सामान्य ज्ञान
कान्यकुब्ज उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों में से एक कन्नौज का प्राचीन नाम है। यह उत्तर प्रदेश राज्य का प्रमुख मुख्यालय एवं नगरपालिका है। कान्यकुब्ज कभी हिन्दू साम्राज्य की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित रहा था। माना जाता है कि कान्यकुब्ज ब्राह्मण मूल रूप से इसी स्थान के रहने वाले हैं। सम्राट हर्षवर्धन के शासन काल में कान्यकुब्ज अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। वर्तमान कन्नौज शहर अपने इत्र व्यवसाय के अलावा तंबाकू के व्यापार के लिए भी मशहूर है। यहां मुख्य रूप से कन्नौजी बोली, कनउजी भाषा के रूप में इस्तेमाल की जाती है।
साहित्य में कान्यकुब्ज के निम्न नाम उपलब्ध हैं- कन्यापुर (वराहपुराण), महोदय, कुशिक,कोश,गाधिपुर, कुसुमपुर (युवानच्वांग),कण्णकुज्ज (पाली)।
कान्यकुब्ज की गणना भारत के प्राचीनतम ख्याति प्राप्त नगरों में की जाती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस नगर का नामकरण कुशनाभ की कुब्जा कन्याओं के नाम पर हुआ था। पुराणों में कथा है कि पुरुरवा के कनिष्ठ पुत्र अमावसु ने कान्यकुब्ज राज्य की स्थापना की थी। कुशनाभ इन्हीं का वंशज था। कान्यकुब्ज का पहला नाम महोदय बताया गया है। महोदय का उल्लेख विष्णुधर्मोत्तर पुराण में भी है।
महाभारत में कान्यकुब्ज का विश्वामित्र के पिता राजा गाधि की राजधानी के रूप में उल्लेख है। उस समय कान्यकुब्ज की स्थिति दक्षिण पंचाल में रही होगी, किन्तु उसका अधिक महत्व नहीं था, क्योंकि दक्षिण-पंचाल की राजधानी कांपिल्य में थी।
दूसरी शती ई. पू. में कान्यकुब्ज का उल्लेख पंतजलि ने महाभाष्य में किया है। प्राचीन ग्रीक लेखकों की भी इस नगर के विषय में जानकारी थी। चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक के शासन काल में यह नगर मौर्य साम्राज्य का अंग ज़रूर ही रहा होगा। इसके पश्चात् शुंग और कुषाण और गुप्त नरेशों का क्रमश: कान्यकुब्ज पर अधिकार रहा। 140 ई. के लगभग लिखे हुए टाल्मी के भूगोल में कन्नौज को कनगौर या कनोगिया लिखा गया है। 405 ई. में चीनी यात्री फाह्यान कन्नौज आया था और उसने यहां पर केवल दो हीनयान विहार और एक स्तूप देखा था, जिससे सूचित होता है कि 5वीं शती ई. तक यह नगर अधिक महत्वपूर्ण नहीं था। कान्यकुब्ज के विशेष ऐश्वर्य का युग 7वीं शती से प्रारम्भ हुआ, जब महाराजा हर्षवर्धन ने इसे अपनी राजधानी बनाया। इससे पहले यहां मौखरि वंश की राजधानी थी। इस समय कान्यकुब्ज को कुशस्थल भी कहते थे। हर्षचरित के अनुसार हर्ष के भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के पश्चात् गुप्त नामक व्यक्ति ने कुशस्थल को छीन लिया था, जिसके परिणामस्वरूप हर्ष की बहिन राज्यश्री को विंध्याचल पर्वतमाला की ओर चला जाना पड़ा था। कुशस्थल में राज्यश्री के पति गृहवर्मा मौखरि की राजधानी थी।
अपने उत्कर्ष काल में कान्यकुब्ज जनपद की सीमाएं कितनी विस्तृत थीं, इसका अनुमान स्कन्दपुराण से और प्रबंधचिंतामणि के उस उल्लेख से होता है जिसमें इस प्रदेश के अंतर्गत छत्तीस लाख गांव बताए गए हैं। शायद इसी काल में कान्यकुब्ज के कुलीन ब्राह्मणों की कई जातियां बंगाल में जाकर बसी थीं। आज के संभ्रांत बंगाली इन्हीं जातियों के वंशज बताए जाते हैं।