-जेरेमी बोवेन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गज़़ा को नियंत्रण में लेने और वहां के लोगों को फिर से बसाने की योजना पूरी नहीं होने वाली है। ऐसी किसी भी योजना के लिए अरब देशों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। लेकिन अरब देशों ने इस योजना को सिरे से खारिज कर दिया है।
योजना को खारिज करने वाले अरब देशों में जॉर्डन और मिस्र भी शामिल हैं। ट्रंप चाहते हैं कि ये दो देश गाजा के मौजूदा बाशिंदों को अपने यहाँ बसा लें। वह चाहते हैं कि इसका ख़र्च सऊदी अरब उठाए लेकिन वो भी इस योजना से सहमत नहीं है।
अमेरिका और इसराइल के पश्चिमी सहयोगी भी इस विचार के खिलाफ हैं। लेकिन गाजा में कुछ या शायद कई फिलस्तीनियों को अगर मौका मिले तो वो वहां से बाहर निकलने का रास्ता चुन सकते हैं। लेकिन अगर दस लाख लोग वहाँ से निकल भी गए तो भी वहां 12 लाख लोग बच जाएंगे। और शायद अमेरिका को ट्रंप की योजना पूरी करने के लिए इन लोगों को जबरन वहां से हटाना पड़े। साल 2003 में इराक़ में हस्तक्षेप के बाद ऐसी कोई भी कोशिश अमेरिका में बेहद अलोकप्रिय होगी।
ट्रंप की योजना पर क्यों उठे सवाल?
साथ ही ये अरसे से ‘दो-देशों’ के समाधान वाली योजना की उम्मीद का भी अंत होगा। दो देशों वाले समाधान का मकसद इसराइल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलस्तीनी देश की स्थापना करना रहा है ताकि एक सदी से चला आ रहा है यह ख़ूनी संघर्ष थम जाए।
इसराइल की नेतन्याहू सरकार दो देश बनाने की इस योजना के सख्त खिलाफ है।
कई वर्षों की विफल शांति वार्ताओं के दौरान, ‘दो देशों’ वाला ये समाधान महज एक खोखला नारा बन कर रह गया है। लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत से ही यह समाधान अमेरिकी विदेश नीति का केंद्रीय मुद्दा रहा है।
ट्रंप की योजना अंतरराष्ट्रीय कानून का भी उल्लंघन करेगी।
अमेरिका हमेशा कहता रहा है कि वो कानून के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में यकीन करता है।
ट्रंप की योजना पर अमल इस विचार के भी विरुद्ध होगा। इसके अलावा यूक्रेन में रूस की और ताइवान में चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को भी बल मिलेगा।
मध्य-पूर्व के लिए ट्रंप की योजना के क्या मायने?
अब सवाल ये है कि अगर ऐसा नहीं होने वाला है तो इस सब के बारे में चिंता क्यों करें? इसका उत्तर यह है कि ट्रंप की टिप्पणियाँ चाहे कितनी भी अजीब क्यों न हों, उनका कुछ न कुछ परिणाम तो जरूर होगा।
ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। वह दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है, भले ही ट्रंप पहले एक रियलिटी टीवी होस्ट और सुर्खियां बटोरने की कोशिश करने वाले राजनीतिक उम्मीदवार रहे हों।
उनकी ये आश्चर्यजनक घोषणा गाजा में चल रहे एक नाज़ुक युद्धविराम को कमजोर कर सकती है। एक वरिष्ठ अरब सूत्र ने मुझे बताया कि ये घोषणा युद्धविराम के लिए 'मौत की घंटी' हो सकती है।
वैसे भी गाजा में भविष्य का शासन कैसा होगा उसपर युद्धविराम समझौता ख़ामोश है क्योंकि दोनों पक्षों में इस विषय पर सहमति नहीं है।
अब ट्रंप ने इस मुद्दे का एक समाधान सुझाया है। भले ही ट्रंप की गाजा योजना पूरी न हो पर फिलस्तीनियों और इसराइलियों के दिमाग में अब एक नया विचार घर कर जाएगा।
इसराइल में यहूदी चरमपंथियों के मन की बात
गाजा पर ट्रंप की योजना अति-राष्ट्रवादी यहूदी चरमपंथियों के सपनों को पोषित करेगी।
ऐसी विचारधारा के लोग मानते हैं कि भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच और शायद उससे आगे की सारी भूमि यहूदियों की है।
अति-राष्ट्रवादी यहूदी चरमपंथियों के नेता नेतन्याहू की सरकार का हिस्सा हैं और उन्हें सत्ता में बनाए रखने में अहम रोल अदा कर रहे हैं। ये सारे लोग ट्रंप के विचार से ख़ुश हैं।
वो चाहते हैं कि गज़़ा का युद्ध फिर से शुरू हो ताकि वहां से फ़लस्तीनियों को हटाकर यहूदियों को बसाया जा सके।
इसराइल के वित्त मंत्री बेजेलेल स्मोट्रिच ने कहा कि ट्रंप ने 7 अक्टूबर के हमलों के बाद गाजा के भविष्य का हल खोज लिया है।
उनके बयान में कहा गया है ‘जिसने भी हमारी जमीन पर सबसे भयानक नरसंहार किया है, उसे हमेशा के लिए अपनी भूमि खोनी पड़ेगी। आखिरकार अब हम भगवान की मदद से, एक स्वतंत्र फिलस्तीनी देश के खतरनाक विचार को दफनाने के लिए काम करेंगे।’
इसराइल विपक्षी नेताओं ने योजना का स्वागत किया है क्योंकि शायद उन्हें अपने भविष्य का डर सता रहा है। ऐसा हो सकता है कि हमास और अन्य फिलस्तीनी सशस्त्र समूह ट्रंप को जवाब देने के लिए बल के प्रदर्शन की जरूरत समझें।
फिलस्तीनियों के लिए, इसराइल के साथ संघर्ष अपनी जमीन से बेदखली है जिसे वे अल-नकबा या ‘तबाही’ का नाम देते रहे हैं। अल-नकबा 1948 में इसराइल के गठन के बाद शुरू हुआ फिलस्तीनियों का पलायन था।
तब 700,000 से अधिक फ़लस्तीनी या तो भाग गए थे या इसराइली सेना ने उन्हें अपने घरों से भागने के लिए मजबूर कर दिया था।
कुछ मु_ी भर फ़लस्तीनियों के अलावा बाकी सभी को कभी भी वापस जाने की अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद इसराइल ने ऐसे कानून पारित किए जिनका उपयोग वह अभी भी फ़लस्तीनियों की संपत्ति को ज़ब्त करने के लिए करता है।
अब डर ये रहेगा कि ये सब दोबारा हो सकता है।
कई फिलस्तीनियों को पहले से ही लग रहा था इसराइल हमास के खिलाफ युद्ध का इस्तेमाल गाजा को तबाह करने और वहां की आबादी को बाहर निकालने के लिए कर रहा है।
इसलिए फिलस्तीनी इसराइल पर नरसंहार का आरोप लगाते रहे हैं। और अब उन्हें लग सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप इसराइल की योजनाओं का समर्थन कर रहे हैं।
ट्रंप ने ये योजना क्यों पेश की?
सिर्फ इसलिए कि ट्रंप ने कहा है, इससे कोई बात सच या निश्चित नहीं हो जाती। उनके बयान अक्सर अमेरिका की तयशुदा नीति की तुलना में किसी रियल एस्टेट डील के दांव पेच जैसे होते हैं।
शायद ट्रंप किसी और योजना पर काम कर रहे हों और यहां सिफऱ् भ्रम फैला रहे हों। कहा तो ये भी जाता है कि ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार के इच्छुक रहे हैं। मध्य-पूर्व में शांति की पहल को बढ़ावा देने वालों को नोबेल पुरस्कार मिलते रहे हैं।
जब दुनिया उनकी ट्रंप की गज़़ा के बारे में घोषणा को समझने का प्रयास कर रही थी, उन्होंने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर ईरान के साथ ‘सत्यापित परमाणु शांति समझौते’ की इच्छा पोस्ट की।
ईरान इस बात से इनकार करता है कि वह परमाणु हथियार बनाना चाहता है लेकिन तेहरान में इस बात पर खुली बहस चल रही है कि क्या अब ख़तरा इतना बढ़ गया है कि उन्हें ऐसा कोई हथियार बना लेना चाहिए।
नेतन्याहू कई वर्षों से चाहते हैं कि अमेरिका, इसराइल की मदद से, ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट कर दे। ईरान के साथ डील करना कभी भी उनकी योजना का हिस्सा नहीं था।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में नेतन्याहू ने ईरान के साथ बराक ओबामा के दौरान हुए परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने के लिए सफल अभियान चलाया था।
अगर ट्रंप का मकसद ईरान के बारे में बात कर के धुर दक्षिणपंथियों को खुश करना था तो वे इसमें सफल रहे हैं। लेकिन ट्रंप ने दुनिया के सबसे अशांत इलाके में एक अनिश्चितता और अस्थिरता पैदा की है। (bbc.com/hindi)