सामान्य ज्ञान
19वीं सदी में औद्योगिक देशों में बड़े बदलाव आए। सामाजिक उथल पुथल शुरू हो गई और उसके साथ आई नई और क्रांतिकारी सोच। महिलाएं भी ज्यादा अधिकारों की मांग करने लगीं। औद्योगिक विकास के दौर में महिलाओं के बीच बहुत बहस छिड़ी। महिलाओं पर जुल्म और पुरुषों के मुकाबले समाज में उनके निचले दर्जे की वजह से कई महिलाओं ने अपनी आवाज उठानी शुरू की। वर्ष 1908 में न्यूयॉर्क में कई हजार महिलाओं ने ज्यादा अधिकारों के लिए एक रैली में हिस्सा लिया। उनकी मांग थी, काम के लिए बेहतर वेतन, कम घंटे और वोट देने का अधिकार।
1909 में उस वक्त अमेरिकी सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। फिर 1910 में डेनमार्क की राजधानी कोपनहागेन में महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। क्लारा जेटकिन नाम की महिला ने इस बैठक में महिलाओं के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस तय करने की पहल की। जेटकिन जर्मन सोशल डेमोक्रेट पार्टी के महिला विभाग की प्रमुख थीं। उनका कहना था कि साल में एक दिन होना चाहिए जब महिलाएं अपनी मांगों को सबके सामने रख सकें। सम्मेलन में आईं 100 से ज्यादा महिलाओं ने इस बात का स्वागत किया और हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने का फैसला किया।
इसके बाद भी विश्व भर से महिला कार्यकर्ता तय नहीं कर पाए कि साल में किस दिन को महिला दिवस बनाया जाए। 1914 में पहले विश्व युद्ध के खिलाफ कई महिला संगठनों ने प्रदर्शन किए। इनको महिला अधिकारों के साथ जोडक़र आखिरकार 8 मार्च को महिला दिवस घोषित किया गया।