- राघवेंद्र राव
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन की सख़्त भाषा में लिखी चिट्ठी मिलने के कुछ घंटों बाद ही योग गुरु स्वामी रामदेव ने अपना विवादित बयान वापस ले लिया. ऐसा लगा कि यह विवाद अब थम जाएगा मगर ऐसा हुआ नहीं.
स्वामी रामदेव ने कहा था कि एलोपैथिक दवाएँ खाने से लाखों लोगों की मौत हुई है. उन्होंने एलोपैथी को 'स्टुपिड और दिवालिया साइंस' भी कहा था.
इसके कुछ ही दिनों पहले उन्होंने कहा था, ''ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन है लेकिन लोग बेवजह सिलेंडर ढूँढ रहे हैं.''
उनके हालिया बयान के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि संकट के इस समय में डॉक्टर रात-दिन मरीज़ों की जान बचाने में लगे हैं, वे 'देवता तुल्य' हैं.
डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा था, ''डॉक्टरों के बारे में रामदेव की टिप्पणी अस्वीकार्य है और उन्हें तत्काल माफ़ी माँगनी चाहिए.''
इसके बाद रामदेव ने कहा कि वो अपना बयान वापस लेकर इस विवाद को विराम दे रहे हैं. लेकिन कुछ ही घंटों में उन्होंने एक बार फिर एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति पर हमला बोला.
रामदेव ने पतंजलि के लेटरपैड पर लिखी एक चिट्ठी में 25 सवाल पूछे. इस चिट्ठी पर उन्होंने खु़द ही हस्ताक्षर भी किए हैं.
उनके सवालों में डॉक्टरों से पूछा गया है: हाइपरटेंशन, मधुमेह, थाइरॉयड, गठिया और दमा जैसी बीमारियों के लिए क्या स्थायी समाधान हैं? उन्होंने पूछा है कि एलोपैथी के पास फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस और हेपेटाइटिस को ठीक करने के लिए क्या दवा है?
रामदेव ने कहा है, ''जैसे आपने टीबी और चेचक आदि का स्थायी समाधान खोजा है, वैसे ही लिवर की बीमारियों का समाधान खोजिए, अब तो एलोपैथी को शुरू हुए 200 साल हो गए. ज़रा बताइए."
रामदेव ने यह भी जानना चाहा है कि क्या उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को उलटने की कोई दवाई है फार्मा इंडस्ट्री के पास? या कोई ऐसी दवाई है जिससे हर तरह के नशे की लत छूट जाए?
उन्होंने यह भी पूछ डाला है कि कोरोना के मरीज़ में बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के इस्तेमाल के ऑक्सीजन बढ़ने का उपाय क्या है?
रामदेव के इन सवालों में व्यंग्य की झलक भी मिलती है.
उन्होंने पूछा है, "एलोपैथी और आयुर्वेद के आपस में झगड़े ख़त्म करने की फार्मा इंडस्ट्री के पास कोई दवाई है तो बता दें. एलोपैथी सर्व शक्तिमान और सर्वगुण-संपन्न है तो फिर एलोपैथी के डॉक्टर तो बीमार होने ही नहीं चाहिए?"
उनके पत्र और उसमें लिखे सवालों से ऐसा लगता है मानो वो जता रहे हों कि उनके पास हर रोग का इलाज है लेकिन डॉक्टरों के पास बीसियों रोगों का कोई उपचार नहीं है.

क्या है पूरा मामला?
योग गुरु रामदेव की भारतीय जनता पार्टी से नज़दीकी कोई राज़ की बात नहीं है.
फरवरी महीने में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी उनके साथ मंच को साझा कर रहे थे जब योग गुरु रामदेव ने दावा किया था कि उनके संस्थान पतंजलि ने जो 'दिव्य कोरोनिल' दवा बनाई है उसे कोविड-19 की सहायक उपाय दवा और इम्युनिटी बूस्टर के रूप में आयुष मंत्रालय से मान्यता मिल गई है.
रामदेव हरियाणा की बीजेपी शासित सरकार के ब्रैंड एम्बेसडर भी हैं. इसीलिए जब 23 मई को डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को सख्त लहजे में एक पत्र लिख डाला तो उसने सभी का ध्यान खींचा.
भारत में डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने कहा है कि अतीत में भी रामदेव स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में डॉक्टरों को 'हत्यारा' बता चुके हैं.
आईएमए ने यह भी कहा है, "यह यह सबको मालूम है कि योग गुरु और उनके सहयोगी बालकृष्ण बीमारी के समय आधुनिक चिकित्सा और एलोपैथी का उपचार लेते रहे हैं और अब बड़े पैमाने पर जनता को गुमराह करने के लिए वह झूठे और निराधार आरोप लगा रहे हैं ताकि वह अपनी अवैध और अस्वीकृत दवाओं को बेच सकें."
रामदेव का जवाब
स्वास्थ्य मंत्री की कड़ी चिट्ठी के जवाब में रामदेव ने लिखा कि वो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विरोधी नहीं हैं. रामदेव ने कहा, "हम यह मानते हैं कि जीवन रक्षा प्रणाली या शल्य चिकित्सा के विज्ञान में एलोपैथी ने बहुत प्रगति की है और मानवता की सेवा की है."
उन्होंने लिखा कि उनके जिस बयान को मुद्दा बनाया जा रहा है वह एक कार्यकर्ता बैठक में दिया गया था जिसमें उन्होंने एक व्हाट्सएप्प मैसेज को पढ़कर सुनाया था.
उन्होंने कहा, ''उससे अगर किसी की भी भावनाएं आहत हुई हैं, तो मुझे खेद है."
रामदेव ने अपने जवाब में यह भी कहा कि कोरोना काल में भी एलोपैथी डॉक्टर्स ने अपनी जान जोखिम में डालकर करोड़ों लोगों की जान बचाई है और वे इसका सम्मान करते हैं.
साथ ही रामदेव ने यह भी कहा कि उन्होंने भी आयुर्वेद और योग के प्रयोग से करोड़ों लोगों की जान बचाई है और इसका भी सम्मान होना चाहिए.
रामदेव ने कहा कि किसी भी चिकित्सा पद्धति में होने वाली त्रुटियों का रेखांकन उस पद्धति पर आक्रमण के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.
उनके मुताबिक़, "यह विज्ञान का विरोध तो कतई नहीं है."
रामदेव ने कहा कि इसी प्रकार से कुछ एलोपैथिक डॉक्टर आयुर्वेद और योग को 'छद्म विज्ञान' कहकर उसका निरादर करते हैं जिससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं."
एलोपैथी पर निशाना
रामदेव ने इस मामले में अपनी सफाई भले ही दे दी हो लेकिन उनके और पतंजलि आयुर्वेद के विचारों को समझने के लिए सिर्फ पतंजलि आयुर्वेद के ट्विटर टाइमलाइन पर नज़र डालने की ज़रूरत है.
ट्विटर टाइमलाइन पर एक के बाद एक ऐसी पोस्ट भरी हैं जिसमें "योग के चमत्कार" का बखान है. ज़्यादातर में लिखा गया है कि मरीज़ को "डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था" यानी डॉक्टरों ने बीमारी से हार मान ली थी.
योग की डॉक्टरों से तुलना करने के लिए जो उदाहरण दिए गए हैं उनमें से एक में यह बताया गया है कि एक मरीज़ ने दो साल पुराने गठिया को 10 दिन में योग से ठीक कर लिया और "अब दौड़ने भी लग गई हैं."
इसी तरह एक अन्य मरीज़ का उदाहरण दिया गया है. जिसमें बताया गया है कि उन्हें "डॉक्टर्स ने कह दिया था कि दो महीने ही ज़िंदा रह पाएँगे" और उन्होंने "योग से लंग्स की समस्या ठीक कर ली और 17 साल तक जिए."
पतंजलि की वेबसाइट पर पतंजलि अनुसंधान संस्थान के बारे में दी गई जानकारी में कहा गया है कि आयुर्वेद के क्षेत्र में क्लीनिकल नियंत्रण का कार्य कभी भी बड़े पैमाने पर नहीं हो सका जिसके कारण इस ज्ञान को वैश्विक मान्यता नहीं मिल सकी.
यह भी बताया गया है कि पतंजलि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई है जहां शुरू में 100 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं और इसका एक बड़ा हिस्सा शोध कार्यों पर खर्च किया जा रहा है.
वेबसाइट के अनुसार इस संस्थान में जानवरों से लेकर मानव शोध की गहन प्रक्रिया होगी और किसी भी दवा का पहले प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाएगा, फिर चूहों और खरगोशों पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा और जानवरों में सफल प्रयोग के बाद इसका इस्तेमाल इंसानों पर किया जाएगा.
साथ ही यह भी लिखा गया है, "इस तरह की प्रक्रिया से आयुर्वेद के वैज्ञानिक तथ्य स्पष्ट होंगे और उन रोगियों के लिए एक नई आशा पैदा होगी जिन्होंने लंबे एलोपैथ उपचार के बाद हार मान ली है. साथ ही आयुर्वेद को साक्ष्य आधारित औषधि के रूप में विश्व में पहचान मिलेगी."

लगातार विवादों में रहे हैं रामदेव
विवादों और रामदेव का निरन्तर साथ रहा है. अतीत में भी स्वामी रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच गरमा-गरमी होती रही है.
साल 2006 में ही कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात ने आरोप लगाया था कि बाबा रामदेव की फार्मेसी में बनने वाली दवाइयों में जानवरों और इंसानी हड्डियों का चूरा मिलाया जाता है. इसको लेकर ख़ासा विवाद हुआ था.
रामदेव कई बार कह चुके हैं कि "समलैंगिकता एक रोग है और आयुर्वेद में इसका इलाज है." इस पर भी काफ़ी हंगामा हो चुका है.
2013 में रामदेव ने एक रैली में यह कहकर हंगामा मचा दिया था कि "टोपी पहनने वाले भारत माता की जय नहीं बोलते.'' इसके बाद उनकी काफ़ी आलोचना हुई थी.
उन्होंने राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर कई व्यक्तिगत और आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की हैं जिनके बाद उनके ख़िलाफ़ कई कांग्रेस शासित राज्यों में एफ़आईआर दर्ज हुई और उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए.
महिलाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ और 'बेटा पैदा करने वाली दवा'
रामदेव कांग्रेस पार्टी, शंकराचार्य से लेकर दलितों और महिलाओं तक के बारे में अनेक बार ऐसी टिप्पणियाँ कर चुके हैं जिनकी वजह से काफ़ी विवाद खड़ा हुआ है.
2008 में आईएमए ने रामदेव की आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ की गई टिप्पणी की आलोचना की थी. आईएमए का आरोप था कि रामदेव ने एक योग शिविर के दौरान कहा था कि डॉक्टर बीमारियों के प्रचारक हैं और मरीज़ों की बीमारियों को भुना रहे हैं.
2015 में ही रामदेव ने हरियाणा सरकार के कैबिनेट रैंक के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह मंत्री पद की तलाश में नहीं हैं और बाबा ही बने रहना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि वे योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा के ब्रैंड एंबेसडर बने रहेंगे.
हरियाणा में विपक्षी कांग्रेस ने रामदेव को ब्रैंड एंबेसडर बनाने और बाद में कैबिनेट का दर्जा दिए जाने के कदम का विरोध किया था.
उसी वर्ष रामदेव एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गए जब विपक्षी दलों ने संसद में सत्तारूढ़ भाजपा को इस बात पर घेरने की कोशिश की कि उनके समर्थक रामदेव की फार्मेसी में "पुत्रजीवक बीज" के नाम से दवा बनाई जा रही है और यह दावा किया जा रहा है कि इस दवा के इस्तेमाल से बेटे का ही जन्म होगा.
कुछ सांसद "पुत्रजीवक बीज" के पैकेट संसद में लाए और उन्हें दिखाते हुए कहा कि ऐसी चीज़ों को बेचना अवैध और असंवैधानिक है. विपक्षी सांसदों ने यह भी कहा कि हरियाणा सरकार ने ऐसे व्यक्ति को ब्रैंड एम्बेसडर नियुक्त किया है जिनकी फार्मेसी ऐसी तथाकथित दवाएं बेचती है.
पतंजलि के उत्पादों पर सवाल और रामलीला मैदान से भागना
योगगुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि के कई उत्पादों की गुणवत्ता पर भी दुनिया भर में गंभीर सवाल उठे हैं और उनके कई उत्पाद गुणवत्ता परीक्षण पास नहीं कर सके हैं.
यहाँ तक कि नेपाल सरकार ने रामदेव की दिव्य फ़ार्मेसी के सात उत्पादों की बिक्री पर साल 2017 में यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि वे इंसानी स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं.
कांग्रेस के शासनकाल में रामदेव विदेशों से काला धन वापस लाने के अपने बयानों और दावों की वजह से चर्चा में रहे हैं.
इसके अलावा उन्होंने पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों को लेकर भी अभियान चलाया था, उन्होंने कहा था कि इनकी कीमत 35 रुपए लीटर होनी चाहिए.
जून 2011 में तत्कालीन सरकार के ख़िलाफ़ रामदेव ने रामलीला मैदान में अनशन शुरू किया था. स्वदेशी की मांग और काले धन के ख़िलाफ़ अनशन के ख़िलाफ़ बाबा रामदेव को गिरफ़्तार करने जब पुलिस पहुँची तो वे एक महिला आंदोलनकारी के कपड़े पहनकर वहाँ से भाग निकले थे.
रामदेव ने कहा था कि उन्हें ऐसा अपनी जान बचाने के लिए करना पड़ा था. (www.bbc.com/hindi)