हम अक्सर करुणा और प्रेम की शक्ति को कमतर मानते हैं, लेकिन जिन्होंने इसे महसूस किया है, वह मानते हैं कि इससे जीवन की किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है!
हमारे जीवन से एक बरस की यात्रा अब थोड़ी-सी दूरी पर है. यह साल अपनी यात्रा पूरी ही करने वाला है. त्योहार भारतीय जीवन पद्धति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. मेरा ख्याल है कि हम सबको अपने आसपास मौजूद लोगों के प्रति थोड़ी अधिक उदारता दिखानी चाहिए. फेसबुक पर इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें पंजाब की बहुत ही भावुक कहानी है. कोरोना और लॉकडाउन के कारण बढ़ती बेरोजगारी में अपनी तरह से स्थितियों से लोहा लेने का काम अपना छोटा-सा कारोबार संभालने वाली पूजा करती हैं. पूजा अपने साथियों को इस तरह से संभालती हैं कि उन्हें बड़े-बड़े लोग पूजा दीदी कहने लगते हैं. इस विज्ञापन का शीर्षक भी पूजा दीदी ही है. इसे देखने वाले बड़ी मुश्किल से अपनी आंखों की नमी रोक पाते हैं. इस कहानी में पूजा बहुत बड़ा काम नहीं कर रहीं, लेकिन वह आगे बढ़कर समाज का दुख और परेशानी कम करना चाहती हैं. अपने हिस्से की सुविधा को थोड़ा कम करते हुए.
यह जो पूजा का किरदार है, हमारा पुराना वाला भारत यही है. थोड़ा पीछे जाकर हम देखते हैं, तो पाते हैं कि अपने यहां मुश्किल दिनों में भी लोगों को नौकरी से निकालने का तरीका जितना इधर पंद्रह- बीस वर्षों में फैला है, उतना पहले नहीं था.
हम धीरे-धीरे सारे सपने केवल अपने लिए बुनने लगे हैं. ऐसी आंखें जिनके सपने की सीमा बहुत सीमित होती है, वह अपने जीवन को विस्तार नहीं दे पातीं. अपने साथ थोड़ा दूसरों के लिए सोचना, जिंदगी को सुकून, आनंद और सुख देता है. एक-दूसरे का साथ देते हुए जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए हुनर से अधिक हौसले और करुणा की जरूरत होती है. हम अक्सर करुणा और प्रेम की शक्ति को कमतर मानते हैं, लेकिन जिन्होंने इसे महसूस किया है, वह मानते हैं कि इससे जीवन की किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है.
'जीवन संवााद' के सभी पाठकों को दीपावली और नववर्ष की शुभकामना. मैं आप सभी से अनुरोध करना चाहता हूं कि अपनी जिंदगी में थोड़ी-थोड़ी उदारता बढ़ाएं. एक-दूसरे की गलतियों को अनदेखा करना हमारी कमजोरी नहीं है. असल में एक-दूसरे को सहना है. एक-दूसरे को बर्दाश्त किए बिना जिंदगी बहुत मुश्किल हो जाएगी! अपनी-अपनी परेशानी और कमजोरियों के बाद भी जिंदगी मुमकिन है. इसका साथ बहादुरी और बड़े दिल के साथ करने से बड़े-बड़े बोझ हल्के होते जाते हैं!
-दयाशंकर मिश्र