सामान्य ज्ञान
ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद की एक शाखा है जिसका केवल ब्राह्मण ही उपलब्ध है, संहिता नहीं। ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेदीय ब्राह्मणों में अपनी महत्ता के कारण प्रथम स्थान रखता है। यह ब्राह्मण हौत्रकर्म से संबद्ध विषयों का बड़ा ही पूर्ण परिचायक है और यही इसका महत्व है। इस ब्राह्मण के अन्य अंश भी उपलब्ध होते हैं जो ऐतरेय आरण्यक तथा ऐतरेय उपनिषद् कहलाते हैं।
ऐतरेय ब्राह्मण में 40 अध्याय हैं जिनमें प्रत्येक पांच अध्यायों को मिलाकर एक पंचिका कहते हैं और प्रत्येक अध्याय के विभाग को कंडिका । इस प्रकार पूरे ग्रंथ में आठ पंचिका, 40 अध्याय, अथवा 285 कंडिकाएं हैं।
ऐतरेय ब्राह्मण के अन्तिम अध्याय में पुरोहित का विशेष महत्व निरूपित है। राजा को पुरोहित की नियुक्ति अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि वह आहवनीयाग्नितुल्य होता है। पुरोहित वस्तुत: प्रजा का प्रतिनिधि है, जो राजा से प्रतिज्ञा कराता है कि वह अपनी प्रजा से कभी द्रोह नहीं करेगा। स्कन्द पुराण में प्राप्त आख्यान के अनुसार ऐतरेय के पिता हारीत ऋषि के वंश में उत्पन्न ऋषि माण्डूकि थे। छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार महिदास को 116 वर्ष की आयु प्राप्त हुई। शांखायन गृह्यसूत्र में भी इनके नाम का ऐतरेय और महैतरेय रूपों के उल्लेख है।