रिश्तों की सेहत के प्रति सजगता होनी जरूरी है. पेड़ को बचाए रखने के लिए पत्तियों में नहीं, जड़ों में पानी देना होता है. रिश्ते हमारी जिंदगी की जड़ हैं. यही जिंदगी को ताज़ा बनाए रखते हैं. रोशनी बख्शते हैं.
क्या रिश्ते भी बासी हो सकते हैं! संभव है, बहुत से पाठक इस शीर्षक से सहमत न हों, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता. जिस किसी चीज से जीवन में प्रेम छूटता जाता है, समय और स्नेह छूटता जाता है. वह बासी होती जाती है! हमारी जिंदगी में बासी होते रिश्ते इसकी गवाही दे रहे हैं. जिंदगी को प्रेम की धूप दीजिए! थोड़ा इत्मिनान दीजिए! स्मार्टफोन आने के बाद से जिंदगी में सबसे ज्यादा उथल-पुथल हुई है. पहली बार टेलीविजन की जिंदगी में आने पर समय की कमी महसूस हुई. उसके बाद स्मार्ट टीवी जब कमरे-कमरे में लगते गए, तो लगा कुछ घट रहा है. अब जब स्मार्टफोन है और असीमित इंटरनेट, तो जहां एक तरफ हम निजता का उत्सव मनाने में व्यस्त हैं, वहीं मन के किसी कोने में अकेलापन बढ़ रहा है. जो मन को खुरदरा बनाता जाता है!
हम रो नहीं रहे. भावुक नहीं होते. बस हमारे दिल में बेचैनी और उदासी के दौर गहरे होते जा रहे हैं. इंटरनेट के कंधे पर सवार होकर, स्मार्टफोन के रास्ते हमारे मन में अनियंत्रित और सुनियोजित हिंसा परोसी जा रही है. टीवी ने जिस काम की शुरुआत की थी, वेबसीरीज के साथ हम सही मायने में बुद्धू बक्से के सामने बैठे रहते हैं. टेलीविजन ने हमारी सोचने समझने की शक्ति को कमजोर करने की दिशा में धीरे-धीरे कदम बढ़ाया. अब स्मार्टफोन और व्हाट्सएप ने हमारी जिंदगी के समानांतर एक ऐसी दुनिया बना दी है, जिसमें गहरी शून्यता और अकेलापन है.
'गैंग्स ऑफ वासेपुर-2' का नायक फैजल पूरी फिल्म में गहरी उदासी में है. जब फिल्म/ उसकी जिंदगी अंतिम पड़ाव की ओर पर बढ़ रही होती है, तो संभवत: एक ही दृश्य में उसे रोते हुए दिखाया गया है. इसमें उसकी उदासियों का ब्यौरा है. जिंदगी कहां से कहां चली गई, इस दृश्य में उसकी कहानी है! रिश्ते के एक छोटे से छल ने उसकी आत्मा पर सबसे बड़ा बोझ लाद दिया था!
ऐसे छोटे-छोटे छल हमारी जिंदगी में बहुत बड़ा असर डाल देते हैं. रिश्तों की सेहत के प्रति सजगता होनी जरूरी है. पेड़ को बचाए रखने के लिए पत्तियों में नहीं, जड़ों में पानी देना होता है. रिश्ते हमारी जिंदगी की जड़ हैं. यही जिंदगी को ताज़ा बनाए रखने हैं. रोशनी बख्शते हैं.
बुद्ध का एक सुंदर प्रसंग है. बुद्ध के पास एक प्रौढ़ व्यापारी आता है. जिसकी पीड़ा बस इतनी है कि उसे कटु अनुभवों से मुक्ति नहीं मिल रही. वह जीवन को समाप्त करने की बात करता है. बुद्ध कहते हैं, समाप्ति से कुछ नहीं होगा. जो कल हो गया है उसे आज में लाने से बचना होगा. हर दिन पुरानी स्मृति से ही आगे बढ़ना होगा. सूरज अगर हर दिन के बादलों के बारे में सोचने लगे, तो वह अपनी यात्रा जारी ही नहीं रख पाएगा. धर्म अगर कुछ है तो वह केवल इतना है कि प्रकृति की तरह जीवन के प्रति आस्थावान बने रहना. एक-दूसरे को छोटी-छोटी चीजों के लिए क्षमा करते रहने का अभ्यास मन को मजबूत बनाता है. मन में काई जमने से रोकता है. मन को नरम, उदार बनाए रखने के लिए कोमलता के बीज बोते रहिए. अपेक्षा नहीं केवल स्नेह पर जोर दीजिए!
हर दिन नई यात्रा आरंभ करने का खुद से वादा, अतीत की गलियों में भटकने से रोकता है. किसी यात्री की तरह. यात्री हर दिन की यात्रा से सबक लेते हैं, लेकिन थमते नहीं हैं! जीवन में अलग-अलग मोड़ पर अलग-अलग तरह के रिश्ते मिलते हैं. उनके प्रति सही दृष्टिकोण, दूसरों के प्रति करुणा और स्नेह से ही जीवन को गतिमान बनाया जा सकता है. रिश्तों को प्रेम की धूप जितनी अधिक मिलेगी, जिंदगी उतनी ही रोशन होगी.
-दयाशंकर मिश्र