संपादक की पसंद
कहते हैं, प्रेम किसी भी वायरस से बड़ा होता है. वो महामारी को मात दे देगा. और ज़िंदा रहेगा. यही है मोहब्बत का मुस्तकबिल.
दूसरी बातों के भविष्य के विपरीत प्रेम का भविष्य मेटाफिज़िक्स के घेरे में रहेगा - सूक्ष्म और गूढ़.
"हम केवल भावनात्मक, आध्यात्मिक और आभासी स्तर पर प्रेम कर सकते हैं. अब प्रेम और सेक्स दो अलग बातें हैं."
दिल्ली में रहने वाले प्रोफेशनल पप्स रॉय ख़ुद को लाइलाज विद्रोही बताते हैं. वे समलैंगिक हैं और कोरोना के बाद प्रेम के भविष्य पर बड़ी गहराई से बाते करते हैं.
अभी फिलहाल पप्स रॉय अपने फ़ोन के साथ एक फ़्लैट में फंसे हुए हैं. वो कहते हैं, "प्यार है कहीं बाहर. बस हमें प्यार करने के पुराने तरीके भुला कर नए तरीके सीखने होंगे."
लॉकडाउन से कुछ ही दिन पहले वो रेल में बैठकर एक आदमी के साथ किसी पहाड़ी शहर को निकल गए थे.
उन्हें लगा कि उन्हें उस आदमी से प्यार है और उसके साथ दो दिन बिताना चाहते थे. लेकिन तब तक लॉकडाउन हो गया और एक महीने तक वे वहीं फंस गए.
जब अप्रैल में वापस दिल्ली लौटे तब तक उनका भ्रम टूट चुका था. एक दूसरे के साथ होना एक दूसरे के साथ फंस जाने जैसा हो गया था.
सोशल डिस्टेंसिंग अब एक दूसरे से दूरी में तबदील हो गई थी. अब वो दिल्ली वापस लौट आए हैं. साथ में फ़ोन है और कई प्रेमी भी. वो ज्यादातर एक दूसरे के साथ चैट करते हैं.
कभी-कभी वीडियो के ज़रिए ही थोड़ा बहुत प्यार भी करते हैं. प्रेम का भविष्य कल्पना का मोहताज नहीं है. लोग परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं.
इसी तरह हम भविष्य में क़दम रखते हैं. ई-हारमनी, ओके क्यूपिड और मैच जैसे डेटिंग प्लैटफ़ॉर्म पर लॉकडाउन के दौरान वीडियो डेटिंग में काफ़ी वृद्धि हुई है.
कई दूसरी बातों के भविष्य पर बहस हो रही है. धर्म, पर्यटन, शिक्षा, वगैरह.
लेकिन प्रेम का भविष्य? इसकी बात कुछ और है. ब्रिटेन में लॉकडाउन की शुरुआत में ही सरकार ने लोगों को सलाह दी कि वो अपने लवर के साथ ही रहें.
एक दूसरे के घर आने-जाने से वायरस का संक्रमण फैलने का ख़तरा बढ़ सकता है. यूरोप में ऐसे कई प्रस्ताव आए.
मई में नीदरलैंड की सरकार ने अकेले रहने वाले लोगों से कहा कि वो अपने लिए सेक्स पार्टनर खोज लें.
साथ ही यह सलाह भी दी कि दोनों मिल कर ये भी तय कर लें कि वो और कितने लोगों से मिलेंगे. क्योंकि वो जितने ज्यादा लोगों से मिलेंगे कोरोना संक्रमण का ख़तरा भी उतना ज्यादा बढ़ेगा.
एक सलाह यह भी थी कि 'दूसरों के साथ दूरी बना कर सेक्स करें.' कुछ सुझाव यह भी थे के औरों के साथ मिल कर हस्तमैथुन करें या फिर कामुक कहानियां पढ़ें.
वीडियो चैट्स अब आम हो चुके हैं. और फ़ोन सेक्स भी. रेस्तरां बंद होने की वजह से वास्तविक डेटिंग संभव नहीं है.
लिहाज़ा डेटिंग, शादियां और यहां तक की सेक्स भी वर्चुअल दुनिया में होने लगा है. ये मानो किसी भयानक भविष्य की तस्वीर हो.
लेकिन आने वाले कल की हर तस्वीर नए आयाम लेती रहती है, नई शक्ल में बनती ढलती है.
तारीख 20 अप्रैल थी.
बेंगलुरु की एक सुहानी शाम. 33 साल का एक आदमी अपनी बालकनी में टेबल पर वाइन की एक ग्लास के साथ मोमबत्ती जला कर बैठा था. ये वीडियो डेट थी. डेटिंग ऐप बंबल पर.
वो पहले भी डेटिंग ऐप का इस्तेमाल करते रहे हैं लेकिन कभी ज़्यादा समय नहीं बिताया था वहां. दरअसल, अपनी स्टार्टअप कंपनी के काम में इतना व्यस्त रहे कि समय नही मिल पाया.
लेकिन लॉकडाउन शुरू होने के बाद वो एक साथी की तलाश में इस ऐप का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे. और साथी उन्हें मिल भी गई.
शुरुआत में बस एक दूसरे को पिंग करते या चैट करते रहे. धीरे-धीरे बातों का सिलसिला लंबा होता गया. और उसके बाद ये डेट तय हुई.
वो भी अपनी बालकनी में बैठी थी और ये अपनी बालकनी में. ये मुलाक़ात चालीस मिनट तक चली. और लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद अंतत: वो वास्तव मे मिले. लड़के के घर की छत पर. वो मास्क पहन कर आई थी. जैसे लोग गले मिलते हैं वैसे तो नही, कुछ फासले से मिले. बस उनकी कहानियां एक दूसरे से छू गईं. लड़के ने कहा, "फ़िलहाल इतना ही सही."
वे कहते हैं, "हर किसी को किसी की तलाश है. अब लोग खुल कर बात करने लगे हैं. हम कोशिश करते हैं कि वायरस के बारे में बात ना करें. लेकिन इस दौरान जो दिमागी हालत है उस पर बात होती ही है. लोग किस हाल से गुज़र रहे हैं उस पर भी बात हुई. मैं इस माहौल में प्रेम करने के ख़तरे को अच्छी तरह समझता हूं. मैं ग़लतियां नहीं करना चाहता."
आशीष सहगल दिल्ली में रहते हैं. वो एक 'लाइफ़ कोच' हैं. इनका काम लोगों को उनकी समस्याओें को समझने और उनसे निपटने में मदद करना है.
वो कहते हैं कि हाल के दिनों में उन्हें ऐसे कपल्स के बहुत फ़ोन आते हैं जो वैवाहिक जीवन में समस्याओं से जूझ रहे हैं. महामारी के डर के कारण प्रेम संबंधो में कई बदलाव आएँगे."
"प्रेम एक अवधारणा के रूप में और भी मज़बूत होगा. डर के माहौल में प्रेम और भी फलता फूलता है."
प्रेम के संबंध में उनके और भी कई अनुमान हैं. "ज्यादा शादियां होंगी. तलाक भी बढ़ेंगे. और बच्चे भी ज़्यादा पैदा होंगे. ये सब विरोधाभासी बातें ज़रूर हैं, लेकिन हो सकता है शायद प्रेम का भविष्य ऐसा ही बेतरतीब और अराजक हो."
आशीष सहगल कहते हैं, "बहुत सारे लोग अकेलापन महसूस कर रहे हैं."
बहरहाल जहां तक प्रेम के भविष्य की बात है वो किसी भी सरकारी दिशा निर्देश या वायरस विशेषज्ञों के नीति निर्देश के दायरे से बाहर है. यह भविष्य फ़िलहाल एक मंथन के हवाले है.
आशीष सहगल की दलील है, "एचआईवी/एड्स लोगों को प्यार करने से नहीं रोक पाया. आज लोगों को प्यार की ज़रूरत और तलाश पहले से भी अधिक है."
"संक्रमण के दौर में अंतरंगता दिमाग में रहती है. हमारे देश में नैतिकता के ठेकेदार सैनिक इतने ज्यादा तत्पर हैं कि सेक्स पार्टनर जैसी अवधारणा का ज़िक्र करना तक मुश्किल है."
एचआईवी/एड्स से बचने के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल होने लगा लेकिन उसकी तुलना महामारी से बचने के लिए मास्क के इस्तेमाल से नहीं हो सकती.
मुंबई के कामाठीपुरा में रहने वाली एक यौनकर्मी ने फ़ोन पर बातचीत के दौरान कहा कि उसने सुना है कि कई यौनकर्मी अब वीडियो कॉल के ज़रिए अपने ग्राहकों को अपनी सेवाएं दे रहीं हैं. लेकिन उसे यह अजीब लगता है. एचआईवी/एड्स की बात अलग थी. उससे बचने के लिए कॉन्डम काफ़ी था. लेकिन कोरोना वायरस तो छूने मात्र से संक्रमित कर सकता है.
स्क्रीन वाला प्यार और स्पर्श
और फ़ोन या कंप्यूटर की स्क्रीन स्पर्श का विकल्प तो नहीं हो सकती.
नेहा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, "वो अपने ग्राहकों को जानने समझने में या उनके साथ किसी अर्थपूर्ण संवाद में कोई रुचि नहीं रखतीं. सेक्स उनके लिए बस काम है. इसलिए यह तरीका काम करता है."
नंदिता राजे, 28 साल की हैं. मेबेल इंडिया नाम के कपड़ों के ब्रैंड की मालकिन हैं. वो सिंगल हैं. वो कहती हैं अब उन्हें लोगो से मिलने में ख़ास दिलचस्पी नहीं है.
वो कहती हैं, "प्रेम का भविष्य काफ़ी अंधकारमय है. और मेरे लिए शायद अब इसका कोई मायने नहीं बचा है."
अब चूंकि किसी जगह किसी से मिलना मुश्किल है तो ऐसे में कई लोगों के लिए ऑनलाइन डेटिंग एक नया रास्ता बनता दिख रहा है. लेकिन बदलाव इसमें भी आ रहे हैं.
ज़ैक शलेइएन ने फ़रवरी 2019 में 'फ़िल्टर ऑफ़' नाम का प्लेटफ़ार्म शुरू किया था.
उन्होंने फ़रवरी 2020 में इसे रिलॉन्च किया. उनका मानना है कि वर्चुअल स्पीड डेटिंग ही भविष्य मे लोकप्रिय होगा.
'फ़िल्टर ऑफ़' एक ऐसा ऐप है जहां आप पहले 90 सेकंड के एक वीडियो के ज़रिए उस व्यक्ति का जायज़ा लेना चाहते हैं कि आप उसे देख सुन कर कैसा महसूस करते हैं. अगर आप को वो व्यक्ति पसंद आता है तो आप की जोड़ी बन जाती है और उसके बाद आप ऐप के ज़रिए एक दूसरे को मैसेज और वीडियो भेज सकते हैं.
वो आगे कहते हैं, "लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद लोग ऑफ़लाइन मुलाकात करना शुरू कर देंगे."
नोएडा मे रहने वाले एक समलैंगिक व्यक्ति जो अपना नाम ज़ाहिर नहीं करना चाहते, उन्होंने कहा, "और इस तरह हमने चेहरे पर मास्क लगा कर भविष्य की दहलीज़ पर कदम रखा. यह डरावना मंज़र है. हमें पहले ही एचआईवी/एड्स से डर था और अब ये महामारी भी आ गई."
कपल्स के लिए मुश्किल दौर
अगर इस महामारी को रोकने के लिए कोई टीका विकसित हो भी जाए, तब भी लोग बेफ़िक्र हो कर एक दूसरे के गले मिलें, इस में काफ़ी समय लगेगा. चाहे जो हो, एक बात निश्चित है कि प्यार, सेक्स और रोमांस का भविष्य हमेशा के लिए बदल गया है.
कपल्स के लिए भी ये समय बहुत मुश्किल रहा है. लोग ऑफ़िस कम जा रहे हैं या ज्यादातर घर में रह कर काम कर रहे हैं.
बहुत से लोगों को एक दूसरे की इस क़दर मौजूदगी की आदत नहीं रही है. रिपोर्टों के अनुसार तलाक़ के मामले बढ़े हैं. घरेलू हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं. लेकिन लोग किसी तरह निबाह रहे हैं.
अंतरंग संबंधों मे हुई बढ़ोतरी के चलते कॉन्डम और गर्भ निरोधक दवाइयों की बिक्री में भी वृद्धि हुई है.
लॉकडाउन में बंबल डेटिंग ऐप के नए सबस्क्राइबर खूब बढ़े हैं.
बंबल की टीम का कहना है, "भारत में वीडियो और फोन कॉल की औसत अवधि कम से कम 18 मिनट तक रही है. यह एक संकेत है कि हमारे ऐप का इस्तेमाल करने वाले लोग सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर में एक दूसरे को समझने और गहरे और अर्थपूर्ण संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं."
हाल ही में बंबल ने एक नया अभियान शुरू किया जिसे नाम दिया 'स्टे फ़ार एंड गेट क्लोज़' यानी दूर रह कर नज़दीकी संबंध बनाएं. इसका मक़सद लोगों को घर पर रह कर ही संबंध बनाने की शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित करना है.
टिंडर समेत कई डेटिंग ऐप्स के इस्तेमाल में पिछले हफ्तों मे काफ़ी तेजी आई है.
सिर्फ़ कॉफ़ी ऐप का कहना है कि वो दुनिया भर में बसे भारतीयों को प्यार तलाश करने में मदद करता है. सिर्फ़ कॉफ़ी ऐप में ऐसे साथी ढूंढने में मदद मिलती हैं जिनकी सोच या मिजाज़ एक दूसरे से मेल खाता हो.
इस ऐप प्लेटफ़ॉर्म की कार्यकारी उपाध्यक्ष नैना हीरानंदानी कहती हैं, "दूसरों से जुड़ना इंसान की अहम ज़रूरत है. इस महामारी के दौरान जो हालात बने हैं उस पर किसी का नियंत्रण नहीं है. लेकिन इस दौरान यह ज़रूरत और भी उभर कर आई है."
मार्च 2020 से इस ऐप के इस्तेमाल में 25 प्रतिशत बढ़त हुई है.
नैना हीरानंदानी कहती हैं, "लेकिन भारत में अभी भी लोग साथी खोजने के लिए वर्चुअल कॉल का रास्ता चुनने को लेकर कुछ सशंकित रहते हैं. मगर धीरे-धीरे हमारे 80 प्रतिशत सदस्यों को इस बात की आदत होने लगी है. इस महामारी के बाद हमारे काम करने, जीने और प्रेम करने या उसे खोजने के तरीके बदल जाएंगे."
लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक सिर्फ़ कॉफी ऐप की मुंबई, दुबई और लंदन स्थित टीम ने दुनिया भर मे 500 से ज्यादा मुलाक़ातें तय की हैं.
लेकिन कई लोग अभी इस वर्चुअल प्रेम के लिए तैयार नहीं हैं. करण अमीन 39 साल के हैं और मुंबई में विज्ञापन एजेंसी में काम करते हैं.
वो कहते हैं कि उन्होंने डेटिंग एप्स पर कई लोगों की प्रोफ़ाइल चेक की. इनमें से बहुत से लोगों का कहना था कि वो बोरियत की वजह से डेटिंग ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं.
करण अमीन आगे कहते हैं, "टिंडर एक ऐसा ऐप था जहां आप लोगों से संबंध बनाने के लिए संपर्क करते थे. लेकिन अब आप बाहर ही नहीं जा सकते थे."
एक लड़की जिसके साथ वो काफ़ी समय से चैट कर रहे थे उससे उन्होंने पूछा कि लॉकडाउन खुलने के बाद उसका क्या 'इरादा' है?"
उस लड़की ने जबाव दिया कि छह महीने तक तो वह किसी को छुएगी ही नहीं.
करण अमीन का सवाल है, "अब हम क्या करें? ऐसा सर्टिफ़िकेट लेकर चलें जो कहे हमें कोविड नहीं हुआ है. अगर वास्तव में मुलाक़ात ही नहीं हो सकती है तो डेटिंग ऐप पर मैचिंग करने का कोई फ़ायदा नही है."
ग्रांइडर एक ऐसा ऐप है जिसका इस्तेमाल समलैंगिक पुरुष करते हैं. इस ऐप मे एक फ़ीचर यह भी है कि वो बता सकता है कि कोई समलैंगिक साथी कितने फ़ासले पर है. कल तक ये फासला एक मीटर से कम भी होता था और ऐप तब भी आपको सूचित कर सकता है. लेकिन अब यह फ़ासले चंद मीटर से बढ़ कर मीलों के हो गए हैं.
क्वारंटीन पीढ़ी
कुछ विशेषज्ञों का ये भी अनुमान है कि दिसंबर 2020 तक अधिक संख्या में बच्चों का जन्म देखने को मिल सकता है. और हो सकता है ये नई पीढ़ी 2033 में 'क्वारंटीन' कहलाए.
न्यूयॉर्क में ज़ूम ऐप पर हुई शादियों को क़ानूनी वैधता मिल चुकी है. भारत में भी कुछ शादियों और शादी की सालगिरह ज़ूम ऐप पर मनाई गईं और वास्तविक शादियों के दौरान भी कम से कम मेहमान होना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सामान्य बात हो रही है. असल मे नया भविष्य दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ है और हम इसे अपना भी चुके हैं. हालांकि कुछ लोग 'सामान्य समय' के लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं, बाकी लोग 'वर्चुअल या आभासी प्रेम' करने में मशगूल हो रहे हैं.
महामारी के संक्रमण काल में बहुत से लोगों के लिए प्रेम करने के ग़ैर पारंपरिक तरीके विकल्प बन रहे हैं. बशर्ते कि उनका दिल प्यार के लिए खुला हो. (www.bbc.com)