विष्णु नागर
-विष्णु नागर
भक्तों और वोटरों को इस सच्चाई की गाँठ बाँध लेना चाहिए कि लोकतंत्र वगैरह तो सब ठीक है। तुम-हम वोट देते हैं, यह भी ठीक ही है मगर सच ज्यादा संगीन है। हमें मालूम है मगर हम इसे स्वीकार नहीं करते, भक्त तो आज बिल्कुल ही मंजूर नहीं करेंगे कि वोट नहीं, बड़े सेठों के नोट लोकतंत्र का असली सारतत्व बन चुके हैं। इस भयानक मंदी में जब अर्थव्यवस्था माइनस 27 तक आ पहुँची है, जो आजादी के बाद आज तक नहीं हुआ था, मगर सेठ मुकेश अंबानी की संपत्ति फिर भी बढ़ रही है। देश डूब रहा है, वह विदेशी कंपनियाँ खरीद रहा है। तुम्हारी छोटी-मोटी नौकरी चली जाती है, धंधा पिट जाता है। कई आत्महत्या कर चुके हैं और कई और करेंगे अभी लेकिन सेठ साहब जीडीपी, भारत और वैश्विक मंदी से परे जा चुके हैं।
समस्त सेठ समाज अभी भी लगभग खुश है। नाराजगी थोड़ी है, वह औपचारिक है, दोस्ताना है। क्यों? क्योंकि तुम्हारे वोट और तुम्हारे हिंदुत्व से ज्यादा ताकतवर है, सेठ का पैसा, उसका समर्थन। जिस दिन सेठों ने तुम्हारे हिंदुत्व से हाथ खींच लिया, तुम्हारा हिंदुत्व भाँप की तरह आकाश में विलीन हो जाएगा और हाँ तुम्हीं हमसे ज्यादा हिंदुत्व विरोधी नजर आओगे, हाँ तुम्हीं। मोदीजी को गाली देने वालों की अग्रिम पंक्ति में हमसे आगे तुम रहोगे।
इन एंकर-एंकरानियों की भक्ति और वीरता कटी पतंग की तरह गोते खाते हुए नीचे आ जाएगी, माइनस के भी माइनस में चली जाएगी। ये एंकर-एंकरानियाँ मोदीजी की कृपा पर नहीं,चैनल मालिक की मेहरबानी पर निर्भर हैं। ये सेठ चाहें तो जिसको चाहें, धूल चटा दें और पहले अच्छे -अच्छों को चटाई भी है। हिंदुत्व तुम्हारे लिए है, ईज आफ डूइंग बिजनेस, आत्मनिर्भरता उनके लिए है। सेठ हिंदुत्व से पगलाया हुआ नहीं है, उसे यह भी ‘सूट’ करता है, इसलिए चुप है, समर्थक जैसा नजर आता है। जिस दिन हिंदुत्व उसे भार की तरह नजर आएगा,वह मोदीजी से कहेगा, रिवर्स गेअर में गाड़ी ले लो और मोदीजी खुशी-खुशी ले लेंगे। और नहीं लेंगे तो देखना जो विकल्पहीनता तुम्हें-हमें आज नजर आती है, अचानक भारत में विकल्पों की भरमार हो जाएगी। इस खेल को जो नहीं समझता, समझना नहीं चाहता, उसके लिए शब्द तो मेरे पास हैं मगर लिखूंगा नहीं।