राजनीति
उपचुनाव विशेष रिपोर्ट-6
आसनसोल से बिकास के शर्मा
आसनसोल संसदीय इलाके में हिंदी भाषी मतदाताओं का प्रतिशत करीब 55 है। मुख्य रूप से जिन दो दलों में टक्कर संसदीय उपचुनाव में देखी जा रही है वैसी भाजपा एवं तृणमूल ने हिंदी भाषी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए एडी से लेकर चोटी तक एक करने वाला प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। जहां एक और राज्य की सत्ताशीन तृणमूल के प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं एक हिंदी भाषी हैं और प्रचार के दौरान ज्यादातर हिंदी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं उनके काम चलाऊ बांग्ला भाषा का ज्ञान उनको बांग्ला भाषी मतदाताओं के बीच भी कहीं-न-कहीं स्थापित कर रहा है।
साथ ही भाजपा ने एक बांग्ला भाषी आसनसोल दक्षिण की विधायक अग्निमित्रा पॉल को टिकट देकर अपने पारंपरिक रूप से माने जाने वाले हिंदी वोटरों के साथ-साथ बंगाली समुदाय को भी यह संदेश दिया है कि पार्टी गैर बंगालियों की नहीं बल्कि आपकी अपनी ही है। हालांकि श्रीमती पॉल के समर्थन में दिखाई देने वाले विधायक अजय कुमार पोद्दार, पूर्व मेयर जितेंद्र तिवारी, राजेश सिंहा आदि नेता हिंदी भाषी ही हैं। भाषाई संतुलन में तृणमूल और भाजपा दोनों ही एक दूसरे को मात देने में जुटी हुईं हैं।
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल को बांग्ला भाषियों का प्रचुर समर्थन मिला था, जिसकी बदौलत वे बहुमत से जीतकर मुख्यमंत्री बनीं। लगातार भाजपा की तरफ खिसकते गैर बांग्ला भाषियों को साधने के लिए ही तृणमूल नेत्री ने एक समय भाजपा के संग रहे केंद्रीय मंत्री एवं अपने जमाने के लोकप्रिय फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिंहा को लोकसभा उपचुनाव में आसनसोल सीट से उतारा है।
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश पांडे की मानें तो भाजपा द्वारा अग्निमित्रा को यूं ही टिकट नहीं दिया गया है अपितु उसके पीछे भगवा दल की सोची समझी रणनीति यह है कि गैर बांग्ला भाषियों के वोट तो भाजपा के संग होते ही हैं और बंगाली महिला को खड़ा करके कुछ प्रतिशत वोट भी ले लिए जाएं तो जीत निश्चित होगी।
श्री पांडेय ने आगे कहा कि तृणमूल द्वारा हिंदी भाषी को और भाजपा द्वारा बांग्ला भाषी नेता को टिकट देना ही आसनसोल सीट को सबसे रोचक बना देता है। लेकिन देश के क्षेत्रीय दलों को अपनी राष्ट्रवादी रणनीति में फंसाने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और देश में विपक्ष की मजबूत आवाज बन चुकीं नेत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के उपचुनाव प्रचार को देखकर कबीर की उलट बांसी याद आती है।
आसनसोल के पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जहां हिंदी भाषियों के बीच जमकर काम किया था और तृणमूल केवल बंगाली समुदाय और मुस्लिमों के बीच ही फंसी रह गई इस बार भाजपा का बांग्ला भाषी उम्मीदवार को टिकट देना और प्रचार के लहजे में 'आसनसोल घोरेर मेेयेके चाय' (आसनसोल घर की बेटी को चाहता है) यह मानकर किया जा रहा है कि दो चुनाव में आए हिंदी भाषियों के वोटों के साथ इस बार बंगाली वोट भी भाजपा के साथ रहेगा।
वहीं तृणमूल सुप्रीमो के बंगाल की जमीन का होने के दावे के बीच हिंदी भाषी शत्रुघ्न सिन्हा को टिकट देकर दोनों वोटों का संतुलन बनाया जा रहा है। किंतु राजनीतिक विश्लेषक सह वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रदीप कुमार सुमन का मानना है कि इस बार यह भी स्पष्ट है कि श्री सिन्हा के पक्ष में हिंदी भाषियों का एक बड़ा वर्ग मैदान में उतारा हुआ है और जहां भी वे जा रहे हैं लोगों का हुजूम लग जा रहा है जो कि विगत दो चुनावों में तृणमूल प्रार्थियों के साथ नहीं देखा गया है। उन्होंने कहा कि लगातार बंगाल के सभी चुनावों में जीत से भी राज्य की सत्ताशीन पार्टी का आत्मबल मजबूत है और सभी नेताओं ने सीट को भाजपा से छीनने में पूरी ताकत लगा दी है। वाममोर्चा समर्थिक सीपीआईएम और कांग्रेस के जनाधार के कम होने का लाभ भी इस बार तृणमूल के पक्ष में ही जाता दिखाई दे रहा है।
प्रयागराज में रेलवे भर्ती में नए नियम लागू करने और अन्य भर्तियों में देरी को लेकर आंदोलन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया और फिर घरों में घुसकर तलाशी ली गई, पीटा गया और कई छात्रों को हिरासत में भी लिया गया.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
प्रयागराज के वरिष्ठ पुलिस अजय कुमार ने बताया, "मंगलवार को थाना कर्नलगंज के प्रयाग स्टेशन पर हजार की संख्या में छात्रों ने हंगामा किया और रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची काफी कोशिश के बाद हंगामा कर रहे छात्रों को वहां भगाया गया. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया था. पुलिस द्वारा हटाए जाने के बाद वो आस-पास के लॉज में छिप गए और वहां से पत्थरबाजी भी कर रहे थे.”
छात्रों पर बलप्रयोग
एसएसपी का कहना था कि इसके बाद कुछ पुलिसकर्मी भी लॉज में घुसे और बल प्रयोग किया. उनके मुताबिक, "इस तरह के वीडियो भी संज्ञान में आए हैं. पूरे घटनाक्रम की जांच की जा रही है. जो उपद्रवी छात्र हैं उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है और जिन पुलिसकर्मियों ने अनावश्यक बल प्रयोग किया है उनके खिलाफ भी निलंबन की कार्रवाई की जा रही है. किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा.”
प्रदर्शनकारी छात्रों के मुताबिक पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज किया और दर्जनों छात्रों को उनके हॉस्टलों और घरों से हिरासत में ले लिया. लाठी चार्ज होने पर प्रदर्शनकारी छात्र आस-पास के हॉस्टलों और घरों में छिप गए लेकिन पुलिस ने हॉस्टलों और लॉज में रह रहे छात्रों को वहां से जबरन निकाला, मारा-पीटा और कमरों के दरवाजे भी तोड़ दिए.
छोटा बघाड़ा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र दीपक मौर्य ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरे लॉज में करीब तीस छात्र रहते हैं. हम सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं और हममें से कोई प्रदर्शन में शामिल भी नहीं था. फिर भी हमारे लॉज से पुलिस वाले छात्रों को पीटते हुए बाहर ले गए. कमरों में घुसकर किताबें तक फाड़ दीं. हम लोग हाथ जोड़ कर अपने बारे में बताते रहे लेकिन उनके सिर पर जैसे जुनून सवार था. यह सुनिश्चित होने के बाद कि हम लोग प्रदर्शन में नहीं थे, हमें छोड़ दिया गया.”
किस बात का विरोध
वहीं प्रदर्शन में शामिल कई छात्र अभी भी लापता बताए गए हैं. पुलिस ने कुछ छात्रों को हिरासत में लिया है लेकिन उनका विवरण नहीं दिया गया है. यहां रह रहे तमाम प्रतियोगी छात्र डर के मारे मीडिया से भी बात नहीं कर रहे हैं. प्रतियोगी छात्र रेलवे की एनटीपीसी यानी नॉनटेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी की ग्रुप डी परीक्षा को दो चरणों में कराए जाने का विरोध कर रहे थे. शुरुआत में जब इस परीक्षा का नोटिफिकेशन आया था तब यह एक ही चरण में होनी थी और उसके बाद फिजिकल टेस्ट होना था.
एक प्रतियोगी छात्र देवेश के मुताबिक, "आरआरबी एनटीपीसी यानी नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी ग्रुप टी की वेकेंसी 2019 में निकली थी. काफी दबाव के बाद अगले महीने फरवरी में परीक्षा की तारीख आई. ग्रुप डी की परीक्षा में अब तक एक चरण की परीक्षा होती थी और उसके बाद फिजिकल होता था. परीक्षा से ठीक पहले रेलवे ने एक नया नोटिफिकेशन जारी कर बताया कि अब परीक्षा दो चरणों में होगी, उसके बाद फिजिकल होगा.”
हालांकि छात्रों के विरोध के बाद अब रेलवे ने इस परीक्षा को स्थगित कर दिया है और छात्रों की शिकायतों की जांच के लिए एक कमेटी बना दी है. इससे पहले, इसी रेलवे की एनटीपीसी में ही ग्रुप सी की परीक्षा के परिणाम में धांधली के आरोपों को लेकर भी छात्रों ने आंदोलन किया था. उस समय भी सैकड़ों की संख्या में छात्रों को हिरासत में लिया गया था.
गड़बड़ी के आरोप
प्रयागराज में छात्र नेता पंकज पांडेय कहते हैं, "एनटीपीसी के ग्रुप सी के रिजल्ट में एक ही छात्र को 4 से अधिक पदों पर पहली बार की परीक्षा में ही क्वालीफाई कराया जा रहा है. इसलिए छात्रों की मांग है कि जो रिजल्ट जारी किया जाए, वो 20 गुना हो और प्रत्येक पद का 20 गुना होना चाहिए. रेलवे मंत्रालय ने अलग-अलग तरीके से स्पष्टीकरण देकर के यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया है कि उसने जो रिजल्ट जारी किया है वह सही है, लेकिन वह यह नहीं बता पा रहा है कि एक छात्र को एक से ज्यादा पदों पर कैसे क्वालीफाई कराया गया है.”
पंकज पांडेय बताते हैं, "देश भर के विभिन्न रेलवे जोन में नॉन-टेक्निकल पापुलर कटेगरी (NTPC) में 35 हजार से अधिक ग्रुप सी पदों पर भर्ती के लिए सात चरणों में रेलवे भर्ती बोर्ड द्वारा आयोजित पहले चरण यानि CBT1 (कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट1) के नतीजों की घोषणा 14 जनवरी 2022 को की गई थी. इसके बाद से कई उम्मीदवार एनटीपीसी परीक्षा परिणाम में कथित गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर आवाज उठा रहे हैं. इस बारे में अब तक 30 लाख से अधिक ट्वीट किए जा चुके हैं. वहीं ग्रुप डी नौकरी के लिए पहले एक चरण में परीक्षा कराने का नोटिफिकेशन आया लेकिन अब कह रहे हैं कि दो चरण में परीक्षा होगी.”
मंगलवार को प्रतियोगी छात्रों के खिलाफ हुई पुलिस कार्रवाई के वीडियो देखते ही देखते वायरल होने लगे तो इसकी गूंज राजनीतिक स्तर पर भी होने लगी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पुलिस की कार्रवाई के वीडियो पोस्ट करते हुए ट्विटर पर लिखा है, "प्रयागराज में पुलिस द्वारा छात्रों के लॉज में और हॉस्टलों में जाकर तोड़-फोड़ करना एवं उनको पीटना बेहद निंदनीय है. प्रशासन इस दमनकारी कार्रवाई पर तुरंत रोक लगाए. युवाओं को रोजगार की बात कहने का पूरा हक है और मैं इस लड़ाई में पूरी तरह से उनके साथ हूं.”
बिहार में भी भड़के छात्र
प्रतियोगी छात्र बिहार में भी आंदोलनरत हैं और मंगलवार को उनके प्रदर्शन का दूसरा दिन था. ये छात्र भी रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड द्वारा नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी में अलग-अलग पदों पर निकली भर्तियों में धांधली और लापरवाही को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. मंगलवार को इन छात्रों का प्रदर्शन भी काफी उग्र हो गया.
पुलिस ने छात्रों पर डंडे बरसाए तो छात्रों ने भी पुलिस टीम पर पत्थरबाजी की. छात्रों के साथ कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं. आंदोलन ना सिर्फ पटना में बल्कि आरा, नवादा जैसे कई अन्य जिलों से सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने संबंधी तस्वीरें भी आई हैं. कुछ जगहों पर रेल कोच जलाए जाने की भी घटनाएं हुई हैं.
रेलवे की चेतावनी
प्रयागराज में पिछले कई दिन से छात्र रेलवे की भर्ती परीक्षा यानी आरआरबी एनटीपीसी के रिजल्ट में व्यापक पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुए आंदोलन कर रहे हैं. पिछले दिनों भी आंदोलन कर रहे कई छात्रों को हिरासत में लिया गया था.
इससे पहले छात्रों के विरोध और उनके तमाम आरोपों को खारिज करते हुए मंगलवार को रेलवे ने एक धमकी भरा नोटिफिकेशन जारी किया था. इस में कहा गया है कि विरोध करने वाले छात्रों को भविष्य में रेलवे की किसी भी परीक्षा में बैठने से वंचित किया जा सकता है.
रेलवे के नोटिफिकेशन में लिखा था, "संज्ञान में ये बात आई है कि रेलवे की नौकरी के आकांक्षी उम्मीदवार गैरकानूनी गतिविधियों जैसे कि रेल की पटरी पर विरोध प्रदर्शन, ट्रेन संचालन में व्यवधान उत्पन्न करने और रेल की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की गतिविधियों में शामिल हैं. ऐसी गतिविधियां अनुशासनहीनता का उच्चतम स्तर है. विशेष एजेंसियों की सहायता से ऐसी गतिविधियों से संबंधित वीडियो की जांच की जाएगी. गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल उम्मीदवारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की जाएगी, साथ ही उन्हें रेलवे की नौकरी प्राप्त करने के संबंध में आजीवन प्रतिबंधित भी किया जा सकता है.”
प्रतियोगी छात्रों की समस्या
प्रयागराज, दिल्ली, पटना जैसी जगहों पर लाखों की संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र रहते हैं. इनमें कुछ सिविल सेवाओं की और कुछ ग्रुप सी और डी की नौकरियों की तैयारी करते हैं. जब रेलवे और बैंकिंग जैसी बड़ी संख्या में नौकरी देने वाली संस्थाओं की वैकेंसी नहीं आती तो छात्रों के कई साल परीक्षा के इंतजार में ही चले जाते हैं. छात्र जिस परीक्षा को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, उसका विज्ञापन साल 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आया था.
छात्रों की समस्याओं और परीक्षाओं में होने वाली धांधली के खिलाफ आवाज मुखर करने वाली संस्था युवा हल्ला बोल से जुड़े गोविंद मिश्र कहते हैं, "सरकार की प्राथमिकताओं में रोजगार देना है ही नहीं. चुनावी एजेंडे में ही रहता है यह. छात्र परीक्षाओं का इंतजार ही करता रहता है. उसे लगता है कि परीक्षा देंगे तब पता चलेगा कि वो योग्य है या नहीं लेकिन यहां तो परीक्षा ही कई-कई साल नहीं हो रही है.
पांच साल तो उसे परीक्षा देने में लग जा रहे हैं, उसमें भी यदि एक बार असफल हो गया तो अगली परीक्षा के लिए फिर कई साल का इंतजार करना पड़ता है. बड़े शहरों में हजारों कोचिंग और तमाम लोगों के रोजगार इन्हीं छात्रों की बदौलत फल-फूल रहे हैं लेकिन सरकारी नौकरी की चाहत में छात्र और उनके अभिभावक आखिरकार खुद को ठगे हुए ही पाते हैं.” (dw.com)
नई दिल्ली : बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही अपना दल (सोनेलाल) (Apna Dal S) ने पार्टी के पहले टिकट के तौर पर एक मुस्लिम उम्मीदवार का ऐलान किया है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी या उसके सहयोगी दलों की ओर से ऐसा दांव बेहद कम ही देखने को मिलता है. आजम खान ने यूपी विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांगी है औऱ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. अपना दल (एस) ने यूपी के रामपुर जिले की स्वार (Suar ) सीट से हैदर अली खान को चुनाव मैदान में उतारा है. माना जा रहा है कि इसी सीट से समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम चुनाव मैदान में उतरेंगे.
अपना दल की ओर से यह ऐलान ऐसे वक्त हुआ है, जब अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाले अपना दल (एस) और संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ बीजेपी के सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है. बीजेपी के सहयोगी दल की ओर से किसी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतरना बेहद दुर्लभ कदम माना जा रहा है. हैदर अली खान रामपुर के शाही खानदान से ताल्लुक रखते हैं और उनके दादा जुल्फिकार अली खान रामपुर से पांच बार कांग्रेस पार्टी के सांसद रहे हैं. हैदर के पिता नवाब काजिम अली खान चार बार विधायक रहे हैं.
काजिम अली इस वक्त स्वार के ही बगल में रामपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार हैं. अपना दल(एस) के उम्मीदवार ने भी चुनाव के ठीक पहले यूटर्न लिया है. उन्हें पहले स्वार विधानसभा सीट से कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित किया था. लेकिन फिर वो अचानक दिल्ली पहुंचे और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल से मिले. इसके बाद उन्हें आधिकारिक तौर पर स्वार सीट से ही अपना दल का प्रत्याशी घोषित किया गया है. अब्दुल्ला आजम ने वर्ष 2017 में स्वार विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था औऱ जीता था.
दिसंबर 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अब्दुल्ला आजम की विधायकी इस आधार पर रद्द कर दी थी कि 2017 में नामांकन के वक्त उनकी उम्र 25 साल से कम थी. फरवरी 2020 से ही अब्दुल्ला आजम जेल में थे. उन पर धोखाधड़ी समेत कई तरह के आऱोप लगे हैं. उन्हें कुछ दिनों पहले ही जमानत मिली है और वो स्वार सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं. अब्दुल्ला के पिता आजम खां रामपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं और फरवरी 2020 से वो भी तमाम आरोपों के तहत जेल में बंद हैं. (ndtv.in)
उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीख करीब आ रही है. इन राज्यों में विधानसभा चुनाव की शुरुआत 10 फरवरी से होगी. यूपी, पंजाब के अलावा उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा की जनता भी अपना विधायक चुनने के लिए वोट डालेगी. चुनाव तो 5 राज्यों में है लेकिन सबसे ज्यादा शोर उत्तर प्रदेश और पंजाब का ही है. यूपी में जहां बीजेपी सत्ता में दोबारा वापसी की राह देख रही है तो समाजवादी पार्टी 5 साल का सूखा खत्म करके सरकार बनाना चाहती है. वहीं, पंजाब की लड़ाई भी काफी दिलचस्प है. यहां पर कई दिग्गज अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और आम आदमी पार्टी के सीएम उम्मीदवार भगवंत मान पंजाब की कुर्सी पर काबिज होने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. इन दो राज्यों में किसकी सरकार बनेगी ये 10 मार्च को साफ हो जाएगा. लेकिन उससे पहले हम आपके सामने पोल ऑफ पोल्स के आंकड़े पेश कर रहे हैं.
यूपी चुनाव के पोल ऑफ पोल्स में 7 एजेंसियों का सर्वे शामिल किया गया है. सी वोटर के सर्वे के मुताबिक, विधानसभा की कुल 403 सीटों में से बीजेपी को 223 से 235 सीटें मिल सकती हैं. समाजवादी पार्टी को 145 से 157, बीएसपी को 8 से 16 और कांग्रेस को 3 से सात सीटों से संतोष करना पड़ सकता है. वहीं इंडिया टीवी के सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को 230 से 235, एसपी को 160 से 165, बीएसपी को दो से पांच और कांग्रेस को 3 से सात सीटें मिल सकती है.
वहीं DB Live के मुताबिक, 203 से 211 सीटें लाकर समाजवादी पार्टी सरकार बना सकती है. इस सर्वे में 144 से 152 सीटें मिल सकती है. बीएसपी को 12 से 20 और कांग्रेस को 19 से 27 सीटें मिल सकती है. इन सभी सर्वे का औसत यानि पोल ऑफ पोल्स पर नजर डालें तो, बीजेपी को 221 से 231 सीटें मिल सकती हैं और सरकार बना सकती है. वहीं समाजवादी पार्टी को 147 से 157, बीएसपी को सात से 13 और कांग्रेस को पांच से 9 सीटें मिल सकती हैं.
अगर यही आकंड़े चुनावी नतीजों में रहते हैं तो योगी आदित्यनाथ इतिहास रच देंगे. क्योंकि यूपी में 1985 के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज नहीं हुआ है.
सर्वे में पंजाब को लेकर क्या है
पंजाब चुनाव पर एबीपी-सी वोटर के मुताबिक, कांग्रेस को 37 से 43, आप को 52 से 58, अकाली दल को 17 से 23 और बीजेपी को एक से तीन सीटें मिल सकती है. Republic P-MARQ के सर्वे में कहा गया है कि कांग्रेस को 42 से 48, आप को 50 से 56, अकाली दल को 13 से 17 और बीजेपी को एक से दो सीटें मिल सकती है. वहीं India News- जन की बात के सर्वे में कहा गया है कि कांग्रेस को 32 से 42, आप को 58 से 65, अकाली दल को 15 से 18 और बीजेपी को एक से दो सीटें मिल सकती है.
इन सभी सर्वे का औसत यानि पोल ऑफ पोल्स पर नजर डालें तो, कांग्रेस को 43 से 48 सीटें मिल सकती है. वहीं आम आदमी पार्टी को 49 से 54, अकाली दल को 14 से 18 और बीजेपी गठबंधन को एक से तीन सीटें मिल सकती है. (abplive.com)
नई दिल्ली, 16 जनवरी : पंजाब कांग्रेस में बगावत की आग मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के घर तक पहुंच गई है. सीएम चन्नी के भाई डॉ. मनोहर सिंह ने कांग्रेस के फैसले से अलग जाकर खुद विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इसे पंजाब कांग्रेस के भीतर बगावत का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है. मनोहर सिंह ने रविवार को ऐलान किया कि वो बस्सी पठाना विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे. मनोहर ने बस्सी पठाना से विधानसभा टिकट की दावेदारी पेश की थी. लेकिन कांग्रेस ने इस बार वन फैमिली वन टिकट का फार्मूला अपनाया है. इस कारण मनोहर सिंह की दावेदारी पर पानी फिर गया.
बस्सी पठाना पंजाब के सांस्कृतिक क्षेत्र पुआध के तहत आता है और यह चन्नी और उनके परिवार का गढ़ माना जाता है. भाई के इस बगावती तेवर पर चन्नी ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि मुख्यमंत्री ने अपने भाई को बस्सी पठाना विधानसभा सीट (Bassi Pathana constituency) से टिकट दिलाने के लिए खूब जद्दोजहद की थी. डॉ. मनोहर सिंह ने पिछले साल अगस्त में मोहाली जिले के खरार सिविल हास्पिटल के सीनियर मेडिकल अफसर के पद से त्यागपत्र दे दिया था.
मनोहर सिंह के पास एमबीबीएस औऱ एमडी की डिग्री है. उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई भी की है औऱ वकालत की भी. डॉ. मनोहर सिंह ने खुलेआम अपने समर्थकों के बीच ऐलान किया कि वो निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे और मौजूदा कांग्रेस विधायक की हार तय करेंगे.इससे कांग्रेस के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. विरोधियों का कहना है कि सीएम चन्नी अपने गृह क्षेत्र में ही असंतोष को नहीं थाम पा रहे हैं.
गौरतलब है कि पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही उठापटक का दौर जारी है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और अन्य नेता अलग-अलग सियासी राग अलाप रहे हैं. पार्टी में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने को लेकर भी मतभेद औऱ जुबानी जंग बढ़ती जा रही है. (ndtv.in)
विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में कई नए सियासी समीकरण बनते दिख रहे हैं तो वहीं कई नए गठबंधन बनने की ओर अग्रसर है. लेकिन इन चुनावों से ठीक पहले एक बार फिर प्रदेश के सबसे बड़े समाजवादी कुनबे में सुलह की गुंजाइश खत्म होती नजर आ रही है. जिस नए गठबंधन के ऐलान का इंतजार हो रहा था अब उस गठबंधन की गांठ बंधती नहीं दिख रही है. 2017 में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को जिस आपसी कलह का नुकसान उठाना पड़ा अब सवाल उठ रहा है कि कहीं 2022 में भी इससे नुकसान तो नहीं होगा.
चाचा शिवपाल यादव को बीते 1 साल से भतीजे अखिलेश के फोन और मैसेज का इंतजार है. शिवपाल यादव साफ तौर पर कह रहे हैं कि उन्होंने तो बीते साल नवंबर में ही एक होने के लिए कदम बढ़ाए थे लेकिन 1 साल का वक्त होने को जा रहा है आज तक उस तरफ से उसका कोई जवाब ही नहीं आया. दरअसल, 2 दिन पहले शिवपाल यादव इटावा पहुंचे थे एक मॉल के उद्घाटन के कार्यक्रम में. वहां शिवपाल यादव का दर्द एक बार फिर सामने आ गया. शिवपाल यादव ने साफ तौर पर कहा कि मैंने तो 22 नवंबर 2020 को ही कहा था कि अगर एक हो जाओगे तो मुख्यमंत्री बनोगे. हमें सम्मान मत दो लेकिन हमारे साथ जो लोग हैं उन्हें सम्मान दे देना और अगर बन पड़े तो हमें भी सम्मान दे देना. मैंने कितनी बार फोन किया मैसेज किया आज तक इंतजार करते रह गए, इंतजार करते करते थक गया लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया. जब इंतजार करते-करते शिवपाल यादव थक गए तो उन्होंने युद्ध का ऐलान कर दिया है. शिवपाल यादव ने साफ तौर पर कहा कि पांडवों ने भी 5 गांव मांगे थे और मैंने भी तो केवल अपने लोगों का सम्मान मांगा था. उधर दुर्योधन थे, भीष्म थे, द्रोणाचार्य थे लेकिन पांडवों ने कृष्ण के साथ मिलकर युद्ध भूमि में जीत हासिल की थी.
शिवपाल यादव ने अपना दर्द मंच से ही सबको सुना दिया
दरअसल, बीते कुछ समय से शिवपाल यादव की तरफ से ये संकेत मिल रहे थे कि 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी पार्टी भले ही समाजवादी पार्टी में विलय ना करें लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके वो चुनाव लड़ने को तैयार है. कुछ दिन पहले लखनऊ में जब शिवपाल यादव की पार्टी के कार्यकर्ता जुटे थे तब शिवपाल यादव ने साफ तौर पर ऐलान किया था कि वो अखिलेश यादव के जवाब का इंतजार 11 अक्टूबर तक करेंगे. अगर जवाब आ जाएगा तो ठीक है, नहीं तो 12 अक्टूबर से वो अपनी सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा वृंदावन मथुरा से निकालेंगे और सभी 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी खड़े करेंगे. जब 2 दिन पहले शिवपाल यादव इटावा पहुंचे तो इतने भावुक हो गए कि अपना दर्द मंच से ही सबको सुना दिया.
लगातार इटावा में लोग शिवपाल यादव से अखिलेश के साथ आने की मांग कर रहे थे, जिसके बाद शिवपाल यादव ने मंच पर साथ ना आने की सारी हकीकत बयां कर दी. शिवपाल यादव ने साफ तौर पर कहा कि नेताजी नहीं चाहते थे कि उन्हें अलग किया जाए लेकिन उसके बावजूद भी उन्हें समाजवादी पार्टी से अलग कर दिया गया. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि नेताजी जो कहेंगे वह करने को तैयार हैं. लेकिन अब तक जवाब नहीं आया, ऐसे में 12 अक्टूबर से वृंदावन मथुरा से वो अपनी सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा को शुरू करेंगे.
बीजेपी शिवपाल के प्रति सहानुभूति दिखा रही है
वहीं शिवपाल यादव के भरे मंच पर दर्द बयां करने के बाद बीजेपी शिवपाल के प्रति सहानुभूति दिखा रही है. पार्टी के प्रवक्ता कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी कि जो कलह है वो अभी समाप्त नहीं हुई है. शिवपाल यादव तो बार-बार कोशिश करते रहे कि अखिलेश यादव को मना लिया जाए, चाचा भतीजा एक हो जाएं लेकिन बंटवारे के हिस्से को लेकर शायद सहमति नहीं बन पा रही है. इसीलिए केर बेर का संग नहीं हो पा रहा है. बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी साफ तौर पर कह रहे हैं कि अखिलेश यादव अभिमान में है, दूसरों के साथ तो गठबंधन करने को बेताब हैं, लेकिन अपने चाचा को सम्मान नहीं नहीं दे पा रहे हैं. जो परिवार नहीं चला पा रहा है वो सरकार क्या चलाएगा. जबकि समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता साफ तौर पर कह रहे हैं कि अखिलेश यादव ने पहले ही ऐलान किया है कि 2022 के चुनाव में सभी क्षेत्रीय दलों के साथ सभी संगठनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे और जहां तक चाचा शिवपाल की बात है तो अखिलेश यादव की लगातार उनसे वार्ता हो रही है और जल्द इसका फैसला जनता के सामने आएगा.
ये बात दीगर है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी परिवार में जो पहले हुई उसका नुकसान अखिलेश यादव को उठाना पड़ा और इसीलिए यह माना जा रहा था कि 2022 के पहले शायद चाचा भतीजा एक साथ आकर एक मंच से चुनाव लड़ने का एलान करेंगे, लेकिन शिवपाल यादव के इस बयान से सुलह की रही सही गुंजाइश भी अब खत्म होती नजर आ रही है. ऐसे इसका नफा किसे होगा और नुकसान किसे उठाना पड़ेगा ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा. (ndtv.in)
रामपुर, 26 सितंबर | रामपुर के बिलासपुर क्षेत्र में एक अजनबी से बात करने पर एक 35 वर्षीय महिला को एक पेड़ से बांधकर उसके ससुराल वालों ने पीटा। घटना 17 सितंबर को रामपुर के बिलासपुर थाना क्षेत्र में हुई, लेकिन यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद शनिवार को मामला दर्ज किया गया।
कथित वीडियो में एक महिला को पेड़ से लटकते हुए देखा जा सकता है, उसके ससुराल वालों द्वारा पिटाई की जा रही है, वह दर्द में रो रही है और दया की गुहार लगा रही है।
रामपुर पुलिस ने बताया, जिस व्यक्ति से महिला बात कर रही थी, उसकी शिकायत के आधार पर चार नामजद और 19 अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा), 355 (अपराधी का इस्तेमाल) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। दूसरों में 498-ए (पति के रिश्तेदार ने उसके साथ क्रूरता की)।
शिकायतकर्ता के अनुसार, वह घर से बिलासपुर लौट रहा था कि रास्ते में महिला को देखा और बातचीत करने लगा।
एक स्थानीय ग्रामीण ने दोनों को देखा और महिला के ससुराल वालों को सूचित किया। इसके बाद ससुराल वाले वहां आए। वह आदमी मौके से भागने में सफल रहा, लेकिन महिला को एक पेड़ से बांध दिया गया और उसकी पिटाई कर दी गई।
रामपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संसार सिंह ने कहा, शिकायतकर्ता जो मूल रूप से उत्तराखंड के रुद्रपुर का रहने वाला है, रामपुर का दौरा करता है, क्योंकि उसका यहां कुछ संपत्ति है। वह आदमी उस महिला से बात कर रहा था जिसे वह जानने का दावा करता है।
हालांकि दोनों को आपस में बात करते देख ससुराल वालों ने उन पर हमला कर दिया। बाद में उन्होंने यह मानकर महिला की पिटाई कर दी कि उसका परपुरुष के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है।(आईएएनएस)
लखनऊ, 14 सितंबर। उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव में पूर्ण बहुमत मिलने और बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनने का दावा करते हुये पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने भारतीय जनता पार्टी के साथ चुनाव पश्चात् गठबंधन करने की संभावना का 200 प्रतिशत खंडन किया है. बसपा प्रमुख के विश्वस्त समझे जाने वाले मिश्रा ने साक्षात्कार में कहा कि बसपा किसी अन्य पार्टी के साथ भी गठबंधन नहीं करेगी.
उनसे सवाल किया गया कि अगर किसी कारण से बसपा को विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नही मिलता हैं तो वह क्या गठबंधन के लिये किस पार्टी से हाथ मिलायेंगे या किसी पार्टी को समर्थन देंगे, इस पर उन्होंने कहा कि ''आपका यह सवाल ही बेमानी हैं, बसपा पूर्ण बहुमत से 2022 में सरकार बना रही है, अगर ऐसी कोई नौबत आयी तो हम 200 प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के साथ कभी नहीं जायेंगे और अन्य किसी पार्टी से भी गठबंधन नहीं करेंगे और न ही समर्थन लेंगे. हम विपक्ष में बैठना ज्यादा पसंद करेंगे.''
अगर बनते हैं त्रिशंकु विधानसभा के हालात तो...
बसपा के वरिष्ठ नेता का यह दावा इस तरह की अवधारणाओं के बीच आया है कि यदि 2022 के चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा के हालात बने तो बसपा भाजपा के साथ हाथ मिला सकती है. विगत में बसपा ने अलग अलग कार्यकाल में भाजपा और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनायी थी. बसपा ने 1993 में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई. 1995 में बसपा सरकार से हट गयी और कुछ महीने बाद भाजपा के समर्थन से मायावती फिर मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद 1997 और 2002 में भी बसपा ने भाजपा के साथ गठजोड़ कर सरकार बनायी.
ब्राह्मणों के सहारे सफलता की तैयारी
पार्टी ने 2007 में दलित-ब्राह्मण समुदाय के समर्थन पर अपने बूते पर पहली बार सरकार बनायी. उसे 403 सदस्यीय विधानसभा में 206 सीटें मिलीं. पार्टी इस बार भी राज्य के विभिन्न स्थानों पर ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करवा कर अपनी पुरानी सफलता को दोहराने के प्रयास में जुटी है. राज्य में दलितों की अनुमानित 20 प्रतिशत आबादी है जबकि ब्राह्मणों की आबादी करीब 13 प्रतिशत बतायी जाती है.
मायावती की अगुवाई में सरकार बनाने का दावा
मिश्रा ने ब्राह्मण सम्मेलनों को लेकर भाजपा और सपा पर तंज कसते हुये कहा, ''जब बसपा ने प्रबुद्ध विचार गोष्ठी आयोजित कर समाप्त कर दी तो भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी को प्रबुद्ध समाज विशेषकर ब्राह्मणों की याद आयी और इन दोनों पार्टियों ने भी ऐसे सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा कर दी. जल्दी ही देखियेगा कि जो बाकी बचे हुये दल हैं वह भी ऐसे सम्मेलनों की घोषणा करेंगे.'' मिश्रा ने दावा किया कि 2022 के उप्र विधानसभा के आम चुनाव में राज्य के 80 प्रतिशत ब्राह्मण, सौ प्रतिशत दलित और भारी संख्या में मुसलमान और पिछड़ा वर्ग उनकी पार्टी को वोट देंगे और मायावती के नेतृत्व में पांचवी बार प्रदेश में सरकार बनायेंगे.
इशारों-इशारों में ओवैसी पर निशाना
बसपा महासचिव मिश्रा ने बिना किसी पार्टी का नाम लिये कहा कि ''''यह जो दूसरे प्रदेशों के नेता यहां आकर मुस्लिम समाज को बरगलाने का काम कर रहे हैं, वह कामयाब नहीं हो पायेंगे, क्योंकि प्रदेश का मुसलमान जानता हैं कि कौन उनका अपना हैं और कौन पराया. फिर मुसलमान बहन जी के शासन को देख चुका हैं.'' मिश्रा का इशारा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुदीन ओवैसी की तरफ था जो उप्र विधानसभा चुनाव में 100 सीटें लड़ने की घोषणा कर चुके हैं और उन्होंने अपने चुनावी अभियान की शुरूआत भी कर दी हैं. बसपा नेता ने राज्य में छोटे छोटे राजनीतिक दलों के बारे में कहा कि ''यह छोटे छोटे दल भाजपा द्वारा प्रायोजित हैं और चुनाव के समय एक दम से खड़े हो जाते हैं अपनी जाति बिरादरी का वोट काटने के लिये लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला.''
निकाले गए नेताओं की घर वापसी संभव नहीं
मिश्रा से पूछा गया कि क्या अभी हाल में निकाले गये पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की घर वापसी हो सकती हैं तो उन्होंने कहा कि ''पार्टी से धोखा और साजिश करने वालों के लिए यहां कोई जगह नहीं है. दूसरी पार्टियों के नेता अगर बहुजन समाज पार्टी में आना चाहें तो उनका स्वागत है.'' बहुजन समाज पार्टी द्वारा जुलाई माह में विधानसभा में पार्टी के नेता लाल जी वर्मा और वरिष्ठ नेता राम अचल राजभर को पार्टी से निकाल दिया था. (ndtv.in)
संजय राउत ने यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का किया दावा
लखनऊ, 12 सितंबर। शिवसेना ने एक दिन पहले घोषणा की थी कि वह अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सभी 403 सीटों के लिए उम्मीदवार उतारेगी. आज शिवसेना नेता संजय राउत ने यूपी में 100 के आसपास सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है. साथ ही गोवा में 20 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है. शिवसेना का ये दांव यूपी चुनाव में बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ा सकता है.
शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा, 'आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हम 100 के आस-पास सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं और गोवा में हम 20 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं जिसकी तैयारियां चल रही हैं.'
शिवसेना कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार?
शिवसेना ने अभी तक किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं किया है, लेकिन गठबंधन की संभावना का संकेत दिया है. सूत्रों ने कहा कि शिवसेना कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार है क्योंकि कांग्रेस पहले से ही महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी है. महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार बनने के बाद शिवसेना और बीजेपी के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. इसके अलावा, यूपीसीसी अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पार्टी आने वाले दिनों में छोटे दलों के साथ गठबंधन करेगी. जबकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पहले कहा था कि पार्टी गठबंधन के विचार के लिए 'खुली' है.
यूपी की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला शिवसेना की प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया है. बैठक में शिवसेना नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार के शासन में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पूरी तरह फेल हो गई है. प्रदेश में बहन-बेटियां कोई भी सुरक्षित नहीं हैं. बेरोजगारी और महंगाई से जनता त्रस्त है. (abplive.com)
पश्चिम बंगाल की तीन विधानसभा सीटों पर 30 सितंबर को उपचुनाव होना है. हालांकि सुर्खियों में भवानीपुर सीट है, जहां से सीएम ममता बनर्जी चुनावी मैदान में उतर रही हैं. उनके सामने बीजेपी ने प्रियंका टिबरेवाल को उतारा है. प्रियंका टिबरेवाल का कहना है कि उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि अन्याय के खिलाफ है. उन्होंने ये भी कहा है कि मैं भवानीपुर में पैदा हुई हैं, ममता यहां पैदा नहीं हुईं हैं.
प्रियंका टिबरेवाल ने कहा, "ये पश्चिम बंगाल के लोगों को बचाने की लड़ाई है. हां, ये किसी एक शख्स (ममता बनर्जी) के खिलाफ है, जिसने राज्य में हुई हिंसा के दौरान चुप्पी साधे रखी."
प्रियंका टिबरेवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कहा कि मैं भवानीपुर में पैदा हुई हैं. ममता (बनर्जी) भवानीपुर में पैदा नहीं हुई हैं. उन्होंने कहा, "यहां (भवानीपुर में) लोगों ने टीएमसी से किसी को मैनडेट दिया, लेकिन ममता बनर्जी ने उन्हें हटाने का फैसला किया क्योंकि वो चुनाव लड़ना चाहती हैं. यहां लोकतंत्र की यह शर्त है. उन्हें लोगों के विचारों और वोटों का कोई सम्मान नहीं.
उन्होंने कहा, "मेरे खिलाफ जो उम्मीदवार (ममता बनर्जी) हैं वो एक चुनाव हार चुकी हैं. इसलिए भवानीपुर में उपचुनाव हो रहा है. वे (TMC) पहले से ही भवानीपुर में जीत चुके थे. लेकिन उन्हें लोकतंत्र या लोग क्या कह रहे हैं इसकी फिक्र नहीं."
मुख्यमंत्री बने रहने के लिए जीत ज़रूरी
नंदीग्राम में ममता की हार के बाद राज्य में कैबिनेट मंत्री और भवानीपुर से टीएमसी विधायक चुने गए सोभनदेब चट्टोपाध्याय ने मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी. अब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए ममता को उपचुनाव में जीत दर्ज करनी होगी. ममता बनर्जी भवानीपुर की ही निवासी हैं और उन्होंने 2011 और 2016 में दो बार इस सीट से जीत दर्ज की है. (abplive.com)
नई दिल्ली, 10 सितंबर। भारतीय जनता पार्टी के नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक बयान को लेकर उनपर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने जीएसटी की तुलना मां लक्ष्मी से की और कहा कि जीएसटी आने से मां लक्ष्मी की शक्तियां कम हो गई हैं. संबित पात्रा ने आश्चर्य करते हुए कहा कि कुछ दिन पहले आपने (राहुल गांधी) जीएसटी की तुलना गब्बर सिंह से की थी. जिस जीएसटी की तुलना आप गब्बर सिंह से कर रहे थे आज उसी की तुलना मां लक्ष्मी से कर रहे हैं. हमारी भावनाओं के साथ आप खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं?
संबित पात्रा ने राहुल गांधी के बयान पर कहा, "राहुल गांधी और कांग्रेस को दुख हो रहा है, क्योंकि जम्मू कश्मीर में तुष्टिकरण और भेदभाव की राजनीति खत्म हो रही है और विकासवाद आगे बढ़ रहा है. आज यह जान के दुख हुआ, आज कोई साधारण दिन नहीं, आज गणेश चतुर्थी है. ऐसे में भारती परंपराओं का हनन होता है. ऐसे में यदि हमारे देवी देवताओं का अपमान किया जाता है तो मुझे लगता है ये उचित नहीं है."
संबित ने कहा, "राहुल गांधी जी ने आज अपने भाषण में, मां वैष्णो देवी के तीर्थ स्थान को हम पिंडियों के रूप में कहते हैं. हम कहते हैं पिंडियां. उन्होंने कहा ये जो सिंबल्स (प्रतीक) हैं. सिंबल्स राजनीतिक पार्टी में होते हैं. ये मां की पिंडिया हैं." संबित पात्रा ने कहा कि इस तरह के शब्दों का प्रयोग करना कहीं न कहीं भावनाओं को ठेस पहुंचाना है.
राहुल गांधी ने क्या कहा है ?
राहुल गांधी ने कहा, ''कल जब मैं वैष्णो माता जी के मंदिर में गया, तब वहां त्रिशक्तियाँ थीं- दुर्गा जी, लक्ष्मी जी, सरस्वती जी. 'दुर्गा जी' जिन्हें हम दुर्गा माँ कहते हैं; दुर्गा शब्द 'दुर्ग' से आता है; 'दुर्गा माँ' यानी वो शक्ति जो रक्षा करती है.''
उन्होंने आगे कहा, ''लक्ष्मी मां यानी वो शक्ति जो 'लक्ष्य' को पूरा करती हैं; अगर आपका लक्ष्य' पैसा है, तो जो आपने कहा वो भी सही है. आपका लक्ष्य कुछ और है तो उस लक्ष्य को पूरा करने की जो शक्ति हमें मिलती है, वो हैं 'लक्ष्मी मां'.''
राहुल गांधी ने कहा, ''सरस्वती जी वो शक्ति हैं, जिन्हें हम विद्या, ज्ञान की देवी/शक्ति कहते हैं. ये त्रिशक्तियाँ हैं. ये त्रिशक्तियाँ जब घर में होती हैं या देश में होती हैं, तो देश की तरक्की होती है. हिन्दुस्तान में नोटबंदी और GST से माँ लक्ष्मी जी शक्ति घटी है या बढ़ी है? किसानों के बनाए गए तीन काले कानूनों से दुर्गा माँ की शक्ति घटी है या बढ़ी है? जब हिन्दुस्तान के हर संस्थान में, कॉलेज और स्कूल में RSS का व्यक्ति बैठाया जाता है तो सरस्वती माँ की शक्ति घटती है या बढ़ती है? जवाब है- घटती है.''
उन्होंने कहा कि जो (बीजेपी) अपने आपको हिन्दू कहते हैं, वो वैष्णो देवी के मंदिर में जाकर माथा टेकते हैं और उन्हीं त्रिशक्तियों का अपमान करते हैं. कहते हैं कि हम धार्मिक लोग हैं और फिर उन्हीं शक्तियों को दबाने का काम करते हैं. (abplive.com)
नई दिल्ली, 3 सितंबर।अगले साल देश के पांच राज्यों, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा के चुनाव हैं. साल की शुरुआत में ही इन राज्यों में चुनाव होंगे यही वजह है कि तमाम राजनीतिक पार्टियों ने कुछ महीने पहले ही चुनाव की तैयारी शुरू कर दी हैं. चुनावी माहौल को भांपते हुए सी वोटर ने एबीपी न्यूज़ के लिए सर्वे किया है और इन पांच राज्यों की जनता की सियासी नब्ज़ टटोलने की कोशिश की है. सर्वे में ये जानने का प्रयास किया गया है कि किस इन चुनावी राज्यों में किस पार्टी को सत्ता मिल सकती है और कौन सत्ता से बेदखल हो सकता है. इसके अलावा सर्वे में इन राज्यों में सीएम के तौर पर लोग किन्हें पसंद करते हैं, इसे भी जानने की कोशिश की गई है.
किस राज्य में किसे कितनी सीटें ?
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 259 से 267 सीटें मिल सकती हैं. इसके अलावा समाजवाद पार्टी को 109-117 सीटें, बीएसपी को 12-16 सीटें, कांग्रेस को 3-7 सीटें और अन्य को 6-10 सीटें मिल सकती हैं.
पंजाब
सर्वे के मुताबिक आम आदमी पार्टी इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है. पंजाब में विधानसभा कि 117 सीटें हैं. आप को 51 से 57 सीटें मिल सकती हैं. वहीं कांग्रेस को 38 से 46, एसएडी को 16 से 24, बीजेपी और अन्य को 0 से एक सीट मिल सकती है.
उत्तराखंड
उत्तराखंड में सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को 44 से 48 सीटें, कांग्रेस को 19 से 23 सीटें, आम आदमी पार्टी को 0 से 4 सीटें और अन्य को 0 से 2 सीटें मिलने का अनुमान है.
गोवा
गोवा में बीजेपी एक बार फिर सत्ता हासिल कर सकती है. बीजेपी के खाते में 22 से 26 सीटें, कांग्रेस के खाते में 3-7 सीटें, आम आदमी पार्टी के खाते में 4-8 सीटें और अन्य के खाते में 3-7 सीटें जाने का अनुमान है.
मणिपुर
साल 2022 के मणिपुर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 18 से 22 सीटें मिल सकती हैं, जबकि बीजेपी गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ राज्य में सरकार बना सकती है. बीजेपी गठबंधन को 32 से 36 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं एनपीएफ को महज़ 2 से 6 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ सकता है. जबकि अन्य के खाते में 0 से 4 सीटें जा सकती हैं.
वोट फिसदी के मामले में कौन आगे
उत्तर प्रदेश
सर्वे के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बीजेपी गठबंधन को 42 फीसदी वोट मिल सकते हैं. इसके अलावा समाजवादी पार्टी गठबंधन को 30 फीसदी, बहुजन समाज पार्टी को 16 फीसदी, कांग्रेस को 5 फीसदी और अन्य को 7 फीसदी वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है.
पंजाब
सर्वे के मुताबिक, पंजाब में कांग्रेस के खाते में 28.8 फीसदी, शिरोमणि अकाली दल के खाते में 21.8 फीसदी, आम आदमी पार्टी के खाते में 35.1 फीसदी, बीजेपी के खाते में 7.3 फीसदी और अन्य के खाते में 7 फीसदी वोट आने का अनुमान है.
उत्तराखंड
एबीपी न्यूज़ सी वोटर सर्वे के मुताबिक, उत्तराखंड में बीजेपी को 43 फीसदी, कांग्रेस को 23 फीसदी, आम आदमी पार्टी को 6 फीसदी और अन्य को 4 फीसदी वोट शेयर हासिल हो सकता है.
मणिपुर
एबीपी न्यूज़ सी वोटर सर्वे के मुताबिक, मणिपुर में बीजेपी के खाते में 40 फीसदी वोट आने का अनुमान है. इसके अलावा, कांग्रेस के खाते में 35 फीसदी, एनपीएफ के खाते में 6 फीसदी और अन्य के खाते में 17 फीसदी वोट शेयर जाने की उम्मीद है.
गोवा
एबीपी न्यूज़ सी वोटर के मुताबिक, गोवा में बीजेपी को 39 फीसदी, कांग्रेस को 15 फीसदी, आम आदमी पार्टी को 22 फीसदी और अन्य को 24 फीसदी वोट हासिल हो सकते हैं.
मुख्यमंत्री के तौर पर किस राज्य में कौन पहली पसंद
उत्तराखंड
उत्तराखंड में सीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर 30 फीसदी लोग हरीश रावत को चाहते हैं, 23 फीसदी लोग मौजूदी सीएम पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के तौर पर पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा, अनिल बलूनी 19 फीसदी, कर्नल कोठियाल 10 फीसदी, सतपाल महाराज 4 फीसदी और 14 फीसदी लोग नए चेहरे के पक्ष में हैं.
उत्तर प्रदेश
सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में सबसे ज्यादा 40 फीसदी लोग योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में फिर से देखना चाहते हैं. सपा के मुखिया अखिलेश यादव को 27 फीसदी लोग सीएम के तौर पर पसंद करते हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती को 14 फीसदी, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को तीन फीसदी, आरएलडी नेता जयंत चौधरी को दो फीसदी और अन्य को 12 फीसदी लोग पसंद करते हैं.
पंजाब
मुख्यमंत्री के तौर पर पंजाब में 21.6 फीसदी लोगों ने अरविंद केजरीवाल को पसंद किया है. वहीं 17.6 फीसदी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह, 18.8 फीसदी ने सुखबीर सिंह बादल, 16.1 फीसदी ने भगवंत मान, 15.3 फीसदी ने नवजोत सिद्धू और 10 फीसदी ने अन्य पर भरोसा जताया.
गोवा
गोवा में मुख्यमंत्री के तौर लोगों की पहली पसंद बीजेपी के प्रमोद सावंत ही हैं. सर्वे में 33.2 फीसदी ने उन्हें सीएम के तौर पर अपनी पहली पसंद बताया. उनके बाद आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को 13.8 फीसदी, बीजेपी के विश्वजीत राणे को 13.6 फीसदी, एमजीपी के रामकृष्ण धवालिकर 8.8 फीसदी, कांग्रेस के रवि नाइक 4.5 फीसदी, कांग्रेस के दिगम्बर कामत 4.5, कांग्रेस के लुइज़िनो फलेरो 3.7 फीसदी, बीजेपी के अटानासियो (बाबुश) मोनसेराटे 2.7 फीसदी और अन्य को 15.2 फीसदी लोगों ने बतौर सीएम अपनी पसंद माना. (abplive.com)
नई दिल्ली: कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश में ऑक्सीजन की सप्लाई और ऑडिट को लेकर बने नेशनल टॉस्क फोर्स की रिपोर्ट दो हफ्तों में पेश करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है. SC ने केंद्र को टास्क फोर्स के सुझावों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों पर NTF रिपोर्ट और कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने को कहा है. अदालत ने कहा, चूंकि नेशनल टॉस्क फोर्स में वरिष्ठ डॉक्टर और विशेषज्ञ हैं इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र यह सुनिश्चित करेगा कि सिफारिशों को नीति स्तर पर लागू किया जाए.अब कोविड पर स्वत: संज्ञान मामले के साथ ही होगी सुनवाई.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो दोनों मामलों को एक साथ ही सुनेगा.केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऑक्सीजन सप्लाई और ऑडिट पर नेशनल टास्क फोर्स की फाइनल रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी गई है. सभी राज्यों से कहा गया है कि वे अपने-अपने राज्यों में ऑक्सीजन ऑडिट कराने के लिए अपना टास्क फोर्स बनाएं. दिल्ली की ऑक्सीजन आवश्यकता का मूल्यांकन करने के लिए उपसमूह की अंतरिम रिपोर्ट जून में प्रस्तुत की गई थी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, चूंकि एनटीएफ में वरिष्ठ डॉक्टर और विशेषज्ञ होते हैं, इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगा कि सिफारिशों को नीति स्तर पर विधिवत लागू किया जाए. इस मामले की सुनवाई अब कोविड की तैयारियों पर स्वत: संज्ञान लेने के मामले के साथ होगी NTF रिपोर्ट और केंद्र की कार्रवाई रिपोर्ट की कॉपी भी एमिकस क्यूरी और सभी राज्य के वकीलों को 2 सप्ताह के भीतर देने को कहा गया है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स अपनी रिपोर्ट दाखिल कर चुकी हैं.
दरअसल 5 मई को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजधानी में ऑक्सीजन की कमी के बारे में आप सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया था.साथ ही ऑक्सीजन की खपत को लेकर एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता में ऑडिट के लिए एक उप कमेटी गठित की थी.समिति ने दिल्ली के चार अस्पतालों ने कुछ बेड होने के बावजूद ऑक्सीजन की अधिक खपत का दावा किया. दिल्ली के अस्पतालों द्वारा पैनल को दिए गए आंकड़ों में विसंगतियां पाई गईं.
सिंघल अस्पताल, अरुणा आसिफ अली अस्पताल, ESIC मॉडल अस्पताल और लाइफरे अस्पताल में कुछ बेड थे और उनका डेटा गलत था. इससे दिल्ली में ऑक्सीजन का अतिरंजित दावा हुआ. - दिल्ली सरकार के आंकड़े कहते हैं कि 29 अप्रैल से 10 मई तक खपत 350MT से अधिक नहीं थी.260 अस्पतालों को समिति द्वारा डेटा देने के लिए प्रोफार्मा भेजा गया और 183 ने जवाब दिया, इसमें 10916 गैर-आईसीयू बेड, और 4162 आईसीयू बेड थे.
उधर, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित ऑक्सीजन ऑडिट के लिए बनाये गए उप-समूह में 5 में से 2 सदस्य अलग बात कह रहे हैं, जो रिपोर्ट में ही संलग्न है. दिल्ली के प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) भूपेंद्र सिंह भल्ला ने लिखा है कि अप्रैल के आखिर में बेड ऑक्युपेंसी के आधार पर दिल्ली की ऑक्सीजन की जरूरत 625 MT थी, और मई के पहले हफ़्ते में 700 MT थी.उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में जोड़ा जाए कि दिल्ली सरकार का ऑक्सीजन रिक्वायरमेंट का फार्मूला आईसीएमआर गाइडलाइंस के आधार पर है.
जबकि इस समिति के दूसरे सदस्य मैक्स हॉस्पिटल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ संदीप बुद्धिराजा ने लिखा है. 214 अस्पतालों की ऑक्सीजन की खपत के आधार पर पाया गया कि 490 MT रोज़ाना की खपत थी जबकि इसके अंदर ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफिलिंग और गैर-कोरोना ज़रूरत वाली ऑक्सीजन ज़रूरत का डेटा शामिल नही था.
दिल्ली में ऑक्सीजन को लेकर उप समिति ने कई अहम सिफारिशें सौंपी थी. इसमें कहा गया था कि दिल्ली को सुनिश्चित आधार पर 300 मीट्रिक टन स्टॉक उपलब्ध कराया जाए.दिल्ली को 100 मीट्रिक टन का अतिरिक्त कोटा भी उपलब्ध कराया जाए ताकि दिल्ली इसे शाम 4 बजे तक उठा सके.
दिल्ली किसी भी आपातस्थिति के लिए 50-100 मीट्रिक टन का बफर स्टॉक रखे. मामले कम होने के दौरान अस्पतालों में PSA संयंत्र स्थापित किए जाएं.ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की उपलब्धता में वृद्धि हो.दिल्ली की औसत दैनिक आवश्यकता लगभग 400 मीट्रिक टन है.दिल्ली के लिए फिक्स कोटा हो और बची हुई ऑक्सीजन अन्य राज्यों को दिया जाना चाहिएदिल्ली की वर्तमान आवश्यकता 290 से 400 एमटी के बीच है.
वहीं देश भर में ऑक्सीजन प्रबंधन के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त नेशनल टास्क फोर्स ने रिपोर्ट दाखिल की है. इसमें कहा गया है कि भविष्य में कोरोना की लहरों का मुकाबला करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की तर्ज पर ऑक्सीजन रिजर्व बनाने की रणनीति बनाई जाए. NTF ने कहा है कि देश के लिए 2-3 सप्ताह की खपत को कवर करने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों के लिए की गई व्यवस्था के समान ऑक्सीजन का रणनीतिक भंडार होना चाहिए. इसी तरह, सभी अस्पतालों में आपात स्थिति के लिए बफर क्षमता होनी चाहिए.
नेशनल टास्क फोर्स ने देश भर में ऑक्सीजन की जरूरतों को निर्धारित करने के लिए फॉर्मूला सुझाया. 100 बेड वाले अस्पताल के लिए 25 फीसदी आईसीयू बेड के लिए आवश्यक 1.5 मीट्रिक टन लिक्विड ऑक्सीजन का फार्मूला हो. राज्य इसी फार्मूले के आधार पर अगले 24 घंटों के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मांग के लिए केंद्र से मदद मांगे. रिपोर्ट के अनुसार, अगली महामारी के लिए ऑक्सीजन उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है और सरकार को संबंधित उद्योगों को समर्थन और सब्सिडी देनी चाहिए.
सभी राज्यों में शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार ऑक्सीजन ऑडिट पैनल होने चाहिए. ऑक्सीजन के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए अस्पतालों का ऑडिट जरूरी है.ऑक्सीजन उत्पादन परिवहन द्वारा 24 घंटे के भीतर पहुंचाया जाए. आपात स्थिति से निपटने के लिए राज्य और जिला भंडारण के साथ ऑक्सीजन के लिए स्टोरेज हब होना चाहिए. (ndtv.in)
नोएडा. जदयू के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह सक्रिय हो गए हैं. उनकी पहली चिंता जदयू को उसकी पारंपरिक पहचान से छुटकारा दिलाकर उसे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में पहचान दिलाना है. इसी संदर्भ में उन्होंने संवाददाताओं से अपनी मंशा जताई. जदयू अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ने कहा कि हमारा लक्ष्य जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाना है. मैंने मणिपुर और यूपी में पार्टी नेताओं के साथ चर्चा की है. हम एनडीए के भागीदारों के साथ चर्चा करेंगे, अगर वे हमें इन राज्यों में भागीदार नहीं बनाते हैं, तो हम अकेले चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे.
बता दें कि बीते 31 जुलाई को दिल्ली में जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सांसद ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना था. पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष आरसीपी सिंह को हाल ही में केंद्र में इस्पात मंत्री बनाया गया है. अब पार्टी की कमान ललन सिंह के हाथ में सौंप दी गई है. बता दें कि बिहार के मुंगेर संसदीय सीट से सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को भी नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है.
जदयू के पार्टी अध्यक्ष का संदेश.
जेडीयू सांसद ललन सिंह को जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 31 जुलाई को हुई बैठक में पार्टी का नया अध्यक्ष चुना गया था. आरसीपी सिंह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने पद से इस्तीफा दिया और उसके बाद ललन सिंह को जेडीयू के अध्यक्ष पद पर चयन किया गया है. मालूम हो कि आरसीपी सिंह केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बन चुके हैं. इसके बाद उन्होंने जेडीयू के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी से इस्तीफा दिया.
ललन सिंह मुंगेर से पार्टी के सांसद हैं और बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. ललन सिंह जेडीयू के 18 साल के इतिहास में पहले सवर्ण अध्यक्ष हैं. इससे पहले तीनों अध्यक्ष ओबीसी से थे और माना जा रहा है कि सवर्ण जाति के ललन सिंह का अध्यक्ष पद पर चुनाव सामजिक समीकरण को साधने के लिए किया गया है. (news18.com)
-Vijay jha
पटना. बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है. सीएम नीतीश कुमार ने इसको लेकर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि उनको पीएम मोदी के बुलावे का इंतजार है. वहीं, राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल अब जातीय जनगणना कराए जाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरने का निर्णय लिया है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद जातीय जनगणना कराए जाने सहित अन्य मांगों को लेकर 7 अगस्त को राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन करेगी. सवाल यह है कि अब जब सीएम नीतीश कुमार ने यह कह दिया है कि बिहार का एक डेलिगेशन पीएम मोदी से इस सिलसिले में मुलाकात करने वाला है तो तेजस्वी यादव विरोध प्रदर्शन से क्या संदेश देना चाहते हैं?
दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 7 अगस्त 1990 को संसद में मंडल की सिफारिशें लागू करने की घोषणा की थी. इसके तहत पूरे देश में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला हुआ था. उस दौर में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने मंडल राजनीति के आधार पर अपने पक्ष में हवा बनाई थी और सत्ता-सियाकत पर पकड़ बनाकर अपनी ताकत दिखाई थी. राजनीतिक जानकारों की मानें तो एक बार फिर इसी वोट बैंक को फिर से भुनाने के लिए एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन शुरू हो रहा है.
बिहार के सभी जिला मुख्यालयों पर राजद का प्रदर्शन
बताया जा रहा है कि राजद 7 अगस्त को बिहार के सभी जिला मुख्यालयों पर आरजेडी के कार्यकर्ता धरना प्रदर्शन करेंगे. इसमें जातीय जनगणना कराने, आरक्षित कोटे से बैकलॉग के लाखों रिक्त पद भरने और मंडल आयोग की शेष रिपोर्ट लागू करने की मांग होगी. राजद के महासचिव आलोक कुमार मेहता के अनुसार जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने के बाद जिलाधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा जाएगा. इसकी सूचना सभी सांसदों, विधायकों, सभी जिलाध्यक्षों और पार्टी के अन्य अधिकारियों को भेज दी गई है.
सीएम नीतीश ने पीएम मोदी को लिखा पत्र
बता दें कि राज्य में जातीय जनगणना के मामले को लेकर राज्य में सत्तारूढ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल जनता दल युनाइटेड भी राजद के साथ है. जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दिल्ली में हुई बैठक में इस संबंध का प्रस्ताव पास किया गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जातीय जनगणना को लेकर पहले ही कह चुके हैं कि जातीय जनगणना आवश्यक है. सीएम नीतीश कुमार ने इसको लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है और कहा है कि पीएम मोदी के बुलावे का इंतजार है.
मंडल कमीशन ने जाति आधारित गिनती पर कही थी यह बात
बता दें कि सीएम नीतीश कई बार कह चुके हैं कि जाति के आधार पर जनगणना एक बार तो की ही जानी चाहिए, इससे सरकार को दलितों के अलावा अन्य गरीबों की पहचान करने और उनके कल्याण के लिए योजनाएं बनाने में सुविधा होगी. गौरतलब है कि मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के शुरू में ही कहा था कि जातियों के आंकड़े न होने की वजह से उसे काम करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, इसलिए अगली जनगणना में जातियों के आंकड़े भी जुटाए जाएं.
जातीय जनगणना पर लालू यादव और नीतीश कुमार साथ-साथ
लालू प्रसाद ने भी कहा है कि छह लाख परिवार इस देश में भीग मांग रहा है. उनसे पूछिए वे किस जाति के हैं. लालू कहते हैं कि जातीय जनगणना का विरोध करने वाले लोगों को कोई अक्ल नहीं है. बैक बेंचर के लिए अलग से बजट बनाइए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से इस मामले पर पुनर्विचार करने का भी अनुरोध किया है. बिहार राजग में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा भी जातीय जनगणना कराने की जदयू की मांग का समर्थन कर चुकी है.
केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना से कर दिया है इनकार
राजनीतिक जानकारों की मानें तो लालू प्रसाद के फिर से सक्रिय होने के साथ ही राजद एक बार फिर अपनी पुरानी राजनीति पर लौटता दिख रहा है. 7 अगस्त को मंडल दिवस के अवसर पर आरजेडी ने अब मंडल की राजनीति को धार दने की तैयारी कर ली है. इसकी वजह यह भी मानी जा रही है हाल में ही भाजपा नेता व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने स्पष्ट रूप से संसद में कहा था कि केंद्र सरकार जातीय जनगणना नहीं करवाएगी.
सियासत के अंदरखाने की यह है कहानी
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि चूंकी लालू प्रसाद यादव की राजनीति भाजपा विरोध की रही है इसलिए आरजेडी इस मुद्दे पर भाजपा को चौतरफा घेरना चाहती है. इसके साथ ही लालू यादव सीएम नीतीश कुमार की राजनीति को भी कुंद करना चाहते हैं. इसका कारण यह माना जा रहा है कि बिहार में पिछड़े वर्ग से यादव छोड़ अन्य मुख्य जातियों का समर्थन सीएम नीतीश कुमार के साथ है. ऐसे में इसका अप्रत्यक्ष लाभ भाजपा को भी मिलता रहा है.
मंडल राजनीति और भाजपा विरोध की पॉलिटिक्स
राजनीतिक जानकारों की मानें तो पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी पिछड़े वर्ग से आते हैं. माना जा रहा है कि हाल के दिनों में पिछड़ों का वोट भाजपा की ओर बड़े पैमाने पर शिफ्ट हुआ है. ऐसे में लालू-नीतीश जैसे नेताओं के जनाधार को काफी नुकसान हुआ है. ऐसे में अब एक बार फिर मंडल राजनीति के आधार पर भाजपा विरोध की सुगबुगाहट है.
राजद नेता के बयान से समझें सियासत की हकीकत
यह बात बिहार के आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के इस बयान से भी स्पष्ट हो जाती है कि आरएसएस की सवर्णवादी सोच की वजह से भाजपा जातीय जनगणना नहीं कराना चाहती है. बता दें कि वर्ष 2015 में इसी राजनीति के कारण लालू-नीतीश एक साथ आए थे और मोदी लहर के बावजूद भाजपा को लालू-नीतीश ने मिलकर पिछड़ा विरोधी करार दे दिया था. अब जब केंद्र की मोदी सरकार ने मेडिकल कोटे में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान कर दिया है तो आरजेडी-जेडीयू जैसी पार्टियों को फिर से खतरा महसूस होने लगा है. ऐसे में लालू यादव ने अब मंडल की राजनीति को धार दने की तैयारी कर ली है. (news18.com)
पटना, 3 अगस्त| बिहार में सत्तारूढ़ सहयोगी जद (यू) और भाजपा के बीच विवाद के बीच जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके पद से हटाने की क्षमता किसी में नहीं है। बेगूसराय में पार्टी समर्थकों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के इकलौते नेता हैं और पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे।
कुशवाहा ने कहा, "विभिन्न दलों के इतने नेता विचार कर रहे हैं कि नीतीश कुमार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकते हैं। मेरा मानना है कि देश में कोई ताकत नहीं है, जो उन्हें अगले पांच वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाने से रोक सकती है। उनका कार्यकाल समाप्त होने से एक घंटे पहले भी उन्हें हटाया भी नहीं जा सकता।"
कुशवाहा का यह बयान ऐसे समय आया है जब भाजपा के कई नेताओं ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने 'राजनीतिक मजबूरियों' के चलते नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है।
बीजेपी के मंत्री सम्राट चौधरी ने खुलकर कहा है कि उनकी पार्टी के पास 74 और जेडीयू के पास 43 सीटें हैं, फिर भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को शीर्ष पद दिया है।
कुशवाहा ने रविवार को नीतीश कुमार को 'पीएम मटेरियल' घोषित किया था, जिससे भाजपा नेताओं ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। (आईएएनएस)
अरुण सिंह
मुंबई. महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले मंगलवार को अपने उस बयान से पलटते नजर आए जिसमें वो लगातार कह रहे थे कि भविष्य में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा, 'मैंने कोई बयानबाज़ी नहीं की, सिर्फ अपनी पार्टी आगे बढ़ाने के लिए काम किया, यही काम एनसीपी करती है और यही काम शिवसेना भी करती है. सबको अपनी पार्टी आगे बढ़ाने का हक़ है.' उल्लेखनीय है कि शिवसेना-राकांपा और कांग्रेस तीनों मिलकर महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार चला रहे हैं.
पटोले ने कहा, 'हमारी पार्टी महाराष्ट्र में क्यों नहीं सबसे बड़ी बनेगी? हमारा बेस रहा है महाराष्ट्र, उसको मज़बूत करना हमारा काम है. राहुल गांधी ने पार्टी को मज़बूत करने का प्लान दिया है.' इसके साथ ही उन्होंने साफ किया कि महाराष्ट्र में एमवीए सरकार 5 साल चलेगी और इसमें कोई दो राय नहीं है. पटोले ने बताया कि स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस बिना किसी गठबंधन के उतरेगी, जबकि आगामी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में पार्टी नेतृत्व फैसला करेगा चुनाव अकेले लड़ना है या गठबंधन में.
पिछले विधानसभा चुनाव के संदर्भ में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर परोक्ष हमला बोलते हुए महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने बीते 14 जुलाई को कहा था कि 2014 में उनकी पार्टी के साथ 'धोखा' किया गया था और वह अब उसी को ध्यान में रखकर 2024 के आम चुनाव की तैयारी कर रही है. पटोले ने यहां संवाददाताओं से यह भी कहा था कि उन्हें विपक्षी भाजपा को निशाना बनाने का दायित्व दिया गया था, शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा या शिवसेना को नहीं.
भविष्य में कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की प्राय: बात करते रहने वाले पटोले ने कहा था, 'हमें (कांग्रेस) 2014 में धोखा दिया गया था. उसे ध्यान में रखते हुए हम अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं.' पटोले का इशारा महाराष्ट्र में 2014 के विधानसभा चुनाव में राकांपा के अकेले लड़ने के कदम की ओर था.
कांग्रेस के एक तबके का मानना है कि राकांपा के निर्णय से भाजपा को लाभ हुआ जिसने 122 सीट जीती थीं और सरकार बनाने का दावा किया था. (इनपुट भाषा से भी)(news18.com)
अनूप कुमार
नई दिल्ली. संसद भवन में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को स्थायी कमरा अलॉट किया गया है. ये वो कमरा है जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कमरा हुआ करता था. ये कमरा बीजेपी संसदीय दल के कार्यालय के ठीक बगल वाला कमरा नंबर 4 है. ये कमरा पिछले 2 सालों से किसी के उपयोग में नहीं था.
2004 में संसद भवन का कमरा नंबर 4 बतौर एनडीए अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को अलॉट किया गया था. हालांकि सेहत की वजह से अटल बिहारी बाजपेयी ने कभी इस कमरे का उपयोग नहीं किया. इसके बाद इस कमरे को बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के लिए अलॉट किया गया. लालकृष्ण आडवाणी संसद सत्र के दौरान लगातार इस कमरे से ही काम करते रहे. 2019 का लोकसभा चुनाव लालकृष्ण आडवाणी ने नहीं लड़ा, इसके बाद से ही ये कमरा खाली पड़ा हुआ था.
अब ये महत्वपूर्ण कमरा जेपी नड्डा को आवंटित किया गया है. यानी नड्डा का संसद भवन में ये स्थायी ठिकाना होगा. जेपी नड्डा 20 जनवरी 2020 को बीजेपी के 11वें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए. इससे पहले अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष थे. संसद भवन में पार्टी और संसदीय दल के नेता को भी कमरे अलॉट किए जाते हैं और यही वजह है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को कमरा अलॉट किया गया है.
हालांकि इस कमरे से एक विवाद भी जुड़ा हुआ है. 2014 में बीजेपी की सरकार आने के बाद इस कमरे से लालकृष्ण आडवाणी का नाम हटा दिया गया था, जबकि अटल बिहारी बाजपेयी का नाम था. उस वक़्त ये कहा गया कि चूंकि उस वक़्त राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेता किसी को नहीं चुना गया है, इसलिए नाम हटाया गया. हालांकि बाद में लालकृष्ण आडवाणी का नाम को फिर से लगा दिया गया था. इस कमरे का महत्व इसलिए भी बहुत ज्यादा है क्योंकि ये कमरा बीजेपी संसदीय दल के कमरे और पीएम आफिस से ज्यादा दूर नहीं है.(news18.com)
लखनऊ. समाजवादी पार्टी के रामपुर से सांसद आजम खान की तबीयत खराब है. उनका इस समय लखनऊ के मेदांता अस्पताल में इलाज चल रहा है. वहीं, खबर आ रही है कि थोड़ी देर में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मेदांता अस्पताल पहुंच रहे हैं. अखिलेश यादव अस्पताल में आजम खान की तबीयत का हाल जानने पहुंच रहे हैं. बता दें कि सीतापुर जेल में तबीयत बिगड़ने पर सोमवार को ही आजम खान को शिफ्ट कराया गया है. अखिलेश यादव दिल्ली में लोकसभा के सत्र में भाग लेने गए थे. सत्र बीच में छोड़कर ही वह लखनऊ लौट रहे हैं. अखिलेश लखनऊ पहुंचकर अमौसी एयरपोर्ट से सीधे मेदांता अस्पताल जाएंगे.
बता दें कि आजम खान पर 80 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं, जबकि उनके बेटे अब्दुल्ला पर 40 से ज्यादा केस दर्ज हैं. जानकारी के अनुसार, अधिकतर मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है, अब कुछ मुकदमों में ही जमानत मिलनी बाकी है.
दरअसल, आजम की तबीयत सोमवार को अचानक बिगड़ गई थी. इसके बाद उन्हें जिला जेल से जिला अस्पताल भेजा गया. जहां से उनको फिर लखनऊ के मेदांता अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया है. सीतापुर जिला अस्पताल के डॉक्टर डी लाल ने बताया कि सपा सांसद का ऑक्सीजन लेवल 88 तक पहुंच गया है. ऑक्सीजन लेवल कम होने के चलते उन्हें लखनऊ रेफर किया गया है.
UP: सीतापुर जेल से मेदांता अस्पताल में शिफ्ट किए गए आजम खान, सामने आई तस्वीर
आजम को बीती 13 जुलाई को लखनऊ के मेदांता अस्पताल से दोबारा सीतापुर जिला जेल में शिफ्ट किया गया था. उनका लखनऊ के मेदांता अस्पताल में करीब तीन महीने तक इलाज चला था. जेल में अचानक उनकी तबीयत फिर खराब हो गई. सांस लेने में तकलीफ होने पर उनको जिला अस्पताल भेजा गया. जहां से एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस से उनको लखनऊ के मेदांता अस्पताल भेजा गया है. उनको सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही है.
गौरतलब है कि आजम खान सीतापुर जेल में सवा साल से बंद हैं. पिछले दिनों कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें मेदांता अस्पताल में एडमिट कराया गया था. इससे पहले आजम पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था. जिसकी जांच अब तेज हो गई है.(news18.com)
हरीश मलिक
जयपुर. तमाम अंतर्विरोधों के बीच पंजाब में चल रहे कैप्टन वर्सेज सिद्धू के विवाद को कांग्रेस आलाकमान ने सुलझा लिया है. सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बाद माना जा रहा है कि अब कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव की तैयारी करेगी. अब सबकी नजर राजस्थान में काफी लंबे समय से चल रहे गहलोत बनाम पायलट विवाद पर है. कांग्रेस अब इस सियासी विवाद का भी जल्द पटाक्षेप करने के मूड में है.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक फिलहाल राजस्थान के मुख्यमंत्री में कोई बदलाव नहीं होगा. गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे. एआईसीसी संगठन में बदलाव होना है और उसी प्रक्रिया के तहत सचिन पायलट को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है. उन्हें राजस्थान का प्रभार भी दिया जा सकता है. इसके अलावा मंत्रिमंडल विस्तार भी जल्द होगा और उनमें उन्हें भी जगह मिलेगी, जिन्हें सचिन मंत्री बनाना चाहते हैं. उनके कितने समर्थक मंत्री बन सकते हैं, यह संख्या अभी निर्धारित नहीं हुई है.
राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल में आएंगे समर्थक
इसके अलावा राजनीतिक नियुक्तियों, जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों में सचिन के समर्थकों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. पार्टी आलाकमान का मानना है कि बोर्ड और निगमों में पायलट या गहलोत गुट को महत्व देने के बजाए पार्टी के आस्थावान कार्यकर्ताओं को इसमें जगह दी जाएगी. फिलहाल इस बदलाव के साथ पार्टी को एकजुट करने के प्रयास किए जा सकते हैं.
प्रशांत किशोर यहां भी कर सकते हैं मदद
सूत्रों के मुताबिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पंजाब के कैप्टन और सिद्धू मसले को सुलझाने में कांग्रेस आलाकमान की काफी मदद की है. पीके पहले से ही कैप्टन अमरिंदर सिंह के सलाहकार के रूप में काम कर ही रहे हैं. अब गहलोत और पायलट विवाद में भी वे अपनी ओर से कोई हल सुझा सकते हैं. ताकि इस विवाद का पटाक्षेप हो सके.
पंजाब सुलह के बाद अब राजस्थान पर नजर
पंजाब कांग्रेस के विवाद को हल करने के बाद कांग्रेस का अब पूरा ध्यान राजस्थान पर आ गया है. पार्टी अब इस विवाद को और लंबा नहीं खींचना चाहती. इसके लिए कोई ऐसा बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है, जिससे दोनों पक्ष मान जाएं. इस फार्मूले में दोनों ही पक्षों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जाएगी.
एक साल से ज्यादा समय से चल रहा है विवाद
एक साल से ज्यादा समय से गहलोत वर्सेज पायलट का विवाद चल रहा है. इसके चलते पिछले साल जबर्दस्त सियासी संकट के आसार भी बने, लेकिन गहलोत चाणक्य नीति चलते हुए सियासी भंवर से पार हो गए. सचिन पायलट और उनके समर्थकों के हिस्से कुछ भी नहीं आया. तब से राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल विस्तार भी अटका ही हुआ है.(news18.com)
चेन्नई, 8 जुलाई | तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष एल. मुरुगन के केंद्रीय मंत्रिपरिषद में पदोन्नत होने से उनके द्वारा खाली किए गए पार्टी पद के लिए तीव्र पैरवी शुरू हो गई है। हालांकि, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने के. अन्नामलाई को तमिलनाडु इकाई के नए अध्यक्ष के रूप में नामित करने के लिए तेजी से कदम बढ़ाया है। कर्नाटक कैडर के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी, अन्नामलाई ने अपने पैतृक करूर जिले में एक धर्मार्थ फाउंडेशन शुरू करने के लिए सिविल सेवा छोड़ दी। वह पिछले साल भाजपा में शामिल हुए और हाल ही में अरुवाकुरिची निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा।
अन्नामलाई के मार्च, 2020 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मुरुगन ने यह सुनिश्चित किया कि हाल के चुनावों के बाद पार्टी राज्य विधानसभा में शून्य से चार तक पहुंचने में सक्षम थी।
वह एक जमीनी नेता भी साबित हुए और भाजपा की कमजोर उपस्थिति के बावजूद भगवान सुब्रमण्यम को बदनाम करने वाले करुप्पु कुट्टम से संबंधित नास्तिक समूहों का विरोध करने के लिए राज्य भर में वेत्रिवेल यात्रा निकालने में सक्षम रहे थे।
भाजपा की कमजोरियों के कारण वेत्रिवेल यात्रा जन आंदोलन नहीं बन सकी, लेकिन मुरुगन ने अपनी संगठनात्मक क्षमता को साबित किया और उन्हें पुरस्कृत किया गया। जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद हथियाने के लिए था, तो संभावितों के कई नामों पर चर्चा हो रही थी। एक थे राज्य इकाई के महासचिव के.टी. राघवन।
पेशे से वकील और राज्य भाजपा के पूर्णकालिक सक्रिय नेता राघवन को मुरुगन का समर्थन प्राप्त था। भाजपा और आरएसएस के साथ उनके मजबूत संगठनात्मक संबंधों और उनके सौम्य व्यवहार के लिए धन्यवाद, उन्हें एक प्रमुख दावेदार माना जाता था।(आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 5 जुलाई | मध्य प्रदेश के देवास जिले के नेमावर में पिछले दिनों एक ही परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के मामले ने सियासत को गर्मा दिया है। इस हत्याकांड को लेकर आदिवासी समाज से लेकर कांग्रेस तक शिवराज सरकार पर हमलावर है, तो वहीं सरकार आरोपियों को सख्त सजा दिलाने की बात कह रही है।
नेमावर में प्रेम प्रसंग के चलते एक ही परिवार के पांच लोगों की नृषंस हत्या कर शवों को गहरे गड्ढे में दफना दिया गया था। लगभग दो माह बाद राज खुला तब पुलिस शवों को बरामद करने के साथ आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफल हुई। उसके बाद से सामूहिक हत्याकांड को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। अब तो राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि नेमावर तक पहुंचने लगे हैं।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने पहले मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई है, तो वहीं सोमवार को खुद कुछ कांग्रेस के नेताओं के साथ पीड़ित परिवार तक जा पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान करते हुए पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की। साथ ही आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण और पुलिस पर हीला-हवाली का आरोप भी लगाया।
पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के साथ नेमावर पहुंचे पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा कि, "मप्र में आपराधिक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, क्योंकि अपराधियों को भाजपा का संरक्षण हासिल है। महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है।"
वहीं भाजपा ने कांग्रेस पर शवों पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। राज्य के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस के मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ अलगाववादी राजनीति कर समाज में भय फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। नेमावर हत्याकांड का खुलासा पुलिस ने ही किया है। सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
डॉ. मिश्रा ने आगे कहा कि आरोपियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से फांसी के फंदे तक पहुंचाया जाएगा। सरकार ने इस मामले में पूरी संवेदनशीलता दिखाते हुए पीड़ित परिवार को तत्काल मुआवजा भी दिया है।
वहीं आदिवासियों के जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) ने हत्याकांड पर विरोध दर्ज कराया। जयस प्रमुख डॉ हीरालाल ने हत्याकांड की सीबीआई जांच के साथ पीड़ित परिवार को एक-एक करोड़ रुपए का मुआवजा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने की मांग की और चेतावनी दी कि अगर मांगें नहीं मानी गईं तो विधानसभा का घेराव किया जाएगा।
नेमावर के सामूहिक हत्याकांड ने सियासत को गर्मा दिया है। सियासी अखाड़ा मालवा निमांड अंचल बनने के आसार बनने लगे हैं क्योंकि इस इलाके के आदिवासी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र जोबट और खंडवा लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने वाले हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में इस हत्याकांड को लेकर निमांड-मालवा इलाके की सियासत और तेज हो तो अचरज नहीं होना चाहिए। (आईएएनएस)
लखनऊ, 2 जुलाई| लोकसभा चुनाव 2019 में सपा के साथ गठबंधन करने वाली बसपा मुखिया मायावती अब सपा पर लगातार हमलावर हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में सपा का छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ना महालाचरी है। बसपा मुखिया मायावती ने शुक्रवार को अपने निशाने पर समाजवादी पार्टी को रखा है। बसपा मुखिया ने कहा कि समाजवादी पार्टी की घोर स्वार्थी, संकीर्ण व खासकर दलित विरोधी सोच एवं कार्यशैली आदि के कड़वे अनुभवों तथा इसकी भुक्तभोगी होने के कारण देश की अधिकतर बड़ी व प्रमुख पार्टियां चुनाव में इनसे किनारा करना ही ज्यादा बेहतर समझती हैं। यह तो सर्वविदित है।
मायावती ने कहा कि इसी कारण उत्तर प्रदेश के होने वाले विधानसभा के आमचुनाव अब यह पार्टी किसी भी बड़ी पार्टी के साथ नहीं बल्कि छोटी पार्टियों के गठबंधन के सहारे ही लड़ेगी। कहा कि समाजवादी पार्टी का ऐसा कहना व करना महालाचारी नहीं है तो और क्या है।
ज्ञात हो कि इंटरनेट मीडिया पर बेहद एक्टिव मायावती लगातार ट्विटर पर भाजपा, कांग्रेस तथा सपा पर हमला बोलती रहती हैं। पंजाब में विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन कर उतरने वाली मायावती ने उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में अकेले ही विधानसभा चुनाव लडने का एलान किया है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 29 जून| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर 'भ्रष्ट' होने का आरोप लगाने के कुछ घंटों बाद, राज्यपाल ने सोमवार को राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि वह कई भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल है। एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा, मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि 2,000 करोड़ रुपये के महामारी खरीद घोटाले की रिपोर्ट का क्या हुआ? मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया था कि इसमें अनियमितताएं थीं और उन्होंने एक जांच का आदेश भी दिया था। तत्कालीन मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को उस रिपोर्ट को पेश करना था, उसका क्या हुआ?
धनखड़ ने कहा, मैंने बंद्योपाध्याय से कई बार पूछा था कि वह मेरे पास कब आए थे। लेकिन कोई रिपोर्ट नहीं थी। मैंने उन्हें (बनर्जी) को कई बार लिखा है, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैं पूछना चाहता हूं कि पूछताछ का क्या हुआ जो उन्होंने खुद किया था। जांच का आदेश देना सब कुछ का अंत है। लोगों को यह जानने की जरूरत है कि वे लोग कौन थे जिन्होंने अनुचित लाभ लिया।
धनखड़ ने यह भी कहा कि गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) में न तो कोई चुनाव हुआ है और न ही कोई ऑडिट।
राज्यपाल ने कहा, हजारों करोड़ मंजूर किए गए हैं लेकिन कोई ऑडिट नहीं हुआ है। क्यों? यह लोगों का पैसा है और लोगों को पता होना चाहिए कि उनके पैसे का क्या हुआ। मैं सीएजी ऑडिट करूंगा क्योंकि यह मेरे संवैधानिक दायरे में आता है।
राज्यपाल ने अंडाल हवाई अड्डे के लिए ऋण देने की सरकार की नीति पर भी सवाल उठाया।
धनखड़ ने आरोप लगाया, मैंने उनसे (बनर्जी) पूछा है कि सरकार अंडाल हवाई अड्डे में अपनी इक्विटी क्यों बढ़ा रही है? वे ऐसे लोगों को कर्ज क्यों दे रहे हैं जबकि वे भुगतान नहीं कर रहे हैं? जब वे ब्याज का भुगतान नहीं कर रहे हैं तो ऋण क्यों दिया गया है? मैंने वही पूछा था अलापन बंद्योपाध्याय से सवाल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।"
राज्यपाल ने बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप भी लगाए।
उन्होंने कहा, पांच राज्यों में चुनाव हुए, लेकिन किसी अन्य राज्य में ऐसी हिंसा नहीं देखी गई, जैसी बंगाल में देखी गई। पूरी दुनिया इसका गवाह है। वे (तृणमूल कांग्रेस) इतने बड़े जनादेश के साथ आए हैं, लेकिन वे जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंट रहे हैं।
हालांकि, राज्यपाल ने कसम खाई कि वह हार नहीं मानेंगे।
धनखड़ ने कहा, मैं किसी के बहकावे में नहीं आऊंगा, चाहे जो भी हो। मैं केवल भारत के संविधान के सामने झुकूंगा। संविधान ने मुझे सशक्त बनाया है और मैं पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जून : हरियाणा के मुस्लिम बहुल जिले नूंह मेवात में हिंदुओं पर अत्याचार और जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये याचिका अखबारों की खबरों के आधार पर दाखिल की गई है. हम इस मामले पर सुनवाई नहीं करेंगे. इस जनहित याचिका में हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन, हिंदुओं की संपत्तियों की जबरदस्ती गैरकानूनी बिक्री और हिंदू लड़कियों पर अत्याचार की एसआईटी से जांच कराए जाने की मांग की गई है. साथ ही केंद्र सरकार को नूंह मेवात में अर्धसैनिक बल तैनात करने का आदेश देने की मांग भी की गई है.
याचिका में कहा गया- हिन्दू दहशत में जीने को मजबूर
रंजना अग्निहोत्री और चार अन्य ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिए दाखिल याचिका में कोर्ट से कहा है कि हरियाणा के नूंह मेवात में रह रहे हिंदुओं की दशा खराब है. उनके जीवन व स्वतंत्रता, धार्मिक आजादी आदि मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाए. इसमें कहा गया है कि नूंह मेवात में मुस्लिम बहुतायत में हैं और उनका दबदबा है. वे लगातार हिंदुओं के जीवन और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. राज्य सरकार, जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस कानून का इस्तेमाल करने में नाकाम रहे हैं, इस कारण हिंदू दहशत में जीने को मजबूर हैं .
याचिका में कहा गया- 431 में से 103 गांव पूरी तरह हिन्दू विहीन, 82 गांवों में हिन्दुओं के सिर्फ चार-पांच परिवार
याचिका में कहा गया है कि नूंह मेवात में करीब 431 गांव हैं, जिनमें से 103 गांव पूरी तरह हिंदू विहीन हैं. 82 गांवों में सिर्फ चार-पांच हिंदू परिवार हैं और मेवात में उनकी आबादी तेजी से घटी है. इससे जनसंख्या का स्वरूप बदल रहा है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा होगा. कहा गया है कि वहां बड़ी संख्या में हिंदुओं को उनके घरों से बेदखल किया गया. हिंदुओं विशेषकर दलितों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया. हिंदू महिलाओं और लड़कियों पर अत्याचार हुआ.
याचिका में मांग की गई है कि पलायन कर गए हिंदुओं को वहां फिर बसाया जाए. पिछले 10 साल में हिंदुओं की संपत्तियों की ज़बरदस्ती या दबाव में मुसलमानों के पक्ष में हुई सेल डीड रद्द की जाएं. अवैध कब्जा किए गए सभी मंदिर और अंत्येष्टि स्थलों को उनकी पूर्वस्थिति में बहाल किया जाए. हत्या, दुष्कर्म, अपहरण के सभी मामलों की जांच के आदेश दिए जाएं। पीडि़त परिवारों को मुआवजा दिलाया जाए . (ndtv.in)