-दिलीप कुमार पाठक
लेखक /पत्रकार
कांग्रेस पार्टी को दुश्मन की क्या आवश्यकता जब पार्टी में ही ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस पार्टी को अंदर से खोखला कर रहे हैं तो दुश्मनों की क्या ही आवश्यकता? पार्टी को रसातल में ले जाने के लिए वे ही काफी हैं। कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले ऐसे नेताओं को पार्टी से बाहर निकालने की बजाय पार्टी उनके चुंगल में फंसती चली जा रही है ।
कांग्रेस पार्टी का अभी एक मामला सामने आया है । कांग्रेस ने अपने तेज-तर्रार प्रवक्ता आलोक शर्मा को सचिव पद से मुक्त कर दिया है, हालांकि प्रवक्ता बने रहेंगे। जबकि आलोक शर्मा का बैकग्राउंड देखें तो वह टीवी पर कांग्रेस का मज़बूती एवं तार्किकता से पक्ष रखते हुए दिखाई देते हैं । कांग्रेस के अपने नेताओं को डिफेंड करते हैं। अपनी पार्टी के लिए लड़ते दिखाई देते हैं अपना पक्ष बिना डरे मजबूती के साथ रखते हैं, लेकिन उनको ही बाहर निकाल दिया गया, इससे कांग्रेस पार्टी के कार्यकताओं में क्या संदेश जाएगा? कांग्रेस नेताओं की पार्टी है या कार्यकर्ताओं की? वैसे भी कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ताओं से ज्य़ादा नेताओं की भरमार है। राहुल गांधी सभाओं में तकरीरें करते हैं कि हम ऐसे नेताओं को बाहर निकाल फेंकेंगे जो पार्टी के अंदर रहकर नुकसान पंहुचाने का प्रयास करते हैं । कांग्रेस पार्टी आजकल ऐसे नेताओं से घिरी हुई है जो कांग्रेस को नीचे ही ले जाएंगे ।
कांग्रेस अपने शुभचिंतको एवं पार्टी के बंटाधार करने वालों को पहिचान नहीं कर पा रही है । पार्टी में ऐसे-ऐसे बयान बहादुर हैं जो हमेशा अपनी जुबान जब खोलेंगे कांग्रेस का नुकसान ही करेंगे। राजीव गांधी, सोनिया गांधी के दौर के नेताओ को जनता पहले ही बहुत नकार चुकी है, कितना झेल पाएगी... अब बस कर दीजिए एक नई पीढ़ी को आगे बढ़ाएं। कांग्रेस पार्टी हमेशा से बुजुर्ग नेताओं को ढो रही है। सिंधिया जैसे नेता को खो दिया। वो तो सचिन पायलट कांग्रेस के लिए इतने वफ़ादार हैं कि वे पार्टी छोडक़र नहीं गए अन्यथा सचिन पायलट कब का पार्टी छोडक़र चले गए होते ! कांग्रेस के बुज़ुर्ग नेता पार्टी में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं जबकि पार्टी निरंतर अपना प्रभुत्व खोती जा रही है ।
कांग्रेस पार्टी में असंतुष्ट नेताओं का एक गुट है जिसे त्र-23 कहते हैं जो हमेशा शीर्ष नेतृत्व को अपने इशारों पर नचाना चाहता है। वो हमेशा पार्टी आलाकमान को कोसते रहते हैं लेकिन पार्टी उनके खिलाफ़ कोई एक्शन नहीं ले पाती । जबकि सभी को पता है कि वे पुराने नकारे हुए नेता जिन्होंने अपनी जि़ंदगी में हमेशा राज्यसभा से राजनीति की, ऐसे नेता कभी बिना पद के पार्टी में नहीं रहे, उनमें से आधे तो पार्टी ही छोड़ गए, उनमें से कुछ राज्यसभा चले गए। और जो कुछ बिना पद के रह गए हैं वे भी कोई न कोई पद ग्रहण कर ही लेंगे। उनके रहते नए नेताओं को पद मिलें सवाल ही नहीं उठता।
सीडब्ल्यूसी में कुल 84 सदस्य है, जिनमें 39 सदस्य, 32 स्थायी आमंत्रित सदस्य और 13 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। कांग्रेस सीडब्ल्यूसी टीम में बुजुर्ग नेताओं की भरमार है, जबकि युवाओं को नजरअंदाज कर दिया गया।
खरगे की सीडब्ल्यूसी के 39 सदस्यों में 50 साल से कम उम्र के जिन नेताओं को जगह मिली है, अलावा सीडब्ल्यूसी के बाकी 68 सदस्यों की उम्र 50 साल के पार है। 50 साल के ज्यादा उम्र के करीब 68 नेता हैं और 70 साल के ज्यादा के नेताओं की संख्या भी अच्छी खासी है । सीडब्ल्यूसी में शामिल पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी की उम्र 82 साल तो मल्लिकार्जुन खरगे 81 साल के हैं । जबकि इनके अलावा लाल थानेवाल 81 साल, अंबिका सोनी 80 साल, मीरा कुमार 78 साल, पी चिदंबरम 77 साल, सोनिया गांधी 76 साल, दिग्विजय सिंह 76 साल, हरीश रावत 75 साल, ताम्रध्वज साहू 74 साल, तारिक अनवर 72 साल और आनंद शर्मा 70 साल के हैं। इतना ही नहीं सीडब्ल्यूसी के स्थायी आमंत्रित और विशेष आमंत्रित सदस्यों में भी तमाम नेता हैं, जिनकी उम्र 70 साल के ऊपर है ।
कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी टीम में युवा चेहरों की तुलना में पुराने नेताओं को तवज्जो ज्यादा मिली है। उदयपुर और रायपुर के 50 अंडर 50 प्रस्ताव के अमल नहीं किए जाने से कांग्रेस के युवा नेताओं में निराशा लगातार झलकती रहती है। कांग्रेस के युवा नेताओं के सवाल यही हैं कि कांग्रेस में इसी तरह से अगर उम्रदराज नेताओं को ही जगह मिलती रही तो फिर युवा लीडरशिप कैसे आगे बढ़ पाएगी। पवन खेड़ा, सुप्रिया श्रीनेत, आलोक शर्मा जैसे बेबाक वक्ताओं को पार्टी राजसभा नहीं भेजती बल्कि उन्हें भेजती है जिन्हें आज का नया वोटर ढ़ंग से जानता तक नहीं है । पुराने नेताओ की सोशल मीडिया पर कोई सक्रियता नहीं है जमीन पर सक्रियता तो छोड़ ही दीजिए । राजनीति में आपने योगदान दिया है लेकिन क्या नैतिकता नहीं है कि अब आप नई पीढ़ी के लिए जगह छोड़ कर पार्टी के नए नेताओं का मार्गदर्शन करें?
कांग्रेस का एक हास्यापद नमूना देखिए पप्पू यादव अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर देते हैं। जब आरजेडी उनकी मजबूत सीट पर दावा ठोंक देती है तो कांग्रेस चुप हो जाती है, और जब पप्पू यादव अपनी जि़द से निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, तब कांग्रेस पार्टी ऑर्डर देती है कि आप अपना नाम वापस ले लीजिए अन्यथा आपके ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। पप्पू यादव दशकों से उस सीट से सांसद थे अत: वे चुनाव लड़े और जीते भी.. वो तो अच्छा हुआ जीत गए अन्यथा कांग्रेस पार्टी हारने के बाद पार्टी से भी निकाल देती। प
प्पू यादव, आलोक शर्मा जैसे नेता पार्टी के लिए समर्पित हैं ऐसे नेताओ की मेहनत, विचारधारा के प्रति समर्पण को कांग्रेस इस तरह से दरकिनार करके पुराने नकारे हुए नेताओ के भरोसे राजनीति करेगी तो सफ़लता नहीं मिलेगी, समय के साथ बदलाव जरूरी हो जाता है, अन्यथा समय जब बदलता है तो हर्जाना वसूला करता है।