दयाशंकर मिश्र
हमें प्यार और स्नेह की जरूरत सबसे अधिक कब होती है। उस वक्त जब हम सुख और आनंद की तरफ बढ़ रहे होते हैं, उस समय जब हम अपने मुश्किल दौर से गुजर रहे हों। इसका उत्तर बहुत मुश्किल नहीं है। लेकिन हम मनुष्यता और संवेदनशीलता से दूर होते जाने के कारण मन की बहुत सामान्य जरूरत से दूर होते जा रहे हैं। इसका सबसे सरल उदाहरण हम इस समय देख रहे हैं कि सडक़ पर हो रही/ हो चुकी दुर्घटना, हिंसा में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की मदद में हमारी दिलचस्पी हर दिन घटती जा रही है।
हम वीडियो बनाने में इतने अधिक व्यस्त हैं कि इसे ही हम अपनी जिम्मेदारी समझ बैठे हैं। भारतीय समाज वायरल वीडियो का सबसे बड़ा उपभोक्ता तो बन गया है लेकिन मदद करने के मामले में हमारा मन कमजोर हो रहा है। मदद के लिए जब तक हम आगे नहीं आएंगे, हमारी मदद के लिए भी कोई नहीं आएगा। इस सहज सिद्धांत से मन कहीं दूर चला गया है। हमें मन को एक बार फिर कोमल, उदार और संवेदनशील बनाने की दिशा में आगे बढऩा है!
हमें बचपन में सुनाई जाने वाली कहानियों में एक बड़ी सुंदर कहानी मदद के बारे में है। एक घने जंगल में बहुत सुंदर और ताकतवर शेर रहा करता था। उस की दहाड़ इतनी दूर तक जाती थी कि उसके आसपास कई मील तक सन्नाटा पसरा रहता। उसे दूसरे ही शेरों की तरह नींद बहुत प्रिय थी। जब वह सोता तो किसी की हिम्मत न होती कि उसके आसपास फटके। पेड़ों पर रहने वाले बंदर तक इस बात का ध्यान रखते थे। उसके सेवक लोमड़ी, लकड़बग्घा भी हर प्रकार से कोशिश करते कि उसकी नींद में कोई परेशानी पैदा न हो!
जंगल का राजा शेर एक दोपहरी शिकार के बाद नींद के आनंद में था। उसी समय उसकी गुफा में कहीं से चूहा आ गया। संभव है चूहा अपने किसी रिश्तेदार के यहां घूमने-फिरने आया हो। क्योंकि उसकी गुफा के आसपास रहने वाले चूहे तो शेर की आदत से अच्छी तरह परिचित थे। चूहा अपनी मौज में इस तरह डूबा कि शेर की पीठ पर उछल कूद कर बैठा। शेर की नींद खुल गई। उसकी अलसाई आंखों में गहरा गुस्सा उतर आया। उसने एक ही झटके में अपने पंजे से चूहे को दबोच लिया। तुम्हारी ऐसी हिम्मत। शेर ने दहाड़ते हुए कहा। चूहे को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। वह बुद्धिमान चूहा था। उसने संकट के समय भी धैर्य नहीं खोया। तुरंत शेर से अभयदान की मांग करते हुए अपनी जान बख्शने की गुजारिश करने लगा। इस दौरान इसने एक ऐसी बात कही जो अब तक शेर से किसी ने न कही थी।
चूहे ने कहा, आप हमारे राजा हैं। राजा को चूहे का वध शोभा नहीं देता। मेरी जान बख्श दीजिए, संभव है मैं किसी दिन आपके काम आऊं! उसका जवाब सुनकर शेर को हंसी आ गई। हंसने से उसका गुस्सा दूर हो गया। उसने कहा, तुम मेरे किस काम आओगे। लेकिन मैं तुम्हारी सोच से प्रभावित हुआ। जाओ, लेकिन ध्यान रहे ऐसी गलती दोबारा न हो। चूहा अपने ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ, वहां से भागा।
समय बीता। कुछ दिन बाद जंगल में एक शिकारी आया। उसने कई दिन की जांच पड़ताल के बाद यह पाया कि शेर को पकडऩे का सबसे अच्छा वक्त दोपहर का है। जब वह गहरी नींद में होता है। उसने एक दोपहर बहुत ही कुशलता से शेर को जाल में फंसा लिया। दोपहर का वक्त था वह काफी मेहनत करके थक गया था। जैसे ही उसने देखा कि शेर फंस चुका है। वह अपने साथियों के साथ थोड़ी देर विश्राम के लिए चला गया। इसी बीच उस चूहे को यह खबर मिल गई। उसे अपना वायदा याद आया।
वह तुरंत शेर के पास हाजिर हो गया। अपने कुछ साथियों को भी ले गया। शेर ने उसे देखते ही पूछा तुम यहां क्या कर रहे हो। चूहे ने कहा अगर आपकी अनुमति हो तो मैं तुरंत जाल काटने के काम में लग जाऊं। शेर ने कहा इतना आसान नहीं है फिर भी तुम कोशिश करके देख लो। चूहे ने अपने पूरे परिवार को इस काम में लगा दिया।
थोड़ी ही देर में चूहों ने अपने और साथियों को इस काम में शामिल कर लिया। उसके कुछ देर बाद जंगल का राजा आजाद हो चुका था। इस बार उसकी दहाड़ कुछ ऐसी थी कि शिकारी और उसके साथी चुपचाप जंगल से भाग गए। शेर ने चूहे और उसके साथियों का धन्यवाद किया!
मुझे यह कहानी इसलिए भी याद आती रहती है क्योंकि हमारी जिंदगी भी कुछ इसी तरह है। कौन कब कहां आपकी मदद करने के काम आ सके, इसका कोई भरोसा नहीं। जिंदगी इस बात से तय नहीं होती कि हम ‘शेर’ के साथ कैसे पेश आते हैं। जिंदगी की दिशा और दशा इस बात से तय होती है कि हम उन लोगों के साथ कैसे पेश आते हैं जो हमारी नजर में ‘छोटे’ होते हैं। कहानी की भाषा में कहें तो ‘चूहे’ होते हैं।
इसलिए मदद को स्वभाव बनाइए। मदद कभी बेकार नहीं जाती, वह आपको अधिक प्रसन्नता आनंद और सुख देगी। हमको तो बस इस कहानी के शेर जैसा सहनशील, क्षमाशील होना है। बाकी जिंदगी खुद समझ लेती है! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र
बहुत सारी चीजें हमारे स्वभाव का अनचाहे ही हिस्सा बन जाती हैं। धीरे-धीरे वह हमारे स्वभाव में घुलने लगती हैं। अगर समय रहते उनको ठीक ना किया जा सके तो वह हमारे अवचेतन मन में प्रवेश करने लगती हैं।
हम सब अक्सर अपने स्वभाव की छोटी- मोटी चीजों को लेकर परेशान होते रहते हैं। हमारा ध्यान उस ओर कम ही जाता है, जिस ओर जाना चाहिए। अक्सर हम मन पर पड़े बोझ के पत्थर कम देख पाते हैं। दूसरों से उलझने और अपने को सही साबित करने के चक्रव्यूह में ही फंसे रहते हैं। प्रसन्नता हमारे स्वभाव से दूर जा रही है। नाराजगी और स्वभाव में उग्रता बढ़ती जा रही है।
अपने भीतर का जब तक हमें बोध नहीं होता, हम शांति की ओर नहीं बढ़ सकते! स्वभाव से जुड़ी छोटी सी कहानी आपसे कहता हूं। संभव है इससे मेरी बात अधिक सरलता से आप तक पहुंच सके।
एक सरकारी अफसर साधक के पास पहुंचा। साधक गहरे मौन में रहते। बहुत जरूरी प्रश्नों के ही उत्तर देते। अफसर अक्सर इस गुमान में रहते हैं कि वही दुनिया चला रहे हैं। दुनिया उनकेे ही दम पर टिकी है। अफसर ने साधक से कहा मेरे पास समय नहीं है। मुझे जल्दी से समझाइए कि जीवन में शांति कैसे आ सकती है। साधक ने कोई उत्तर नहीं दिया। जो व्यक्ति उन्हें साधक के पास ले गए थे, उन्होंने किसी तरह अफसर को समझाया कि आपकी दुनिया के नियम सब जगह लागू नहीं होते। वह अफसर जल्दबाजी में थे, चले गए।
घर जाकर उनको एहसास हुआ कि अब तक तो जिन साधु और साधकों के पास वह पहुंचे, वह तो जैसे उनके इंतजार में ही बैठे थे। इस मायने में यह साधक अनूठे हैं।
अगले दिन वह अपने उस मित्र के यहां भागे जो उनको साधक के पास ले गए थे। वह गुस्से में मित्र के ऊपर भी नाराज हो गए थे कि उसने उनका बेहद कीमती समय ऐसे साधक के पास लेे जाकर खराब कर दिया, जो अपने यहां आने वालों से ठीक से बात नहीं करता। दूसरोंं के समय का सम्मान नहीं करता। संयोग से उनके मित्र सजग थे। प्रेम का रंग उनकी आत्मा में घुला हुआ था। वह उनको लेकर साधक केे पास गए। इस बार इस अफसर ने कोई जल्दबाजी नहीं की। प्रेम से बैठे रहे। समय आने पर बहुत इत्मीनान से उन्होंने कहा, मेरा स्वभाव बहुत उग्र है। इस नियंत्रित करने का उपाय बताइए।
साधक ने कहा यह तो नई चीज़ है। मैंने आज तक नहीं देखी। जरा दिखाओ तो कैसा होता है, उग्र स्वभाव! उस व्यक्ति ने कहा वह तो अचानक कभी-कभी होता है। उस पर मेरा नियंत्रण नहीं है। साधक ने कहा, यदि वह हमेशा नहीं है तो वह तुम्हारा स्वभाव नहीं है। किसी कारण से तुमने उसे थोड़ी देर के लिए पहना हुआ है। हमेशा इसी बात का ख्याल रखना। ओढ़ी हुई चीज थोड़ी देर के लिए होनी चाहिए हमेशा के लिए नहीं।
हम सबके साथ भी कुछ ऐसा ही है। बहुत साारी चीजें हमारे स्वभाव का अनचाहे ही हिस्सा बन जाती हैं। धीरे-धीरे वह हमारे स्वभाव में घुलने लगती हैं। अगर समय रहते उनको ठीक ना किया जा सके तो वह हमारे अवचेतन मन में प्रवेश करने लगती हैं। आपनेे देखा होगा कुछ लोगों का स्वभाव धीरे-धीरे बदलने लगता है। लेकिन एक दिन वह आपको पूरी तरह बदले हुए नजऱ आते हैं। वह छोटे-छोटे परिवर्तनों के प्रति सजग नहीं होते। घने से घना जंगल भी कुछ वर्षों में मैदान बन सकता है अगर वहां होने वाली कटाई पर समय रहते रोक न लगाई जाए।
हम सब अपने-अपने जीवन में अलग-अलग जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं, अपनी जिंदगी चलाने के लिए। जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए। बस यही बात मन में गहराई से बैठी रहनी चाहिए। इसे बहुत अच्छी तरह समझना होगा कि नौकरी की जरूरत को जिंदगी में जरूरत से ज्यादा महत्व नहीं देना है।
अपने स्वभाव का सजगता से निरीक्षण करते रहे। जांच करते रहें। कहीं कुछ चीजें आपके स्वभाव में दूसरों की तो शामिल नहीं हो रहीं। कभी-कभी जरूरत पडऩे पर सफर में हम दूसरों की चीजों से काम चला लेते हैं। लेकिन वह हमेशा के लिए हमारे पास नहीं रहतीं। ठीक इसी तरह से ध्यान रखना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि गुस्सैल, क्रोधी, किसी भी कीमत पर सब कुछ हासिल करने की जिद पर रहने वालों के साथ रहते हुए हम भी तो वैसे ही नहीं होते जा रहे!
अपने स्वभाव को सरल और प्राकृतिक बनाए रखना है। दूसरों का पहना और ओढ़ा स्वभाव हमारे किसी काम नहीं! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र