सामान्य ज्ञान
कद्दू परिवार को वनस्पति शास्त्र में कुकरबिटेसी नाम दिया गया है। इस परिवार के सदस्यों को कुकरबिट कहा जाता है। इस परिवार में ककड़ी, तुरई, लौकी, टिण्डा, परवल, करेला, चचींड़ा, खीरा, रेत की ककड़ी , तरबूज, खरबूज जैसे फल और सब्जियां आते हैं।
अधिकांश कुकरबिट पौधे उष्णकटिबंधीय देशों में होते है। भारत इनका प्राकृतिक भण्डार है और उत्तर-पश्चिमी भारत को इस कुल का उद्गमस्थल माना जाता है। बाद में अपनी बेलों की तरह ही कद्दू की फैमिली एशिया, यूरोप और अफ्रीका तक फैल गई। नाजुक तना, विशाल पत्तियां और बड़े-बड़े फल; यही इस फैमिली की पहचान हैं। लौकी, कद्दू और खरबूज-तरबूज जैसे फलों को बनाने में भोज्य-पदार्थ भी ज्यादा लगता है। यह इनकी बड़ी-बड़ी पत्तियों में बनता रहता है। इसे विकसित हो रहे फल तक पहुंचाने का काम जिस तने के जिम्मे है, वह खोखला होता है।
सूखने पर भी कुकरबिट का महत्व कम नहीं होता। गोल लौकी (तुम्बी) का उपयोग पानी भरने के पात्र के रूप में सदियों से होता आया है। तरोई और लौकी के सूखे रेशे नहाने के स्पन्ज के रूप में आज भी गांवों में प्रचलित है। इतना ही नहीं, ये रसीले फल सूखने पर सुरीले वाद्य यंत्रों के निर्माण में भी काम आते है। सितार, सरोद और तानपुरा के निर्माण में कद्दू और लौकी के सूखे खोल प्रयोग में आते है। चीन में इनकी बांसुरी बनती है तो अफ्रीका में सूखी लौकियों से नायाब कलाकृतियां बनाई जाती हैं। बस्तर के आदिवासी भी सूखी हुई गोल लौकी से कई कलाकृतियां बनाते हैं और इसे पानी रखने के काम में लाते हैं।