विष्णु नागर

अभी कई और भारत बनने बाकी हैं...!
06-Sep-2020 12:29 PM
अभी कई और भारत बनने बाकी हैं...!

-विष्णु नागर 
मोदीजी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्हें एक वही काम नहीं आता,जो उन्हें आना चाहिए, बाकी सारे काम आते हैंं। मसलन वे प्रधानमंत्री हैं। उन्हें इसका भरपूर से भी भरपूर फायदा उठाना आता है मगर इस नाते जो उन्हें आना चाहिए, वह नहीं आता। मसलन वे प्रधानमंत्री बने, तब इकनॉमी ठीक-ठाक चल रही थी। उनके होते हुए भी यह इसी तरह चलती रहे, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्हें इकानामी पर अपनी मोहर लगवाना थी। उन्होंने फटाफट नोटबंदी की और कहा कि देखो अभी इससे कालाधन छूमंतर हुआ जाता है और साथ में आतंकवाद भी गायब हो जाएगा। कोई बात नहीं करोड़ों लोग हैरान-परेशान हुए, कुछ लाइन में लगे- लगे मर गए, तो क्या! मरना -जीना तो ऊपरवाले के हाथ में है, एक्ट ऑफ गॉड है। चलो अब जीएसटी ले आते हैं। व्यापारियों की समस्या एक ही झटके मेंं खत्म। ये अलग बात है कि इससे व्यापारी ही खत्म हो जानेवाले थे। वह तो शुक्र है कि बालों-बाल बच गए। इतने से संतोष नहीं हुआ तो सारे देश में लॉकडाउन करवा दिया। कहा कि व्यापारी भाइयो, इस बार बर्बादी में तुम अकेले नहीं हो, फैक्ट्री-कारखानेदार, मजदूर, रेहड़ीवाले सभी शामिल हैं। तुम्हारे मन को इससे शांति मिलेगी कि बर्बादी संयुक्त है। जीएसटी की तरह इस बार तुम अकेले नहीं हो। और दिखाऊँ काबिलीयत, चलो इकॉनामी को मैं शून्य से भी नीचे-27 पर ले आता हूँ। अब खुश! नहीं? चलो अभी वक्त है। मेरे कमाल देखते जाओ।

अब क्या-क्या गिनाएँ उनकी ऐसी महान ‘उपलब्धियाँ’! यह विषय इतना विस्तृत और गहन है कि इस पर ‘मोदी चरित मानस’ की रचना संभव है। इसके लिए आधुनिक तुलसीदास चाहिए और जहाँ तक दृष्टि जाती है, कोई दीखता नहीं। वैसे मोर और अन्य कविताएँ लिखकर मोदीजी ने साबित कर दिया है कि अपने मानस के तुलसीदास वे स्वयं हो सकते हैं। यह काम वे लॉकडाउन में करें तो यह रचना अमरग्रंथों की श्रेणी में सम्मिलित हो जाएगी। इससे भक्तों के सामने संकट पैदा हो जाएगा कि वे रामचरित मानस पढ़ें या ‘मोदीचरित मानस’!

तो खैर इस तरह वह देश की सारी समस्याएँँ ‘हल’ करते चले जा रहे हैं। रुके नहीं, थमे नहीं, पीछे मुडक़र नहीं देखा कभी। बेरोजगारी एक बड़ी भारी समस्या थी, चाय-पकोड़ा उद्योग का पुनरुत्थान करके उसे हल कर दिया। कोरोना को उन्होंने ताली-थाली बजवाकर छूमंतर करा दिया। और जो समस्याएँ छूमंतर नहीं हो सकींं, उनके लिए जवाहर लाल नेहरू जिम्मेदार थे! फिर भी उन्होंने अपने ऊपर नेहरूजी के बनाए सरकारी उपक्रमों को बेचने की जिम्मेदार ली और बेशक उसे मन-प्राण से पूरा कर रहे हैं। और जहाँ वे कुछ नहीं कर पाए, वहाँ कम से कम नाम तो बदलवा ही दिए। रेसकोर्स रोड अब लोककल्याण मार्ग है। मुगलसराय स्टेशन अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन है।योजना आयोग अब नीति आयोग है। सूरज का नाम सूरज और चाँद का नाम चाँद इसलिए है क्योंंकि ये नाम न नेहरू जी ने दिए थे, न मुगलों ने!

ऐसे सारे काम मोदीजी को खूब आते हैं। जंगल कटवा कर प्रकृति से प्रेम करना आता है। मोर पर कविता लिखना आता है। नगाड़ा बजाना आता है।योग करना और करवाना आता है। अंबानी के प्राडक्ट का विज्ञापन करना और अडाणी के खिलाफ सारे केस पक्ष में निबटवाना आता है। डिजाइनर कपड़े पहनना आता है। गुफा में तपस्या करना आता है। ज्ञान बघारना तो उन्हें इतना आता है कि बड़े-बड़े विद्वान शर्म से चुल्लू भर पानी में डूबने की ट्रेनिंग ले रहे हैं। मन है नहीं मगर मन की बात करना आता है। कभी अपने को इस योजना, कभी उस कार्यक्रम के माध्यम से लांच और रिलांच और रि-रि-रि लांच करना आता है। ऊँची से ऊँची मूर्ति बनवाने में उनका सानी नहीं। बच्चों को परीक्षा पास करवाना और खुद फर्जी डिग्री लेना आता है। भाषण देना और उसमें विशेष रूप से फेंकने की कला में उनका स्थान वही है, जो कला में पिकासो और कविता में कालिदास का है। फर्जी को असल बनाना उन्हें आता है। जरूरी बातों पर चुप रहना और फालतू बातों पर ट्वीट पे ट्वीट करना आता है। मीडिया से लेकर अदालत तक के मैनेजमेंट के वह जगद्गुरु हैं।उन्हें वह सब करना भी आता है, जिसका वे प्रधानमंत्री पद बनने से पहले विरोध करते थे। उन्हें अपने सारे विरोधियों को नाना प्रकार से ‘ठीक’ करना आता है।उन्हें ट्रंपादि चुनिंदा लोगों की झप्पीशप्पी इतनी जोर से लेना आता है कि सामने वाले की साँस घुट जाए! आँकड़ों और झूठ का घनघोर उत्पादन करने वाला तो उनके जैसा पराक्रमी देश के इतिहास में कभी हुआ नहीं। हिंदू-मुस्लिम करना तो जैसे उनके डीएनए में है।

इसके अलावा वह हर हफ्ते-पंद्रह दिन में एक नया नारा ईजाद करते हैं। परेशानी के बायस बन चुके नारों को लोग किस प्रकार भूलें, ये कला उन्हें आती है। उन्होंने आज तक ये इंडिया और वो इंडिया और वो भी इंडिया, ऐसे न जाने कितने इंडिया बनवा डाले हैं कि उन्हें भी अब याद नहीं कि ऐसे कितने बन और मिट चुके हैं। अभी ‘न्यू इंडिया’ बना रहे थे, अभी-अभी आत्मनिर्भर इंडिया बनाने लगे। एक- दो महीने बाद कोई और इंडिया बनाने लगेंगे। उनसे जो चाहे बिकवा लो, इंडिया तो बिकवा ही लो मगर इस नारे के साथ बिकवाना पड़ेगा कि मैं देश नहीं बिकने दूँगा।

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