विष्णु नागर

न इन माध्यमों को छोड़ सकते, न एक-दूसरे तक पहुँचने की इच्छा
10-Jul-2021 7:56 PM
  न इन माध्यमों को छोड़ सकते, न एक-दूसरे तक पहुँचने की इच्छा

-विष्णु नागर

अगर देखने की एक खास दृष्टि को स्वीकार करें तो हम मनुष्य नहीं, मात्र उपभोक्ता हैं। इस दृष्टि से तो मैं जो लिख रहा हूँ, वह भी एक उत्पाद है, जो मैं जाने -अनजाने फेसबुक के लिए  मुफ्त में उत्पादित कर रहा हूँ(जिससे उसकी तगड़ी कमाई होती है)जबकि मुझे यह भ्रम है कि मैं इसके जरिए अपने को अभिव्यक्त कर रहा हूँ। सच्चाई शायद दोनों के बीच है बल्कि दोनों है।

मेरे लिए जो अभिव्यक्ति है, फेसबुक के लिए वह एक मुफ्त का उत्पाद है, जिसका मालिक आज दुनिया के सबसे बड़े अमीरों में है। तो संकट यह है कि क्या मैं लिखना बंद कर दूँ और मैं इस पर आगे से लिखना बंद करके उत्पाद बनने से इनकार कर दूँ? मेरा और आपका संकट यह है कि जब अभिव्यक्ति के दूसरे बड़े माध्यम हमारी पहुँच से दूर होते गए हैं, तब हमें यह एक-दूसरे तक पहुँचाता है।

व्यक्ति और दुनिया किस तरफ जा रही है, वे सच्चाइयों के कौन से कोने हैं, संवेदनाओं के ऐसे कौन से क्षेत्र हैं, जिन्हें दूसरे लोकप्रिय माध्यम हमसे दूर रखते हैं (और अब फेसबुक भी छुपाता है। किसी दिन चुपचाप उसे गायब कर देता है।)। मेरे लिए फेसबुक का यह उपयोग है, दूसरों के लिए बेशक दूसरा भी है।

इस सवाल ने कल मेरे मन में अधिक स्पष्ट आकार तब लिया, जब मैंने एक बड़े अखबार समूह का एक विज्ञापन देखा, जो पिछले बीस बरसों से भी अधिक समय से खुलेआम अपने को उत्पाद कहता आ रहा है और जिसने फिर यही घोषित करते हुए  विज्ञापन दिया है। इसका एक बड़ा अधिकारी बरसों पहले बहुत बेशर्मी से कह चुका है कि विज्ञापनों के बीच बची हुई जगह में जो चेंपा जाता है, उसे समाचार कहते हैं। उस समूह में मैं करीब दो दशक काम कर चुका हूँ और जिस दौर में मैं वहाँ रहा, उसके बारे में कह सकता हूँ कि वह एक बेहतर दौर था या यूँ कहें इतना बदतर नहीं था।

बहरहाल आप आज जो कुछ और हैं, वह तो हैं ही मगर किसी न किसी के लिए उपभोक्ता हैं या उपभोग के एक उत्पादक हैं। बच कर जाएँगे,कहाँ? जो थोड़ी- बहुत जगह पहले बची हुई थी, वह भी अब समाप्त -सी है। संकट बहुत बड़ा है। न हम इन माध्यमों को छोड़ सकते हैं, न एक-दूसरे तक पहुँचने की इच्छा को त्याग सकते हैं। क्या आपको भी ऐसा ही लगता है या आप इससे असहमत हैं?

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