देश के अल्पसंख्यकों को लेकर एक ख़बर थी जिसमें पारसी शामिल हैं। उसी में उनके धर्म व कम होती जनसंख्या को लेकर कारण भी लिखे थे। पारसी धर्म को जानने में मुझे दिलचस्पी हुई और पढ़ा तो जाना कि वे पूरे विश्व में ही अब लगभग दो लाख के आस-पास बचे हैं। भारत में वे मुंबई और गुजरात में हैं, जितने भी हैं। उनके कम होते जाने के कई कारण ख़बर में थे, एक कि उनके कई बच्चों में एक-दो ही बच पाते हैं। दूसरा कि एक पारसी लडक़ी अगर किसी और धर्म में शादी करे तो वह पारसी नहीं रहेगी, अगर ग़ैर-पारसी लडक़ी किसी पारसी से शादी करे तो वो भी पारसी नहीं होगी। कोई भी ग़ैर-पारसी व्यक्ति पारसी धर्म को अपना नहीं सकता, जो हैं जितने हैं वही रहेंगे और उनका वंश।
और जानने पर पता चला कि जऱथुस्त्र ने इस धर्म की स्थापना की। इस नाम को मैंने ओशो के प्रवचनों में सुना और कई बार किताबों में पढ़ा है। ओशो ने अक्सर ही जऱथुस्त्र की प्रशंसा की है। वे मानते थे कि उनकी शिक्षा अधिकांशत: जऱथुस्त्र से मिलती है जिन्होंने जीवन के संगीत की बात की ना कि मृत्यु के बाद के किसी स्वर्ग और नर्क की। ये जऱथुस्त्र वही हैं जिन पर दार्शनिक नीत्शे ने किताब लिखी थी ‘दस स्पोक जऱथुस्त्र।’ वही नीत्शे जिन्होंने कहा था कि ईश्वर मर चुका है लेकिन ओशो की ही जऱथुस्त्र पर बोली गई श्रृंखला में है कि जऱथुस्त्र ने एक बार अपने गांव की ओर आते हुए कहा था कि ईश्वर मर चुका है। यहां लगा कि नीत्शे ने शायद जऱथुस्त्र के शब्द उधार लिए हैं जो बाद में उनके नाम से ही प्रचलित हो गए।
लेकिन, अगर ईश्वर मर ही चुका है तब अहुरमज्दा कौन थे जिनके ईश्वर होने का ऐलान जऱथुस्त्र ने सबके सामने किया था और स्वयं को उनका संदेशवाहक बताया। अहुरमज्दा की प्रतिमा पारसियों के पवित्र स्थल अग्यारी में रखी रहती है। पारसियों का एक धार्मिक ग्रन्थ भी है जिसका नाम है अवेस्ता जिसमें जऱथुस्त्र के संदेश हैं। कहा जाता है कि किताब के अधिकतर हिस्से अब विलुप्त हो चुके हैं बहुत कम ही हैं जो बाक़ी है। लेकिन इसकी समानता ऋग्वेद से है, उसमें लिखे शब्दों से भी। हालांकि पारसी धर्म एकेश्वरवादी है।
ओशो ने इस धर्म के अनुयायियों और शिक्षा की प्रशंसा की है कि वे दरअसल जि़ंदगी को जीना जानते हैं, उसके अस्तित्व के उत्सव को पहचानते हैं। इस सारी जानकारी के बाद लगा कि किसी पारसी से इस बारे में पूछना ठीक रहेगा लेकिन मैंने जिससे बात की, पता चला कि उनके पास अवेस्ता नहीं है, वे बहुत धार्मिक कर्मकांड में विश्वास भी नहीं करते, कभी-कभार ही अग्यारी जाते हैं और जऱथुस्त्र जिन्हें जोरास्टर भी कहते हैं- उनके बारे में बहुत कम ही मालूम है और चूंकि कई लोगों ने शादी दूसरे धर्म में की तो वे सब ग़ैर-पारसी हो चुके हैं तो बहुत सी परंपराएँ भी अब जा रही हैं। अग्यारी में ग़ैर पारसी नहीं जा सकते, वे पारसी भी नहीं जिन्होंने कहीं और शादी की। पारसी धर्म को मानने वाले बहुत कम बाक़ी हैं जिनमें से अधिकतर अविवाहित भी हैं लेकिन वे प्रकृति प्रेमी हैं, जीवन की समग्रता में विश्वास करते हैं। मृत्यु के बाद वहां शव को न जलाते हैं न दफऩाते हैं बल्कि चील और कौवे के लिए उसे टांग दिया जाता है। हालांकि इस धर्म के बारे में बहुत कुछ जानना शेष है और जऱथुस्त्र के बारे में भी जो नाचता गाता मसीहा था।
जऱथुस्त्र ज्ञान पाने के बाद संसार में लौट आए थे। ओशो कहते हैं कि इससे अधिक साहस का काम और दूसरा नहीं है।
बहरहाल, जब ये सब लिखना शुरू किया था तो पता नहीं था कि आज पारसी नववर्ष है - नवरोज़। जब नवरोज़ को गूगल किया तो पता चला कि ये तो संयोग से आज ही है। सभी पारसी दोस्तों को शुभकामना।