सामान्य ज्ञान

मैला आंचल
26-Feb-2021 1:15 PM
मैला आंचल

साहित्य की दुनिया में मील का पत्थर साबित होने के साथ-साथ लोकप्रियता के झंडे गाडऩे वाला एक उपन्यास फणीश्वरनाथ रेणु का  मैला आंचल भी है। रेणुजी ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया था और नेपाल की राणाशाही विरोधी क्रांति में भी एक योद्धा के रूप में सक्रिय रहे थे। फिर उन्हें लंबी बीमारी झेलनी पड़ी। शायद इन्हीं कारणों से उनका लेखन बाधित रहा। बीमारी से उबरने के बाद उन्होंने इस उपन्यास की रचना की, लेकिन एक बिल्कुल नए और अनजान लेखक की रचना लेने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। नतीजतन इसका पहला संस्करण रेणुजी को अपनी जेब से पैसे लगाकर 1954 में खुद प्रकाशित करना पड़ा था।
वह समय ऐसा था जब किसी नए रचनाकार की अच्छी रचना को भी बड़े लेखक और आलोचक गंभीरता से लेते थे। इलाहाबाद के कॉफी हाउस की एक गोष्ठी में जब इस उपन्यास पर चर्चा हो रही थी, तो संयोग से वहां राजकमल प्रकाशन के संचालक ओमप्रकाश भी मौजूद थे। उपन्यास की प्रशंसा सुनकर उन्होंने उसकी एक प्रति हासिल की, उसे रातों-रात पढ़ डाला और उससे इतने प्रभावित हुए कि तुरंत टिकट कटा कर पटना पहुंच गए। फिर तो वे रेणुजी के साथ मैला आंचल के प्रकाशन का अनुबंध करके ही लौटे और इस तरह एक सशक्त उपन्यास को हिंदी में उस समय का सर्वश्रेष्ठ प्रकाशक मिल गया। 
जैसा कि हर अच्छी रचना के साथ होता है, मैला आंचल के खिलाफ भी बहुत कुछ लिखा गया। उसकी आंचलिकता को लेकर कटु आलोचनाएं की गईं। उसे बंगाली उपन्यास ढोंढाई चरित का अनुवाद बताकर ध्वस्त करने की कोशिश की गई। लेकिन इन सबसे बेखबर मैला आंचल मस्त हाथी की तरह चलता रहा। 1954 से अब तक इसके 20 हार्डबाउंड संस्करण हो चुके हैं। 1984 में पहली बार यह पेपरबैक में आया और इस रूप में भी इसके 26 संस्करण हो चुके हैं। 
 

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