-डॉ. संजय शुक्ला
सोमवार को सोशल मीडिया पर नागपुर मे औरंगजेब का पुतला जलाए जाने की घटना का वीडियो वायरल होने के बाद शहर में जमकर पथराव और आगजनी की घटना घटित हुई है। खबरों के मुताबिक वीडियो वायरल होने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के लोग चौराहे पर जमा हो गए तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाते हुए दूसरे समुदाय के घरों और वाहनों पर पथराव और आगजनी करने लगे। इसके पहले हिन्दूवादी संगठनों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतिमा के सामने से औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था तथा पुतला जलाया था। इस घटना में दोनों समुदायों के लोगों के बीच जमकर नारेबाजी और टकराव हुआ फलस्वरूप दोनों पक्षों के घरों और वाहनों को नुकसान पहुंचा है। अलबत्ता यह पहली मर्तबा नहीं है जब सोशल मीडिया में किसी मामले की खबर, तस्वीर या वीडियो वायरल होने के बाद देश में सांप्रदायिक और जातिवादी दंगे भडक़े हों इसके पहले भी दर्जनों उदाहरण हैं जिसमें सांप्रदायिक दंगों और हिंसा का मुख्य वजह सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्रियां थी। शायद! इसीलिए वल्र्ड वाइड वेब ‘डब्ल्यू.डब्ल्यू.डब्ल्यू.’ के अविष्कारक टिम बर्नर्स ने कोफ्त और निराशा में कहा था कि ‘इंटरनेट अब नफरत फैलाने वालों का अड्डा बनते जा रहा है।’ दूसरी ओर सोशल मीडिया से जुड़े एक शीर्षस्थ अधिकारी कि मानें तो यह मीडिया किसी सुचारू ढंग से चल रहे लोकतांत्रिक ढांचे को बहुत हद तक नुकसान पहुंचा सकता है। वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिवेश पर गौर करें तो उक्त दोनों बातें सही साबित हो रहीं हैं।
हाल ही में उत्तरप्रदेश के संभल के सीओ अनुज चौधरी के होली के दिन रमजान के जुमे को लेकर दिए गए बयान ने भी सियासत और सोशल मीडिया पर जमकर खलबली मचाई थी उससे पूरे देश की निगाहें संभल की ओर लगी हुई थी। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अनुज चौधरी के बयान के पक्ष और विरोध में शेयर किए जा रहे पोस्ट, वीडियो और रील्स ने सांप्रदायिक नफरत की आग को काफी तेज कर दिया था। सरकार और प्रशासन के पुख्ता इंतजाम और तमाम आशंकाओं के बीच संभल सहित देश में छिटपुट झड़पों के खबरों को छोड़ दें तो आमतौर पर होली और रमजान का जुमा शांतिपूर्ण ढंग से निबट गया। देश के अनेक हिस्सों से जहां होलियारों द्वारा नमाजियों पर फूल बरसाने तथा मुस्लिम समुदाय द्वारा होली मना रहे लोगों के लिए नाश्ते और शरबत की व्यवस्था करने की खबरें भी आई जो काफी सुकूनदायक रहा।
गौरतलब है कि इंटरनेट क्रांति के वर्तमान दौर में सोशल मीडिया आज आम लोगों के जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। आमतौर पर किशोर से लेकर बुजुर्ग और युवा से लेकर महिलाएं किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं और इसमें वे घंटों एक्टिव रहते हैं। शुरुआत में जब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का आगाज हुआ तब इसे आम आदमी का संसद कहा गया जो आम आदमी के विचारों को कुछ ही पलों में देश और दुनिया के हजारों-लाखों लोगों तक पहुंचाने की ताकत रखता है। विडंबना यह कि अब यही माध्यम सरकार और समाज के सामने नित नई चुनौती बन कर उभर रहा है। देश में घटित कुछ आतंकवादी और सांप्रदायिक हिंसा में इंटरनेट व सोशल मीडिया की भडक़ाऊ कार्रवाई ने सरकार और प्रशासन को इंटरनेट पाबंदी के लिए विवश कर दिया। नागपुर और संभल सहित अन्य मामलों पर गौर करें तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक, धार्मिक और जातिगत सोशल मीडिया ग्रुप और यूजर्स देश और समाज के सांप्रदायिक समरसता और सौहार्द्र को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । नफऱत फैलाने के इस मुहिम को सियासतदानों के साथ ही हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग खूब हवा दे रहे हैं तथा लगातार भडक़ाऊ विडियो और आपत्तिजनक पोस्ट शेयर करते रहते हैं।
अलबत्ता यह कोई पहली मर्तबा नहीं है जब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी धर्म, जाति, राजनीतिक दल, राजनेता अथवा महापुरुष के बारे में भडक़ाऊ, अश्लील, झूठे, अपमानजनक वीडियो, रील्स और पोस्ट शेयर किए गए हों बल्कि अब तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पूरी तरह से वैचारिक प्रदूषण और नफऱत फैलाने का माध्यम बन चुका है। दरअसल सोशल मीडिया में नफरती और मर्यादाहीन वीडियो और पोस्ट के पीछे बुनियादी कारण देश में जारी धार्मिक और राजनीतिक असहिष्णुता है जिसके चलते धार्मिक संगठनों और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग इस माध्यम में जहर उगल रहे हैं। इन्हीं विसंगतियों के चलते अब यह माध्यम बड़ी तेजी से अपनी प्रासंगिकता खोने लगा है। भारत जैसे देश में जहां डिजिटल साक्षरता कम है वहां विभिन्न कट्टरपंथी धार्मिक और जातिवादी संगठनों के लिए सोशल मीडिया लोगों को भडक़ाने और झूठी खबरें परोसने का हथियार बनते जा रहा है।
विचारणीय यह कि इन कट्टरपंथियों के सॉफ्ट टारगेट में युवा वर्ग हैं और वे सोशल मीडिया के जरिए इन युवाओं का ब्रेन वाश कर रहे हैं। भारत युवा आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे युवा देश है जिन पर देश का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास निर्भर है। विडंबना है कि हमारे युवा जो किसी भी धर्म और जाति के हैं वे सोशल मीडिया पर नवाचार और साकारात्मक पोस्ट शेयर करने की जगह धार्मिक, मजहबी और जातिवादी उन्माद को बढ़ावा देने वाले विचारों को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दलों और राजनेताओं के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अपने राजनीतिक और चुनावी एजेंडा परोसने का अमोघ हथियार बन चुका है। हाल के वर्षों में देश की राजनीति और चुनाव में सोशल मीडिया ने खासकर युवाओं और महिलाओं को काफी प्रभावित किया है। सोशल मीडिया के इस ताकत के चलते अमूमन सभी राजनेताओं के जहां सोशल मीडिया पेज हैं वहीं राजनीतिक दलों के आईटी सेल हैं जो अपने राजनीतिक एजेंडे को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।
देश के वर्तमान राजनीतिक हालात पर गौर करें तो आज देश की राजनीति एक बार फिर से ‘कमंडल और मंडल -2’ में बंटा हुआ है। वोट-बैंक की सियासत के चलते देश में धार्मिक कट्टरवाद और तुष्टिकरण की सियासत को खूब बढ़ावा मिल रहा है। इस सियासत में राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक संगठनों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सबसे बड़ा माध्यम बना है जिसके जरिए वे लोगों को तमाम झूठी और आपत्तिजनक विडियो, फोटो और तथ्य परोस रहे हैं जिससे समाज में धार्मिक और जातिगत वैमनस्यता बढ़ रही है। दूसरी ओर राजनीतिक और धार्मिक संगठन इस नफऱत की आग में अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। देश अभी तक सोशल मीडिया की चुनौतियों से जूझ रहा था लेकिन हाल ही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि ‘एआई’ ने इस जोखिम को और भी गंभीर बना दिया है। भारत सहित दुनिया के कई देश अब ‘एआई’ तकनीक के जरिए कृत्रिम वीडियो (डीपफेक) के उन्माद से जूझ रहे हैं।
बिलाशक इंटरनेट और सोशल मीडिया ने पारंपरिक मीडिया के वर्चस्व को बड़ी तेजी से खंडित किया है।
लेकिन अब यह माध्यम धर्म और राजनीति के लिहाज से दोधारी तलवार साबित हो रहा है जो राष्ट्र के सांप्रदायिक सौहार्द और लोकतांत्रिक व्यवस्था दोनों के लिए खतरा बन चुका है लिहाजा इस पर बंदिश की भी जरूरत है। सूचना प्रौद्योगिकी के दुरूपयोग पर केंद्र सरकार सहित आदालतों ने भी अनेकों बार चिंता जताई है तथा इस तकनीक के बेजा इस्तेमाल को रोकने की कोशिशें भी हुई लेकिन देश का एक तबका इन कोशिशों को ‘बोलने की आजादी’ पर खतरा बताकर विरोध पर उतारू हो जाती है। इस अधिकार के पैरोकारों को समझना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने कुछ भी बोलना या लिखना नहीं है बल्कि इस अधिकार पर भी कुछ बंदिशें हैं। देश में साइबर अपराध पर लागू कानून अभी भी जरूरत के लिहाज से प्रभावी नहीं बन पाए हैं फलस्वरूप अपराधी कानून के चंगुल से बच जाते हैं। इस दिशा में वर्तमान चुनौतियों के मुताबिक कानून बनाने की जवाबदेही केंद्र सरकार की है क्योंकि यह अधिकार संसद को ही है। इसी प्रकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के यूजर्स को भी इस माध्यम में अपने विचार या विडियो साझा करते समय देश और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी के प्रति स्व-अनुशासित होना होगा। सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स की भी जवाबदेही है कि वे ऑनलाइन सामाग्रियों की फैक्ट चेकिंग के लिए प्रभावी तकनीक लागू करें ताकि भारत जैसे लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में सर्वधर्म समभाव और सौहार्द्र कायम रहे ।