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दिल्ली की हार के बाद अरविंद केजरीवाल, पंजाब की राजनीति और विपक्षी एकता का क्या होगा?
10-Feb-2025 2:56 PM
दिल्ली की हार के बाद अरविंद केजरीवाल, पंजाब की राजनीति और विपक्षी एकता का क्या होगा?

-रजनीश कुमार

अरविंद केजरीवाल 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में थे और तीन लाख 71 हजार से ज़्यादा मतों से हार मिली थी।

तब आम आदमी पार्टी को बने मुश्किल से दो साल भी नहीं हुए थे। अब जब आम आदमी पार्टी 12 साल की हो गई है, तब केजरीवाल अपनी नई दिल्ली विधानसभा सीट बीजेपी के प्रवेश वर्मा से चार हजार से ज़्यादा मतों से हार गए।

पहली हार केजरीवाल को बीजेपी के शीर्ष नेता नरेंद्र मोदी से मिली थी और दूसरी हार बीजेपी के राज्य स्तर के नेता प्रवेश वर्मा से मिली।

आम आदमी पार्टी का उदय दिल्ली में हुआ था और पहली जीत भी दिल्ली में ही मिली थी। आप 2013 से लगातार दिल्ली विधानसभा चुनाव जीत रही थी लेकिन 2025 में उसका विजय रथ थम गया है।

अरविंद केजरीवाल को यह हार तब मिली है, जब वो भ्रष्टाचार के मामले में ज़मानत पर जेल से बाहर हैं।

अरविंद केजरीवाल ने ज़मानत पर रिहा होने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और कहा था कि जनता तय करेगी कि वो ईमानदार हैं या नहीं। अगर केजरीवाल को जीत मिलती तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता और बीजेपी पर हमला कर सकते थे कि उन्हें जानबूझ कर फँसाया गया था, जिसका जनता ने जवाब दे दिया है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार का गहरा असर अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर पड़ेगा। अब आम आदमी पार्टी की सरकार केवल पंजाब में बची है। इस हार से आप की पंजाब की राजनीति भी प्रभावित हो सकती है।

पंजाब पर असर

पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार मानते हैं कि दिल्ली में केजरीवाल की हार से आप की पंजाब यूनिट की स्वायत्तता बढ़ेगी और केजरीवाल का दखल कम होगा।

प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, ‘पंजाब में यही कहा जाता है कि दिल्ली से सरकार चलती है। अब आप की पंजाब यूनिट अपना फैसला ख़ुद लेने का साहस कर सकती है। पंजाब में सरकार नहीं गिरेगी क्योंकि 90 से ज़्यादा विधायक आप के पास हैं और अभी कोई सत्ता से बाहर नहीं होना चाहेगा। भगवंत मान केजरीवाल के वफ़ादार माने जाते हैं लेकिन अब वो भी सिर उठा सकते हैं। हालांकि भगवंत मान के अमित शाह से भी अच्छे संबंध हैं।’

कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल की हार से कांग्रेस का पंजाब में सीधा फ़ायदा होगा। पंजाब में कांग्रेस ऐसे भी मज़बूत है लेकिन केजरीवाल की हार से आत्मविश्वास और बढ़ेगा।

प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, ‘2027 अभी दूर है लेकिन पंजाब में आप की वापसी आसान नहीं है। केजरीवाल की हार पंजाब में न केवल कांग्रेस के लिए अच्छी है बल्कि भगवंत मान के लिए भी है। हरियाणा में आम आदमी पार्टी चाहती थी कि कांग्रेस से गठबंधन हो लेकिन राहुल गांधी तैयार नहीं हुए थे। दिल्ली में कांग्रेस चाहती थी कि आम आदमी पार्टी से गठबंधन हो लेकिन अरविंद केजरीवाल तैयार नहीं हुए थे। अगर गठबंधन होता तो दिल्ली की तस्वीर कुछ और हो सकती थी।''

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे का संदेश दिल्ली तक ही सीमित नहीं रहेगा। इसी साल बिहार में भी विधानसभा चुनाव हैं। अगर अरविंद केजरीवाल जीत जाते तो विपक्ष बिहार में बीजेपी के ख़िलाफ़ आत्मविश्वास के साथ गोलबंदी कर सकता था। अरविंद केजरीवाल आप को दिल्ली और पंजाब से बाहर ले जाने की कोशिश में शुरू से ही लगे थे लेकिन इस हार से इस कोशिश पर ब्रेक लग सकता है।

गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी को लगता है कि इस हार के बाद केजरीवाल की राजनीति बुरी तरह से प्रभावित होगी।

केजरीवाल अब क्या करेंगे?

प्रोफ़ेसर जानी कहते हैं, ‘आम आदमी पार्टी पर दिल्ली में ब्रेक लग जाना प्रतीकात्मक रूप से भी मायने रखता है। ये वैसा ही कि जैसे अयोध्या में बीजेपी हार गई। अगर केजरीवाल को जीत मिलती तो उन्हें यह कहने का साहस मिलता कि बीजेपी ने भ्रष्टाचार के मामले में फँसा दिया था लेकिन अब वह ऐसा कहने लायक भी नहीं रहे हैं।’

प्रोफ़ेसर गौरांग जानी कहते हैं, ‘केजरीवाल को अब सोचना होगा कि उन्हें बीजेपी से लडऩा है या कांग्रेस से। केजरीवाल ने देश भर में कांग्रेस को ही कमज़ोर किया है। गुजरात का पिछला विधानसभा चुनाव देखिए तो उन्होंने बीजेपी को ही फ़ायदा पहुँचाया। आम आदमी पार्टी की राजनीति वैचारिक रूप से कन्फ्य़ूज करती है। इस हार के बाद शायद वे अपनी लाइन स्पष्ट कर सकते हैं।’

अरविंद केजरीवाल को कुछ लोग नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के रूप में देखते थे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते थे कि केजरीवाल बीजेपी की बहुसंख्यकवाद की राजनीति का गवर्नेंस के मुद्दे से बहुत अच्छे तरीके से मुक़ाबला कर रहे थे।

जेएनयू में राजनीति विज्ञान के असोसिएट प्रोफ़ेसर सुधीर कुमार कहते हैं, ‘कुछ लोग मानते थे कि केजरीवाल बहुसंख्यकवाद की राजनीति में जगह बनाने की कोशिश रह रहे हैं। लेकिन मैं मानता हूँ कि केजरीवाल गवर्नेंस के मुद्दे से बीजेपी की बहुसंख्यकवाद की राजनीति का बहुत बढिय़ा तरीक़े से काउंटर कर रहे थे।’

‘केजरीवाल की हार के बाद यह सवाल बड़ा हो गया है कि बहुसंख्यकवाद की राजनीति को काउंटर करने के लिए अब और क्या माकूल तरीका हो सकता है। बीजेपी अब हिन्दुत्व और गवर्नेंस दोनों को साथ लेकर चल रही है। ऐसे में इस राजनीति को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास बहुत हथियार दिख नहीं रहा है।''

सुधीर कुमार कहते हैं कि इस हार के बाद अरविंद केजरीवाल को खुद को राजनीति में प्रासंगिक बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना होगा।

विपक्ष पर क्या असर होगा?

सुधीर कुमार कहते हैं, ''आम आदमी पार्टी को नरेंद्र मोदी की बीजेपी से लडऩा है। अरविंद केजरीवाल नेता तब बने थे, जब कांग्रेस की सरकार थी। अब किसी भी व्यक्ति के लिए इतना स्पेस नहीं है कि वह सरकार को चुनौती दे सके। अरविंद केजरीवाल के लिए ऐसे राजनीतिक माहौल में फिर से खुद को मजबूत करना आसान नहीं होगा।’

2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट से लोकसभा चुनाव जीते धर्मवीर गांधी ने योगेंद्र यादव के साथ पार्टी छोड़ दी थी। अभी गांधी पटियाला से कांग्रेस के सांसद हैं। गांधी कहते हैं, ‘दिल्ली में हार का असर पंजाब में सीधा पड़ेगा। अरविंद केजरीवाल को पैसे पंजाब से मिलते हैं। दिल्ली में हार के बाद अब पंजाब की आप यूनिट आँख से आँख मिलाकर बात कर सकती है।''

अरविंद केजरीवाल की दिल्ली में हार के बाद यह सवाल और बड़ा हो गया है कि विपक्ष से पीएम मोदी को चुनौती कौन देगा? क्या राहुल गांधी के लिए मैदान ख़ाली हो गया है?

सुधीर कुमार कहते हैं, ‘अरविंद केजरीवाल की हार से राहुल को फ़ायदा मिलेगा यह कहना मुश्किल है। बीजेपी तो अपनी कमजोरी का भी फ़ायदा उठा लेती है। गुजरात में बीजेपी कमजोर पड़ी लेकिन कांग्रेस नहीं भुना पाई। मध्य प्रदेश में बीजेपी कमज़ोर हुई लेकिन कांग्रेस को रत्ती भर भी फायदा नहीं मिला। मुझे लगता है कि केजरीवाल की हार के बाद यह सवाल और बड़ा हो गया है कि विपक्ष से मोदी को चुनौती कौन देगा?’

प्रोफेसर गौरांग जानी कहते हैं, ‘हिन्दुत्व की राजनीति में बीजेपी अब इकलौती खिलाड़ी है, यहाँ तक कि उसने शिवसेना को भी बाहर कर दिया। केजरीवाल ने इस राजनीति की काट सुशासन के मुद्दों में निकालने की कोशिश की लेकिन नहीं चल पाए। कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की बात करती है लेकिन बहुसंख्यकवाद की राजनीति में यह बात कौन सुनेगा? अब केजरीवाल कमज़ोर होते हैं तो इसका फ़ायदा राहुल को मिलेगा, यह कहना मुश्किल है।’

देश में क्षेत्रीय पार्टियों की पकड़ कमजोर हुई है। ओडिशा में नवीन पटनायक को बीजेपी ने पटखनी दी, बिहार में जेडीयू को जूनियर पार्टनर बना चुकी है, महाराष्ट्र में शिवसेना को कमजोर कर चुकी है, हरियाणा से आईएनएलडी निष्प्रभावी हो गया है, तेलंगाना में बीआरएस कमजोर हो चुकी है और अब दिल्ली से अरविंद केजरीवाल की सरकार विदा होने जा रही है। (bbc.com/hindi)

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