौत की मूल वजह मानसिक अवसाद ही है, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है. लेकिन अब ज़यादातर लोग इन घटनाओं के बारे में खुल कर बात नहीं करना चाहते.

आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार के जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.

इन घटनाओं ने फिल्मों में रातों रात कामयाब होने की जद्दोजहद, संघर्ष और पलायन को सतह पर ला दिया है. एक पखवाड़े के भीतर हुई इन चार मौतों ने बांग्ला फिल्म और धारावाहिकों की दुनिया को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

वैसे आम धारणा यही है कि बाहरी चमक से प्रभावित होकर तमाम लड़कियां इसकी ओर आकर्षित होती हैं. लेकिन भीतर की कालिख और कीचड़ देख कर उनके सपने जल्दी ही टूट जाते हैं.

फिल्मोद्योग से जुड़े लोगों के अलावा मनोवैज्ञानिको ने भी इन पर गहरी चिंता जताई है और इससे सबक लेकर एहतियाती उपाय करने का अनुरोध किया है ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति रोकी जा सके.

मोटे अनुमान के मुताबिक हर साल बंगाल में छोटे परदे पर बनने वाले धारावाहिकों पर सौ करोड़ की रकम ख़र्च की जाती है. लेकिन कोरोना काल के दौरान लंबे समय तक शूटिंग बंद होने के कारण इस उद्योग को भारी नुकसान झेलना पड़ा है और रोजगार के मौके भी कम हो गए हैं.

पहले भी हुई हैं मौतें
वैसे, बांग्ला फिल्मोद्योग में खासकर युवा अभिनेत्रियों की रहस्यमय मौतों का सिलसिला काफी लंबा है. वर्ष 1985 में मशहूर अभिनेत्री महुआ राय चौधरी की रहस्यमय हालात में जल कर मौत हो गई थी.

वर्ष 2015 में एक उभरती अभिनेत्री दिशा गांगुली का शव भी उसके फ्लैट का दरवाजा तोड़ने के बाद बरामद हुआ था. वर्ष 2016 में अभिनेत्री पूजा आइच की मौत भी रहस्यमय परिस्थितियों में हो गई थी. वर्ष 2017 में अभिनेत्री बितस्ता साहा की उसके फ्लैट में मौत हो गई थी.

वर्ष 2018 में अभिनेत्री पायल चक्रवर्ती की मौत सिलीगुड़ी में एक होटल के कमरे में हो गई थी. इसी तरह वर्ष 2020 में अभिनेत्री आर्या बनर्जी का शव उसके फ्लैट का दरवाजा तोड़ कर बरामद किया गया था.

आर्या ने लव, सेक्स और धोखा और द डर्टी पिक्चर के अलावा कई अन्य फिल्मों में काम किया था. इन अभिनेत्रियों की रहस्यमय हालात में मौत के बाद फिल्मोद्योग में कुछ दिनों तक तो उसी तरह हलचल रही जैसे ठहरे पानी में पत्थर फेंकने पर होती है. लेकिन बाद में सब कुछ जस का तस हो गया.

हाल की घटनाएं
सबसे पहले छोटे पर्दे की उभरती अभिनेत्री पल्लवी डे ने अपने घर पर गले में फंदा डालकर आत्महत्या कर ली. बीती 15 मई को उनका शव बरामद किया गया था. तब वे अपने लिव-इन पार्टनर साग्निक चक्रवर्ती के साथ रह रही थीं.

लेकिन उनका शव बरामद होने के बाद परिजनों ने हत्या का आरोप लगाया था. पल्लवी के पिता की शिकायत के आधार पर पुलिस ने दो दिनों बाद सांग्निक को गिरफ्तार कर लिया.

फिलहाल पल्लवी छोटे परदे के बांग्ला धारावाहिक मन माने ना (मन नहीं मानता) में मुख्य भूमिका निभा रही थी. उन्होंने आमी सिराजेर बेगम (मैं सिराज की बेगम हूं), रेशमा जापी, कुंजो छाया और सरस्वती प्रेम जैसे धारावाहिकों में भी अहम भूमिका निभा चुकी थीं.

पल्लवी की मौत पर एक अन्य अभिनेत्री विदिशा डे मजूमदार ने हैरत जताते हुए अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था, "यह क्या है? मैं इस पर भरोसा नहीं कर पा रही हूं."

लेकिन दस दिन बाद यानी 25 मई को विदिशा ने भी आत्महत्या कर ली. उनका शव भी कोलकाता के दमदम इलाके में स्थित फ्लैट से बरामद किया गया.

उसके बाद 27 मई को विदिशा की एक नजदीकी मित्र मंजूषा नियोगी ने भी इसी तरीक़े से आत्महत्या कर ली. मंजूषा बांग्ला धारावाहिक कांची में काम कर रही थी.

उसके बाद सरस्वती दास नामक एक उभरती मॉडल ने भी इसी तरीक़े से जान दे दी. उसने इसी साल दसवीं की परीक्षा दी थी और साथ ही मॉडलिंग की दुनिया में पांव जमाने का भी प्रयास कर रही थी.

कोलकाता पुलिस का क्या कहना है
पुलिस के मुताबिक, सरस्वती नाकाम प्रेम प्रसंग के कारण मानसिक अवसाद में थी. कोलकाता पुलिस के एक अधिकारी कहते हैं, "मंजूषा मनोरंजन उद्योग में खुद को शीघ्र स्थापित करना चाहती थी. लेकिन संभवतः उम्मीद के अनुरूप कामयाबी नहीं मिलने के कारण वह अवसाद में थी."

उन अधिकारी का कहना था कि मंजूषा ने अपने पति व घरवालों से भी मानसिक अवसाद का जिक्र किया था. वह पहले भी आत्महत्या का प्रयास कर चुकी थी. लेकिन तब एक मित्र ने उसे बचा लिया था.

एक पखवाड़े के भीतर हुई इन चार मौतों ने बांग्ला फिल्म और धारावाहिकों की दुनिया को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

कहा जा रहा है कि बाहरी चमक से प्रभावित होकर तमाम लड़कियां इसकी ओर आकर्षित होती हैं. लेकिन भीतर की कालिख और कीचड़ देख कर उनके सपने जल्दी ही टूट जाते हैं. पहले उनको सिर्फ इसकी चमक-दमक ही नजर आती है

बांग्ला अभिनेत्री इंद्राणी हालदार कहती हैं, "शुरुआत में फिल्मोद्योग कइयों के लिए निर्मम साबित हो सकता है. कई बार लंबे समय तक काम नहीं मिलता. वह दौर बेहद मुश्किल होता है. मैं भी उससे गुजर चुकी हूं. लेकिन मेरे मन में कभी आत्महत्या का ख्याल तक नहीं आया था."

धारावाहिकों के निर्माण से जुड़े सुप्रियो कहते हैं, "फिल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर इसमें कदम रखने वाले युवा अचानक मिले नाम, दाम और व्यस्तता को पचा नहीं पाते. कोविड के कारण ज्यादातर लोगों के लिए काम का अकाल पड़ गया था क्योंकि नई फिल्में या धारावाहिक नहीं बन रहे थे. इससे खास कर नए लोगों में हताशा और असुरक्षा की भावना पैदा हो गई."

मानसिक अवसाद
क्या बांग्ला फिल्म और टेलीविजन उद्योग में मानसिक अवसाद की समस्या हकीकत में गंभीर होती जा रही है? पल्लवी दे के लिव-इन पार्टनर साग्निक ने पुलिस को बताया था कि पल्लवी जिस सीरियल में काम कर रही थी वह जल्दी ही खत्म होने वाला था. इससे वह परेशान थी. उसके पास दूसरा काम नहीं था.

साग्निक के दावे की पुष्टि के लिए पुलिस ने पल्लवी के सह-कलाकारों से भी पूछताछ की थी. उनलोगों ने भी पुलिस को बताया था कि काम खत्म होने की वजह से पल्लवी काफी परेशान थी और काम तलाशती रहती थी. वह अक्सर सह-अभिनेताओं से पूछती रहती थी कि आगे काम कैसे मिलेगा.

एक मॉडल शुभांगी (बदला हुआ नाम) कहती हैं, "प्रतिभावान लोगों के लिए काम की कमी नहीं है. लेकिन हमेशा प्रतिभा के आधार पर ही काम नहीं मिलता. जान-पहचान से कुछ लोगों को ज्यादा काम मिल जाता है. ऐसे में जिसकी ज्यादा जान-पहचान नहीं है उसे कम काम मिलता है. नतीजतन वह धीरे-धीरे मानसिक अवसाद का शिकार होने लगता है."

छोटे परदे की अभिनेत्री दिया मुखर्जी कहती हैं कि कुछ घटनाओं से पूरे उद्योग को मानसिक अवसादग्रस्त बताना सही नहीं है. अवसाद को रोजगार के हर क्षेत्र में है. फिल्मों में काम करने वाले भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं.

एक मनोवैज्ञानिक डा. रीना घोष कहती हैं, "काम का दबाव, काम के घंटे का तय नहीं होना, ऊंची महत्वाकांक्षा और अक्सर किसी से समर्थन नहीं मिलने जैसे वजहें मानसिक अवसाद का कारण बन जाती हैं. कई लोग दबाव नहीं झेल पाने के कारण हार मान कर टूट जाते हैं. कई युवतियां घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर इस पेशे को चुनती हैं. लेकिन कामयाबी नहीं मिलने पर यह सोच कर वे अवसादग्रस्त हो जाती हैं कि अब किस मुंह से घरवालों के पास जाऊंगी."

मनोवैज्ञानिक अनुरूपा बनर्जी कहती हैं, "आम तौर पर लोग ऐसी घटनाओं को जल्दी ही भूल जाते हैं. लेकिन इनकी तह में जाकर अवसाद के कारणों का पता लगाया जाना चाहिए ताकि भविष्य में इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके. लोग चाहे जिस वजह से आत्महत्या का रास्ता चुनते हों, उनका अवसादग्रस्त होना स्वाभाविक है."

बांग्ला फिल्म और टेलीविजन उद्योग से लंबे समय से जुड़े रहे एक निर्माता-निदेशक नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी से कहते हैं, "अब इस क्षेत्र में खासकर जो नए लोग आ रहे हैं वह शॉर्टकट के जरिए कामयाबी की राह तलाशते हैं. वह लोग यह नहीं समझते की कामयाबी के लिए मेहनत और लंबा संघर्ष जरूरी है. नए अभिनेता-अभिनेत्री रातोंरात मशहूर होने का सपना लेकर इस उद्योग में कदम रखते हैं. लेकिन यहां कड़वी हकीकत का सामना होने पर उनके सपने टूटने लगते हैं और वे हार कर पलायन का रास्ता चुन लेते हैं."

वह बताते हैं कि अब दसवीं और 12वीं की छात्राएं भी सीरियल में काम करने चली आती हैं. एकाध सीरियल में काम करने के बाद अचानक मिले पैसों से उनकी जीवनचर्या ही बदल जाती है. लेकिन बाद में जब काम नहीं मिलता तो वे मानसिक तौर पर अवसादग्रस्त हो जाती हैं.

मानसिक अवसाद वाले मरीजों के हित में काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन के संयोजक धीरेन कुमार दास कहते हैं, "कोई भी अचानक आत्महत्या नहीं करता. कुछ दिन पहले से ही इसका संकेत मिलने लगता है. अगर ऐसे लोगों पर नजदीकी निगाह रखी जाए तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं. ऐसे लोगों को आत्महत्या का रास्ता चुनने की बजाय संबंधित विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए." (bbc.com)


अन्य पोस्ट