-जे के कर
डोनाल्ड ट्रंप अमरीका के राष्ट्रपति पद पर आसीन हो चुके हैं। ओवल आफिस में दाखिल होते ही उन्होंने अमरीकी अर्थव्यवस्था के संकट यथा बेरोजगारी, गिरते क्रयशक्ति एवं महंगाई को विकसित, विकासशील तथा छोटे देशों पर लादने के लिये उन पर टैरिफ (अतिरिक्त टैक्स) लगाने की धमकी दी है। उनके निशाने पर कई देश तथा कई सेक्टर हैं। हालांकि, इसका समाधान द्विपक्षीय वार्ता तथा समझौते के माध्यम से हो सकता है। यहां पर हम केवल भारत से अमरीका निर्यात होने वाले दवाओं तथा उस पर प्रस्तावित टैरिफ की विवेचना करेंगे।
खबरों के अनुसार यह टैरिफ 2 अप्रैल 2025 से लागू हो सकता है। यह टैरिफ 25 फीसदी तक का हो सकता है। वर्तमान में यह 10 फीसदी तथा कुछ जीवनरक्षक दवाओं एवं वैक्सीन पर 5 फीसदी से लेकर शून्य फीसदी तक का है। भारत में टैरिफ किसी भी मामले में 0 फीसदी से 10 फीसदी के बीच है और ज्यादातर जीवनरक्षक दवाओं पर यह शून्य है।
दरअसल, ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल के समान अमरीका फस्र्ट की नीति को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बना बनाया माल न लाकर उनके देश में उत्पादन किया जाये जिससे अमरीकियों को रोजगार मिल सके जिससे उनके देश की बेरोजगारी कुछ कम हो तथा दूसरे देश में बेरोजगारी बढ़े। जो ऐसा नहीं करेंगे या जहां पर अमरीकी व्यापार घाटा ज्यादा है उन देशों पर अमरीका में निर्यात करने पर टैरिफ लगाकर उसका दाम बढ़ा दिया जाये ताकि अमरीकी कंपनियां उसका मुकाबला कर सके। दूसरी ओर वे अपने देश में बने माल को कम टैरिफ करवाकर अन्य देशों में भर देना चाहते हैं। कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि मेरा खून, खून, तेरा खून पानी वाला है।
उल्लेखनीय है कि भारत से बड़ी संख्या में जेनेरिक तथा अन्य दवायें कम कीमत पर अमरीका भेजी जाती हैं जिससे उनके देश के दवा कंपनियों को व्यापार घाटा होता है। उदाहरण के तौर पर साल 2001 में भारतीय दवा कंपनी सिपला ने एड्स की दवा को सस्ते दाम पर अमरीकी बाजारों में बेचना शुरू कर दिया जिससे प्रतियोगिता में टिकने के लिये अमरीकी कंपनियों को भी अपने दवाओं के दाम कम करन पड़े थे। जिसका सीधा असर उनके मुनाफे पर पड़ा। सिपला ने एड्स की दवा को गैर सरकारी संगठन डाक्टर विथआउट बार्डर को मात्र 350 डालर में पूरे एक साल की खुराक मुहैय्या करा दी। आज दुनिया में एड्स के औसतन तीन मरीजों में से एक भारतीय दवा कंपनी सिपला की दवा पर निर्भर है।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के अनमानों के अनुसार यदि ट्रम्प के प्रस्तावित टैरिफ को बिना किसी छूट के लागू कर दिया जाता है, तो फार्मा और जीवन विज्ञान उद्योग का नुकसान प्रति वर्ष 90 मिलियन डॉलर से बढक़र 56 बिलियन डॉलर से अधिक हो सकता है। भारत से साल में करीब 47 फीसदी जेनेरिक दवा अमरीका भेजी जाती हैं जो जांच के दायरे में है। यदि भारतीय जेनेरिक दवाओं पर 25 फीसदी रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिया जाता है तो इनके दाम बढ़ जायेंगे तथा निर्यात घट जायेंगे। बकौल संयुक्त राष्ट्र कामट्रेड डाटाबेस साल 2024 में अमरीका ने भारत को 635।37 मिलियन डालर की दवाओं का निर्यात किया, वहीं भारत से 12।73 बिलियन डालर की दवायें अमरीका भेजी गई।
उपरोक्त तमाम अशुभ संकेतों के बाद आशंका जताई जा रही है कि अमरीका में भारतीय दवाओं का दाम बढ़ जायेगा तथा उनकी कमी हो जायेगी। इससे एक नये तरह का संकट अमरीका में भी उभर सकता है जिसकी ओर ट्रंप का ध्यान अभी नहीं गया है।।
जहां तक भारत की बात है भारत का दवा उद्योग दुनिया में मात्रा के हिसाब से तीसरे नंबर पर आता है। भारतीय दवा उद्योग दुनियाभर में एक महत्वपूर्ण भूमिका का पालन करता है। भारत डीटीपी, बीसीजी तथा मिसल्स के वैक्सीन का विश्व नेता है। यह दुनिया में कम कीमत पर दवाओं की सप्लाई करता है। यूनिसेफ को जो वैक्सीन जाता है उसका 60 फीसदी भारत से ही भेजा जाता है। भारत विश्व-स्वास्थ्य-संगठन को 60 फीसदी वैक्सीन की सप्लाई करता है। इतना ही नहीं भारत विश्व-स्वास्थ्य-संगठन द्वारा ली जाने वाली डिप्थीरिया, टिटेनस और डीपीटी एवं बीसीजी वैक्सीन के 40 फीसदी से लेकर 70 फीसदी तक सप्लाई करता है। विश्व-स्वास्थ्य-संगठन को मिसल्स के वैक्सीन का 90 फीसदी भारत ही सप्लाई करता है।
विश्व में भारत में ही यूएसएफडीए द्वारा मान्यता प्राप्त दवा की फैक्टरियां सबसे ज्यादा हैं। हमारे देश में एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रीडियेन्ट बनाने वाले 500 मैनुफैक्चर्रस हैं जिनका विश्व एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रीडियेन्ट इंडस्ट्रीज में 8 फीसदी की हिस्सेदारी है। पूरी दुनिया में जो जेनेरिक दवाओं हैं उमें से 20 फीसदी भारत से ही सप्लाई की जाती है। भारत 60 हजार विभिन्न जेनेरिक ब्रांड का निर्माण करता है।
अपने कम कीमत तथा उच्च गुणवत्ता के लिये भारत पूरी दुनिया में जाना जाता है तथा इसे ‘फार्मेसी आफ वल्र्ड’ कहा जाता है।
साल 2023-24 में भारतीय दवा बाजार 4 लाख 17 हजार 345 करोड़ रुपयों का था। जिसमें से 2 लाख 19 हजार 438 करोड़ रुपयों के दवाओं का निर्यात किया गया। जबकि इसी समय भारत में मात्र 58 हजार 440 करोड़ रुपयों के दवाओं का आयात किया गया।
यदि ट्रंप भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगा देते हैं तो उनका निर्यात घट जायेगा तथा देश को विदेशी मुद्रा का घाटा भी सहना पड़ेगा। अमरीकी टैरिफ नीति के चलते भारतीय दवा उद्योग को नये बाजारों की खोज करनी होगी और निर्यात के अन्य अवसरों पर ध्यान देना होगा। इस संकट से बचने के लिए भारत को कूटनीतिक स्तर पर अमरीका से बातचीत करनी होगी।अब गेंद अमरीकी राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के पाले में हैं। देखना है कि कभी नमस्ते ट्रंप का आयोजन करने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी किस तरह से इस संकट से भारतीय दवा उद्योग की रक्षा कर सकते हैं। ट्रंप की सनक भारत में बेरोजगारी बढ़ायेगी तथा विदेशी मुद्रा की आवक को भी कम करेगी।