विष्णु नागर
-विष्णु नागर
मान लेते हैं कि गाय हमारी माता है। यह भी मान लेते हैं कि ऐसी वैसी नहीं, हमारी अपनी माँ से भी ज्यादा वह हमारी माँ है। हमारी माँ ने तो हमें हद से हद दो साल तक दूध पिलाया होगा मगर जेब में पैसे हों तो गाय या भैंस का दूध जिंदगीभर छककर पिया जा सकता है, जबकि माँ का नहीं। ब्रिटेन की एक खबर जरूर पढ़ी थी कि वहाँ बच्चे की माँ के दूध की आइसक्रीम मिलने लगी है और लोग शौक से खाने लगे हैं। हम अभी इतने एडवांस नहीं हुए हैं। हो जाते तो जाने कितनी माँओं के बच्चों का दूध छिन जाता! फाइव स्टार होटल में लोग पहले दारू पीते। फिर भोजन का समापन इस आइसक्रीम से करते! फिर एक और मँगाते। कुछ कहते हम तो एक और लेंगे। नशा उन्हें दारू का नहीं, आइसक्रीम का चढ़ता!
और फिर माँ तो अमूमन अपने बच्चे को ही दूध पिलाती है, गाय और भैंस तो सबको पिलाती है। शर्त एक है कि जेब में पैसा हो। पैसा नहीं तो न गाय माता है, न भैंस। जैसे गरीब माँ के स्तन का दूध जल्दी सूख जाता है, वैसे ही रोकड़ा न होने पर गोमाता या भैंसमाता का भी। यह सही है कि इसमें गोमाता या भैंसमाता का क्या दोष? वैसे ही गरीब माँ का भी क्या दोष?
चलिए यह लफड़ेवाला मामला है, इसे यहीं छोड़ते हैं।
एक और लफड़ा मेरे लिखने से पैदा हो गया होगा।पूछा जाएगा कि भैंस कब से माता होने लगी?धर्मग्रंथों में यह कहाँ लिखा है?नहीं लिखा होगा शायद मगर मेरे जैसे लोग-जो वैसे तो रोटी, दाल, सब्जी खाकर ही बड़े हुए हैं, गाय या भैंस का दूध पीकर नहीं-वे वास्तव में न गाय को माँ मानने की स्थिति में हैं, न भैंस को। हमें तो बचपन में कभी-कभी खीर के बहाने दूध मिल गया तो मिल गया। फिर जब दूध पीने की हैसियत हुई तो पतला-मोटा, शुद्ध या पानी मिला या डेयरी का दूध हुआ करता था-गाय या भैस का नहीं। होता भी होगा तो अपना उससे वास्ता नहीं रहा। तो आप ईजीली मान सकते हो कि बड़े होने के बाद जो दूध हमने पिया, वह भैंस का रहा होगा। इसका कारण है। एक तो भैंस, अमूमन गाय से ज्यादा दूध देती है, दूसरे उसके दूध में पानी मिलाना दूधिये के लिए भी आसान है, गृहिणियों के लिए भी। तो भैंस का दूध इस मायने में अधिक उपयोगी और गुणकारी है। तो अपनी भावनाओं को चोट न पहुँचने दें और हम जैसा कोई विधर्मी गाय की बजाय भैंस को माता मानना चाहे तो उसे मानने दें। इसका ये मतलब नहीं कि वह आपकी माता यानी गोमाता को मानने से इनकार कर रहा है। आपकी माँ, उसकी माँ मगर उसकी माँ क्या आपकी माँ? वैसे आप भी स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक हो, वह भी। आज आपके प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी हैं,तो उसके भी।
पर बंधुओ/भगीनियो, सच पूछो तो ये गाय या भैंस को माँ मानने में बड़ा लफड़ा है। अब एक ‘दुष्ट’ ने कहा कि ठीक है,जी, गाय हमारी माता है तो फिर हमारा कोई गोवंशीय पिता भी होता होगा? वह कौन है?और कोई नहीं है तो क्यों नहीं है? अब मैं ऐसे टेढ़ेमेढ़े सवाल का जवाब क्या देता? वेद-पुराण पढ़े होते, घोंटे होते तो जवाब दे भी देता। मौन रह गया। मुस्कुरा कर रह गया।
एक और ‘दुष्ट’ ने कहा कि गाय हमारी माता है तो उसके बछड़ा-बछिया हमारे क्या हुए? भाई-बहन हुए? बैल हमारा भाई है या नहीं है?बैल कुछ है तो फिर उसका एक और सहोदर हमारा कुछ है या नहीं? फिर आज की बछिया, कल गाय बन गई तो क्या वह भी हमारी माँ हो जाएगी?और जो गाय मेरी माँ है,वह मेरे बच्चों और उनके बच्चों की भी माँ हुई या कुछ और?
यह भी सवाल किया, उसने कि विदेशी नस्ल की गाय हमारी माँ नहीं क्यों नहीं हो सकती? आपमें से किसी के घर अगर गाय का दूध आता है तो क्या आप गारंटी से जानते हो कि वह देसी गाय का है? मान लिया कि देसी गाय का है तो फिर विदेशी नस्ल की जो गायें दूध देती हैं, उसका क्या होता है?वह उपयोग में लाया जाता है या फेंक दिया जाता है?और अगर जो गाय का दूध पीते हैं, वह देशी-विदेशी सभी नस्लों की गायों का होता है तो फिर विदेशी नस्ल की गाय भी उनकी माँ कैसे नहीं हुई ?नहीं हुई तो फिर उसका दूध वे क्यों पीते हैं?और पीते हैं, तो वह भी कुछ हुई या नहीं हुई?
अभी एक विद्वान न्यायाधीश ने एक फैसले में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कही ।सवाल यह है कि गाय पशु है या हमारी माँ है?क्या माँ को पशु कहा जा सकता है,भले ही वास्तव में वह पशु हो?
उन्होंने यह भी कहा कि गाय ऑक्सीजन लेती है और आक्सीजन ही छोड़ती है। उनके अनुसार वैज्ञानिक भी यह मानते हैं। मान लिया कि वैज्ञानिकों की एक हिन्दूवादी कोटि होती है। चलो मान लिया,यही सच है कि गाय आक्सीजन लेती और छोड़ती है मगर हम जो उसकी संतान हैं, कार्बनडाई आक्साइड क्यों छोड़ते हैं? या हम भी अब आक्सीजन छोडऩे लगे हैं? फिर देसी गायें ही आक्सीजन छोड़ती हैं या विदेशी गायें भी?कोरोना के संकट के समय सरकार ने इस आक्सीजन का उपयोग क्यों नहीं किया?विपक्ष इसके लिए जिम्मेदार है या नहीं है?उसके खिलाफ तब अविश्वास प्रस्ताव लाने से सरकार चूक क्यों गई?
आजकल ‘दुष्ट’ लोग ही सवाल किया करते हैं और भक्त लोगों को भडक़ाते हैं। ‘दुष्टों’ के पास और काम ही क्या है और मेरे पास भी? इसलिए ‘दुष्टों’ की संगत में रहता हूँ, उनकी बातें सुनता हूँ और अपनी बुद्धि को ‘भ्रष्ट’ करता रहता हूँ। आजकल समय इसी में बीत रहा है।