बीबीसी की लूसी एश ने अल्बर्ट कामू के नोवल 'द प्लेग' और मौजूदा कोरोना वायरस के बीच की चौंकाने वाली समानाताओं पर नजर डाली हैं और देखा है कि कैसे अल्जीरिया राजनीतिक उथल-पुथल के बीच इस महामारी का सामना कर रहा है.
हालांकि, इसे छपे 73 साल हो चुके हैं, लेकिन 'द प्लेग' आज भी एक न्यूज बुलेटिन जैसी फीलिंग देता है. पूरी दुनिया की बुकशॉप्स पर यह किताब आज मौजूद है क्योंकि रीडर्स कोविड-19 को इस किताब के जरिए समझने की कोशिश कर रहे हैं.
मोहम्मद-बोडिआफ हॉस्पिटल में अपने दफ्तर में बैठे प्रोफेसर सालाह लेलोऊ कहते हैं कि वे बुरी तरह से थक गए हैं. ओरान में कोरोना वायरस के काफी मरीज इस अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं.
अल्जीरिया के दूसरे शहर में टीबी के एक एक्सपर्ट के तौर पर लेलोऊ महीनों से लगातार काम कर रहे हैं. वे आधी रात से पहले शायद ही हॉस्पिटल छोड़कर जा पाते हैं.
"मरीज बेहद खराब हालात में आते थे. मरीज से लेकर स्टाफ तक हर कोई बेचैन था. हमारे लिए यह बेहद बुरा वक्त था. हमें नहीं पता कि हम इसके पीक पर पहुंच चुके हैं या नहीं, या क्या इसकी कोई दूसरी लहर भी आएगी क्योंकि फिलहाल मामलों में एक बार फिर तेजी आ रही है."
उपन्यास ने ताजा कीं डरावनी यादें
मिस्र और दक्षिण अफ्रीका के बाद तीसरे सबसे बुरी तरह प्रभावित देश के तौर पर अल्जीरिया में कोरोना के 43,016 मामले आए हैं. इससे अब तक 1,475 मौतें हुई हैं.
फरवरी अंत में संक्रमण का पहला मामला सामने आने के बाद से अल्जीरिया ने एक सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया था और अभी भी देश के ज्यादातर हिस्से में रात का कर्फ्यू लागू है.
अपनी खिचड़ी मूछों और झड़ रहे बालों के साथ प्रो. लेलोऊ कैमस के हीरो डॉ. बरनार्ड रीअक्स से बूढ़े दिखते हैं, लेकिन वह भी अपने मरीजों को लेकर उतने ही प्रतिबद्ध हैं. ओरान में बाकी बहुत लोगों से उलट वे इस किताब से वाकिफ हैं. इस उपन्यास में उनके होमटाउन का जिक्र है और वे तकरीबन इसे डरे हुए दिखाई देते हैं.
वे कहते हैं, "इस महामारी के दौरान अल्बर्ट कैमस के 'द प्लेग' में जिक्र से हम इस बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रहे हैं. ज्यादातर मरीज बेहद डरे हुए थे. बहुत ज्यादा अफवाहें फैल रही थीं."
राजधानी अल्जीयर्स के पूर्व में मौजूद बोइरा में एक हॉस्पिटल के डायरेक्टर को कोविड-19 से मरे एक मरीज के रिश्तेदारों ने गुस्से में घेर लिया था. वे बचने के लिए दूसरी मंजिल पर मौजूद अपने दफ्तर की खिड़की से कूद गए और उन्हें कई फ्रैक्चर आए.
'आपदा के हकदार'
प्रो. लेलोऊ कहते हैं, "कोरोना वायरस और कैमस के प्लेग में एक समानता थी. लोगों ने प्रशासन को दोषी ठहराना शुरू कर दिया था."
कामू के उपन्यास में, ओरान के बाहरी इलाके में स्थित कैथेड्रल सैकर-कोइयर- अब एक पब्लिक लाइब्रेरी- में कैथोलिक पादरी फादर पैनेलक्स ने उत्तेजक भाषण दिया था. वे इस उपन्यास में भाषण में भीड़ से कहते हैं कि वे उन पर आई इस आपदा के हकदार हैं.
कोरोना वायरस महामारी के चलते अल्जीरिया की मस्जिदें बंद हैं और शेख अब्देलकादेर हामोया जैसे धार्मिक नेताओं ने स्वास्थ्य संबंधी संदेश और तकरीरें ऑनलाइन दी हैं.
एक प्रोग्रेसिव के तौर पर उनकी प्रतिष्ठा है, लेकिन जब वे महामारी के मतलब को बताते हैं तो वे कामू के 1940 के जेसुइट पादरी के जैसे दिखते हैं.
वे कहते हैं, "जहां तक मेरी बात है, तो यह अल्लाह का उसे मानने वालों, और सभी लोगों के लिए एक संदेश है कि उसकी ओर वापस लौटें. यह जागने का संदेश है."
वायरस से विरोध प्रदर्शन रुके
कई अल्जीरियाई लोगों ने बताया है कि उन्हें कोरोना वायरस से कम डर लग रहा है और उन्हें ज्यादा डर इस बात का है कि अधिकारी इसका इस्तेमाल दूसरे मकसद हासिल करने में कर रहे हैं. महामारी के कारण पूरी दुनिया में आए ठहराव से पहले अल्जीरिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहे थे.
इन्हें अरबी में हिराक या आंदोलन कहा जाता है. इसी आंदोलन की वजह से 20 साल तक सत्ता में रहने के बाद राष्ट्रपति अब्देलअजीज बोतेफ्लिका को अप्रैल 2019 में अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ गई थी.
तमाम जश्न के बावजूद उम्रदराज राष्ट्रपति की जगह भरने के लिए जितने भी उम्मीदवार थे वे सभी उनके ही पुराने वफादार थे. बड़े पैमाने पर चुनावों का बहिष्कार होने के बाद दिसंबर में एक पूर्व प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति बनाया गया.
अब्देलमादिजिद तेबोन ने वादा किया कि वे हिराक आंदोलन का समर्थन करेंगे ताकि एक नए अल्जीरिया का निर्माण का जा सके. उन्होंने सुधार की बातें कीं और "राजनीति से पूंजी को अलग करने की जरूरत" पर जोर दिया.
लेकिन, नौकरियों में कोई इजाफा नहीं होने से विरोध प्रदर्शन तेज होते गए. इस दौरान कई एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार कर लिया गया. अधिकारियों का कहना है कि अल्जीरिया 1990 के दशक में हुई खूनी हिंसा, जिसे ब्लैक डिकेड कहा जाता है, के खतरे में है.
संकट के दौरान
जब ऐसा लग रहा था कि यह गतिरोध अब खत्म होने की कगार पर है, तभी कोरोना वायरस आ गया. आफिफ आदेरहमान जैसे एक्टिविस्ट्स ने अस्थाई रूप से विरोध प्रदर्शनों को बंद करने पर सहमति जताई.
इस वेब डिजाइनर ने खुद को चैरिटी के काम में लगा लिया. लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों और गरीब परिवारों तक खाने-पीने और दूसरी जरूरी चीजों को पहुंचाने के लिए उन्होंने संगठनों और दानदाताओं को एक वेबसाइट के जरिए एक प्लेटफॉर्म मुहैया कराया.
वे कहते हैं, "क्वारंटीन के दौरान हिराक ने खुद को एक एकजुटता के काम में बदल लिया."
'द प्लेग' में संकट के दौरान एकजुटता एक बड़ी थीम है.
आदेरहमान को आज के वक्त का कामू का कैरेक्टर जियान तारोऊ माना जा सकता है जो कि वॉलंटियर्स की सफाई करने वाली टीमों को डॉक्टरों के साथ घरों के दौरे पर भेजता है, बीमारों का इलाज कराता है और क्वारंटीन में रहने वालों की मदद करता है.
आदेरहमान कहते हैं, "हकीकत यह है कि कई अल्जीरियाई लोगों में उनके जैसी समानताएं हैं...मुश्किल वक्त में दूसरों की मदद करना."
फासीवाद और दमन
तारोऊ का सैनिटरी टीमें तैयार करना कैमस के फ्रांसीसी प्रतिरोध से मुकाबला करने के अपने अनुभव को शायद दिखता है.
दूसरे विश्व युद्ध के ठीक बाद में लिखे गए इस उपन्यास को फ्रांस पर नाजी कब्जे की कहानी के तौर पर माना जाता है. जिसमें बीमारी फैलाने वाले चूहे फासीवाद के "भूरे प्लेग" का प्रतिनिधित्व करते हैं.
लेकिन, इसकी व्याख्या हजारों तरीकों से की जा सकती है और इसमें एक तानाशाही राज्य की ज्यादतियों के सबक भी छिपे हो सकते हैं. हिराक मीम्स नाम के फेसबुक पेज को बनाने वाले युवा वालिद केचिडा को अप्रैल में राष्ट्रपति और धार्मिक अधिकारियों का मजाक बनाने के लिए पकड़ लिया गया.
हालांकि, अधिकारियों ने 5 जुलाई स्वतंत्रता दिवस पर कुछ राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया था, लेकिन, केचिडा जैसे हाई-प्रोफाइल कैदियों को रिहा नहीं किया गया.
इस महीने की शुरुआत में वरिष्ठ पत्रकार कालेद द्रारेनी को एक हथियार रहित भीड़ को उकसाने और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा करने के लिए तीन साल की सजा दी गई.
महामारी और विरोध प्रदर्शन
सरकार ने फेक न्यूज के खिलाफ एक विवादित कानून भी पास कर दिया और महामारी और विरोध प्रदर्शनों को कवर कर रही तीन वेबसाइट्स को भी ब्लॉक कर दिया. 4,000 मील दूर एक रेडियो स्टेशन सूचनाओं के इस अंतर को भरने की कोशिश कर रहा है.
रेडियो कोरोना इंटरनेशनल की नींव अब्दल्ला बेनादोदा ने रखी थी. बेनादोदा एक अल्जीरियाई पत्रकार हैं जो कि अब अमरीका के प्रोविडेंस में रहते हैं.
2014 में वे तब के राष्ट्रपति के भाई सैद बोतेफ्लिका के विरोध में खड़े हो गए. उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया, ब्लैकलिस्ट कर दिया गया और जान से मारने की धमकियों के बाद उन्होंने और उनकी पत्नी ने देश छोड़ दिया.
रेडियो स्टेशन हर मंगलवार और शुक्रवार को विरोध प्रदर्शनों के दिनों पर कार्यक्रम करता है. बेनादोदा का कहना है कि इससे उन्हें हिराक की आग को जलाए रखने में मदद मिलती है.
'द प्लेग' में एक फ्रांसीसी जर्नलिस्ट - रेमंड रैंबर्ट थे. वे ओरान में घरों के हालात पर खबरें भेजते थे. शहर के लॉकडाउन में जाने के बाद वे वहीं फंस गए. वे घर आने के लिए बेकरार थे.
बेनादोदा कैमस के इसी कैरेक्टर के जैसे हैं. वे एक जर्नलिस्ट हैं जो कि बाहर फंस गए हैं और घर वापस आना चाहते हैं. और अल्जीरिया में बढ़ते दमन के साथ उनकी बेचैनी भी बढ़ रही है.
हिंसा के खिलाफ टीका
लेकिन, अल्जीरिया के ज्यादातर लोगों की तरह से ही बेनादोदा को भी अफरातफरी पैदा होने का डर लगता है. 1990 के दशक में जब सेना ने एक इस्लामिक विद्रोह का सामना किया तो करीब दो लाख लोगों की इसमें मौत हुई और करीब 15,000 लोग जबरदस्ती गायब कर दिए गए.
ओरान के एक टीवी ड्रामा के स्टार अब्देलकादेर दीजेरियो इससे सहमत हैं. हिराक के दौरान वे अक्सर बड़ी-बड़ी भीड़ को संबोधित करते थे और पिछले साल दिसंबर में उन्हें कुछ वक्त के लिए हिरासत में भी लिया गया था.
वे कहते हैं, "ब्लैक डिकेड के हमारे अनुभव ने हमें इससे सुरक्षित कर दिया है. इससे हमें कुछ हद तक परिपक्वता मिली है कि अब हम टकराव नहीं करते और हिंसा से बचते हैं."
"महामारी ने निश्चित तौर पर चीजों को बदल दिया है. हमने देखा है कि सिविल सोसाइटी गरीबों और जरूरतमंदों की मदद कर रही है."
कामू ने दिखाया है कि जब कोई आपदा आती है तो लोग अपने असली रंग दिखाने लगते हैं.
सरकार विरोधी प्रदर्शनों पर मौजूदा क्रैकडाउन हिराक की शुरुआत से पहले अल्जीरियाई लोगों को मिली हुई आजादी से बहुत अलग चीज है.(bbc)