सामान्य ज्ञान
जाइट एक प्रकार का उपरत्न है, जिसकी सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी। इस उपरत्नका नाम जॉर्ज एफ. कुंज के नाम पर रखा गया है। यह ज्यादातर बड़े आकार में पाया जाता है। यह 8 कैरेट तक पाया जाता है। छोटे आकार में अच्छी क्वालिटी तथा बढिय़ा रंग नहीं मिलते। इसलिए यह उपरत्न बड़े आकारों में ही गहनों के रुप में उपयोग में लाए जाते हैं। हल्के गुलाबी रंग का कुंजाइट गहरे रंग में पाए जाने वाले कुंजाइट की अपेक्षा सस्ता होता है। इस उपरत्न को अधिक समय तक सूर्य की रोशनी में रखने या गर्म स्थान पर रखने से इसकी चमक कम हो जाती है।
गुलाबी रंग का कुंजाइट प्रेम संबंधों के लिए अच्छा माना गया है। गुलाबी रंग का यह उपरत्न प्रेमियों को उपहार में देने के लिए अच्छे माने गए हैं। यह उपरत्न धारक में संवेदनशीलता का संचार करता है। इसकी प्रबल विकिरणें प्रेम संबंधों में कटुता आने से रोकती हैं। एक अच्छे संबंधों को बनाए रखने के लिए यह बाधाओं को आने से रोकता है। यह उपरत्न स्पोडूमीन के नाम से भी जाना जाता है।
यह उपरत्न अमेरीका, ब्राजील, मैडागास्कर, म्यान्मार, अफगानिस्तान, कनाडा, रूस, मेक्सिको, स्वीडन, पाकिस्तान, पश्चिमी आस्ट्रेलिया में पाया जाता है। यह उपरत्न गुलाबी, बैंगनी, हरे, रंगहीन, पीले रंगों में पाया जाता है। हरे रंग के कुंजाइट को हिड्डिनाइट के नाम से भी जाना जाता है।
क्या है मीनमाटा संधि
‘मीनामाटा संधि का संबंध पारे के इस्तेमाल पर रोक से है। अब भारत ने भी मीनामाटा संधि’ पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस संधि के तहत देश में पारे के इस्तेमाल पर रोक लगेगी। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अमेरिका यात्रा के दौरान इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। दुनिया के सौ से अधिक देश मीनामाटा संधि पर अब तक हस्ताक्षर कर चुके हैं। इस संधि का प्रारंभ 10 अक्टूबर 2013 को हुआ। मीनामाटा संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों पर इसके प्रावधान कानूनी रूप से लागू होते हैं।
मीनामाटा संधि के तहत दुनिया भर में पारे का उपयोग बंद करने का प्रस्ताव हैैं। इस संधि के लागू होने पर अगले दस वर्षों में देश पारा मुक्त हो जाएगा। मानवीय स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पारे के विपरीत असर पड़ता है इसलिए भारत ने इसके इस्तेमाल पर रोक संबंधी मीनामाटा संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस संधि का नाम मीनामाटा जापान के एक शहर के नाम पर पड़ा। टोक्यो से करीब 1000 किलोमीटर दूर स्थित मीनामाटा में वर्ष 1950 के दशक में एक कंपनी से पारे के रिसाव के चलते लोगों को लाइलाज बीमारी हो गई। वर्ष 1956 में वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को ‘मीनामाटा’ नाम दिया। इसके बाद से ही दुनिया भर में पारे के इस्तेमाल को रोकने के लिए अभियान छिड़ा।
दरअसल पारा बेहद जहरीला पदार्थ होता है, लेकिन इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य उत्पादों के साथ-साथ बिजली उपकरण बनाने और धार्मिक कार्यो में होता है। भारत में करीब 3 हजार औद्योगिक उत्पादों में पारे का इस्तेमाल होता है। इनमें थर्मामीटर, रंग, कॉस्मेटिक्स, सीएफएल, इलेक्टिक स्विच और खाद प्रमुख हैं। पारे पर रोक लग जाने के बाद भारत में इन औद्योगिक उत्पादों में पारे का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित हो जाएगा।