विष्णु नागर

एक लाख प्रतिशत ‘गारंटीड समाधान’
26-Aug-2020 12:47 PM
एक लाख प्रतिशत ‘गारंटीड समाधान’

-विष्णु नागर
अक्सर मैं विज्ञापनों पर नजर नहीं डालता, पत्नी ने ‘ज्योतिष’ के नाम पर छपे विज्ञापनों की ओर ध्यान दिलाया, जिनका दरअसल ‘ज्योतिष’  से भी कोई संबंध नहीं है। ये तथाकथित तांत्रिकों के विज्ञापन हैं, जिनकी संख्या यहाँ कम नहीं, 37 है। ये दिलचस्प विज्ञापन हैं। ऐसे ही घर आए एक पर्चे के बारे में पहले लिखा जा चुका है।अगर कोई वैज्ञानिक- तार्किक सोच का व्यक्ति है, तो उसका इन विज्ञापनों को पढक़र मनोरंजन होगा। 

सबसे पहले इस बात ने मुझे आकर्षित किया कि उन्होंने वशीकरण, मुठकरनी, लव मैरिज, गृह क्लेश, मनचाही शादी, प्यार में धोखा, दुश्मन से छुटकारा, गड़ा धन निकालने, सौतन की समस्या आदि-आदि ऐसी तमाम समस्याओं का हल ‘तत्काल’ करने का वायदा किया है। किसी ने तो केवल तीन घंटे का समय माँँगा है, किसी ने दो ही घंटे का और किसी ने तो एक घंटे का और एक ने तो महज एक मिनट का समय मांगा है। ‘तत्काल सेवा’ के ये कुछ अनुपम उदाहरण हैंं। कंप्यूटर से भी किसी विषय पर सामग्री सर्च करना हो तो इससे अधिक समय लग जाता है। इनमें से कुछ तो कंप्यूटर से भी तेज हैंं! कुछ का अनुभव कहता है कि एक घंटा, दो घंटे, तीन घंटे का समय देना चाहिए ताकि अपने बैंक अकाउंट में पैसा आ जाए या नकद मिल जाए, तभी समाधान बताएं। इससे यह असर भी पड़ता है कि तांत्रिक महाराज सोच- समझकर, तंत्र क्रिया करके, समस्या को गंभीरता से लेते हुए समाधान देते हैं। वे उन चालू तांत्रिकों में से नहीं हैंं, जो एक मिनट या पाँच मिनट में समाधान पकड़ा देते हैं। एक मिनट या पाँच मिनट वालों का भी बाजार है और घंटे,दो घंटे या तीन घंटे वालों का भी मार्केट है।

एक और दिलचस्प बात यह है कि कुछ तो 102त्न या 101त्न समाधान का दावा करते हैं लेकिन कोई- कोई तो 1000त्न का । एक महागुरु गंगाराम का दावा तो एक लाख प्रतिशत गारंटीड समाधान का है। मेरा गणित अच्छा नहीं है और मैंने कभी सुना भी नहीं पहले की समस्या का हजार फीसदी या एक लाख प्रतिशत समाधान क्या होता है। 100त्न तो समझ में आ जाता है, 101त्न कहने का भी रिवाज है यानी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही अच्छा समाधान लेकिन यह दस हजार या एक लाख प्रतिशत  ‘गारंटीड समाधान’ क्या होता है, समझने में नाकामयाब हूूँ क्योंकि समाधान की यह ‘गारंटीड तकनीक’ और इसका गणित बिल्कुल नया है।

बहुत से तांत्रिक समस्या के ‘फ्री समाधान’ का दावा करते हैं, कुछ काम के बाद फीस लेते हैं। कुछ अपनी फीस पहले बता देते हैं। कोई 501 रुपये लेता है, कोई 1050 रुपये, कोई 650 रुपये, कोई 551 रुपये।

501 से 1050 रुपये तक की फीस का भी और फ्री में मिलने वाले समाधान का भी अपना आकर्षण है। सामान्य ढंग से सोचने की बात है कि कोई व्यक्ति एक हजार या पाँच हजार या अधिक रुपये देकर विज्ञापन छपवा रहा है , तो मुफ्त समाधान क्या देता होगा! यह ‘ग्राहक’ को फँसाने का एक तरीका है।तय फीस में उसी किस्म की सुरक्षा है, जो दुकान में ‘एक दाम’ के बोर्ड लगे होने से मिलती है। ‘गारंटीड समाधान’ का वायदा तो हर तथाकथित तांत्रिक देता है। कोई-कोई ‘ओपन चैलेंज’ भी देते हैं, जैसे एक ‘विश्व प्रसिद्ध’ सीताराम जी ने दिया है। दुकानदार दुकान पर लिख कर रखता है -‘फैशन के इस युग में माल की गारंटी नहीं’ लेकिन यह तो साहब ‘खुला चैलेंज’ देते हैं। ‘विश्व प्रसिद्ध’ की बीमारी भी हम लोगों को लगी हुई है। यह पता नहीं कौन सा ‘विश्व’ है और वहां कौन सी और किस बात की इनकी ‘प्रसिद्धि’ है।

एक शर्मा जी 15 बार ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ हैंं और एक पंडित विशाल ‘सेवन टाइम गोल्ड मेडलिस्ट’ हैं। य ह सात और पंद्रह बार वाले ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ किस बात के ‘गोल्ड मेडलिस्ट’हैंं, खुद ही जानेंं। क्या पता ‘तंत्र विद्या’ का भी अपना कोई ‘तंत्र’ हो, जो मेडल बाँटता हो या विशुद्ध से भी विशुद्ध से भी ‘परिशुद्ध’ मेडल देता हो।वैसे यह धंधा किस तरह झूठ और धोखेबाजी पर आधारित है, इसका पता इसी अखबार में छपे दो विज्ञापन देते हैं।
 
एक पंडित दुर्गा प्रसाद का विज्ञापन कहता है- ‘शब्दों के जाल में न फँसेंं।’ एक तांत्रिक ‘उस्ताद मोइन जी सम्राट’ के विज्ञापन की शुरुआत ऐसे होती है-’ ‘तांत्रिक बाबाओं के रूप में बैठे हैं शैतान, फिर कैसे होंगे काम।’ अब ये चेतावनी देनेवाले खुद क्या होंगे, क्या नहीं,कौन जाने लेकिन ये विज्ञापन यह तो बता ही देते हैं कि शब्द जाल बिछाकर शैतानी हरकत करने वाले बहुत हैं बल्कि यह पूरा धंधा ही इस पर निर्भर है। वैसे खुद अखबार वाले विज्ञापन के अंत में अंग्रेजी में सूचना देते हैं कि ये वर्गीकृत विज्ञापन तथ्यों में जाए बगैर प्रकाशित किए जाते हैं और इनके दावों के लिए अखबार जिम्मेदार नहीं है। (23 दिसंबर, 2014 को लिखित)
(हाल ही में अनुज्ञा बुक्स से प्रकाशित ‘एक नास्तिक का धार्मिक रोजनामचा’ से।)

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