भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आठ जनवरी को दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाक़ात की
पाकिस्तान को लगा था कि अफगानिस्तान से अशरफ गनी की सरकार के जाने और तालिबान के आने के बाद उसकी पकड़ मजबूत होगी।
15 अगस्त 2021 को जब तालिबान ने अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में लिया तो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि अफगानिस्तान के लोगों ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दी हैं।
तब पाकिस्तान में जश्न का माहौल था। ज़ाहिर है कि तालिबान को पाकिस्तान दशकों से मदद करता रहा है। लेकिन पिछले चार सालों में चीजें तेजी से बदली हैं। अब पाकिस्तान और तालिबान आमने-सामने हैं। दोनों ओर से एक-दूसरे पर हमले हो रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्व डिप्लोमैट और पत्रकार अपनी सरकार पर तंज़ कर रहे हैं कि तालिबान के आने पर ख़ुशी मानने वाले अब कहाँ हैं?
भारत-अफगानिस्तान की करीबी
अफगानिस्तान से अशरफ गनी का जाना भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था।
ऐसा लग रहा था कि भारत ने अफगानिस्तान में जो अरबों डॉलर के निवेश किए हैं, उन पर पानी फिर जाएगा। लेकिन कुछ महीनों में तालिबान से भारत के संपर्क बढ़े हैं और एक बार फिर अफगानिस्तान और भारत के संबंधों में गर्मजोशी आती दिख रही है।
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आठ जनवरी को दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी से मुलाकात की।
तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अफगानिस्तान भारत को अहम क्षेत्रीय और आर्थिक साझेदार के रूप में देखता है। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत के साथ यह अब तक की सबसे उच्चस्तरीय बैठक थी।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ईरान के चाबहार पोर्ट के जरिए भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर बात हुई है। भारत ईरान में चाबहार पोर्ट बना रहा है ताकि पाकिस्तान के कराची और ग्वादर पोर्ट को बाइपास कर अफगानिस्तान के साथ ईरान और मध्य एशिया से कारोबार किया जा सके।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने विक्रम मिस्री से मुलाकात के बाद जारी बयान में कहा, ‘हमारी विदेश नीति संतुलित और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर केंद्रित है। हमारा लक्ष्य है कि भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक साझेदारी मजबूत हो।’
वहीं भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अफगानिस्तान में विकास की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने पर विचार किया जा रहा है और साथ ही व्यापार बढ़ाने पर भी बात हुई है। दुनिया के किसी भी देश ने अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है और भारत भी उन्हीं देशों में से एक है।
पाकिस्तान में हलचल?
दुबई में तालिबान और भारत की मुलाकात पर पाकिस्तान से काफ़ी प्रतिक्रिया आ रही है। यह मुलाकात पाकिस्तान को परेशान भी कर सकती है।
पाकिस्तान ने हाल के दिनों में अफगानिस्तान में हवाई हमले किए हैं। पाकिस्तान का कहना है कि अफगानिस्तान की जमीन से आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया जा रहा है।
इसी हफ्ते भारत ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हमले की निंदा की थी।
अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ की पाकिस्तान में संवाददाता रहीं निरूपमा सुब्रमण्यम ने लिखा है, ‘तालिबान के लिए काबुल नदी पर शहतूत डैम प्राथमिकता है। भारत और अफगानिस्तान के बीच 2020 में 25 करोड़ डॉलर के प्रोजेक्ट पर समझौता हुआ था। लेकिन तालिबान के आने के बाद चीज़ें थम गई थीं। तालिबान अब भारत से कहा रहा है कि वह परियोजनाएं पूरी करे।’
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने एक्स पर लिखा है, ‘भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की तालिबान के विदेश मंत्री से मुलाक़ात पाकिस्तानी रणनीतिकारों के लिए एक सबक है, जो ऐसा सोच रहे थे कि अफग़़ानिस्तान में तालिबान के आने से पाकिस्तान को मदद मिलेगी और भारत का प्रभाव ख़त्म हो जाएगा।’
इससे पहले हक्कानी ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल समा टीवी से कहा था, ‘ये तो काबुल फतह कर सोच रहे थे कि तालिबान वहाँ आएगा और पाकिस्तान का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा लेकिन वो तो हमारे ही गले पड़ गए हैं। विदेश नीति को समझने वालों के नज़रिया ही देखना चाहिए। आप कभी किसी ब्रिगेड के कमांडर थे तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको सब कुछ समझ में आ रहा होगा।’
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बानी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर क्रिस्टोफर क्लैरी ने लिखा है, ‘दशकों से अमेरिकी नीति निर्माता पाकिस्तान से कहते रहे कि तालिबान का समर्थन करने से शायद ही रणनीतिक रूप से फायदेमंद होगा। अब चीजें सामने आ रही हैं।’
अमेरिकी थिंक टैंक द विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने भारत और तालिबान के बीच बढ़ते संपर्क पर लिखा है, ‘कोई यह कह सकता है कि तालिबान से भारत की बढ़ती करीबी अफगानिस्तान में पाकिस्तान को मात देने की कोशिश है। लेकिन इसका व्यावहारिक पक्ष भी है कि भारत नहीं चाहता है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत में आतंकवादी हमले के लिए हो।’
‘इसके अलावा भारत ईरान के चाबहार के ज़रिए अफगानिस्तान से संपर्क भी बढ़ाना चाहता है। भारत यहीं से मध्य एशिया भी पहुँचेगा। भारत की इसी कोशिश के दम पर वहां की जनता में भरोसा भी बढ़ेगा। पाकिस्तान चाहता है कि तालिबान अफगानिस्तान में उसके विरोधियों को काबू में करे लेकिन तालिबान ऐसा करने के मूड में नहीं है और इसी का फायदा भारत को मिल रहा है। लेकिन भारत और तालिबान के संबंधों को पाकिस्तान के आईने में नहीं देखना चाहिए।’
भारत के अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्द’ के अंतरराष्ट्रीय संपादक स्टैनली जॉनी ने लिखा है, ‘2021 में भारत और तालिबान एक दूसरे से संपर्क बनाए रखना चाहते थे। इसके कई कारण हैं। भारत ने अफगानिस्तान में निवेश किया है और आतंकवाद पर भी चिंताएं हैं। पाकिस्तान फैक्टर भी अहम है। तालिबान चाहता है कि पाकिस्तान के दखल से मुक्त रहे और भारत के लिए यह मौका है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत तालिबान से संबंध सामान्य बनाने को लेकर कोई जल्दबाजी में है। यह अंतरराष्ट्रीय समझौते के बाद ही होगा। लेकिन भारत और तालिबान संपर्क बनाए रखेंगे और धीरे-धीरे नए अवसरों की तलाश करते रहेंगे।’
भारत से नाराजग़ी भी...
भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित का कहना है कि अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की नीति बुरी तरह विफल रही है। इस बारे में कोई स्पष्ट नीति नहीं है।
वो कहते हैं कि एक ही समय पर दोनों देशों के बीच कारोबार और संबंध बढ़ाने की बात होती है और ठीक उसी समय पर हमले भी हो रहे होते हैं।
अब्दुल बासित अफगानिस्तान से संबंध बिगडऩे के केंद्र में पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) को देखते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान में आतंकवादी हमले बढ़े हैं और पाकिस्तान सरकार टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के खिलाफ कार्रवाई कर रही है लेकिन टीटीपी के सुरक्षित पनाहगाह अफगानिस्तान में हैं। इस तरह से ये पूरा मामला बेहद संवेदनशील हो जाता है।
अब्दुल बासित ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल एबीएन न्यूज़ से कहा, ‘ये बड़ा संवेदनशील मामला है। अफगान तालिबान और पाकिस्तान तालिबान पूर्व में सहयोग करते रहे हैं। पाकिस्तान ये भी चाहता है कि काबुल के साथ उसके संबंध अच्छे हों, लेकिन ये हमले भी मजबूरी बन जाते हैं क्योंकि तालिबान सरकार पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ कदम नहीं उठा रही है।’
अफगानिस्तान में तालिबान के साथ तालमेल न बैठा पाने के लिए राजनीतिक जानकार पाकिस्तान के सियासतदानों को जिम्मेदार ठहराते हैं।
एक यूट्यूब चैनल से बातचीत में पाकिस्तानी राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद आमिर राना ने कहा कि तालिबान जब सत्ता में आया तो उसको समझने में ग़लती हुई और पाकिस्तान ने ज़्यादा उम्मीदें लगा लीं।
उन्होंने कहा, ‘ग़लती ये हुई कि हमने हक्कानी की नजऱ से पूरे तालिबान को देखा कि हक्कानी हमारे हिमायती हैं। हमारे एसेट हैं तो ये हमें शायद मदद करेंगे। लेकिन ये नहीं हुआ।’
तालिबान से भारत के बढ़ते संपर्क को लेकर अफगान रिपब्लिक के डिप्लोमैट बहुत खफा हैं।
श्रीलंका, भारत और अमेरिका में रिपब्लिक और अफगानिस्तान के राजदूत रहे एम अशरफ़ हैदरी ने विक्रम मिस्री और तालिबान की मुलाक़ात पर कठोर शब्दों में लिखा है, ‘यह अफगानिस्तान की जनता, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, मानवाधिकार, अफगानिस्तान की विविधता, अफगान हिन्दू, सिख, यहूदी और एक राष्ट्र के साथ धोखा है, जिन्होंने 2021 से पहले भारत के लिए अंतहीन ख़ून बहाया है। पाकिस्तान की तरह भारत भी जल्दी या देरी से अपने ही मूल्यों और हितों से धोखे के लिए अफ़सोस करेगा।
अशरफ हैदरी ने लिखा है, ‘आप यह मत भूलिए कि तालिबान कहता है कि हिन्दुओं ने उसके भाइयों और बहनों के कश्मीर पर कब्जा कर रखा है और कश्मीर की आजादी के लिए वह लड़ेगा। आप यह भी मत भूलिए कि बमियान में बुद्ध की मूर्तियां तालिबान ने ही तोड़ी थीं और ये मूर्तियां हमारी संस्कृति के लिए संपदा थीं।’
भारत में रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के राजदूत रहे फरीद मामुन्दजई ने कहा है, ‘तालिबान सरकार के साथ कोई भी बातचीत उन लोगों को दरकिनार करके नहीं हो सकती, जो वहां लगातार अत्याचार के शिकार हो रही हैं। किसी भी बातचीत में महिलाओं को बच्चों के हितों को प्राथमिकता देनी होगी। वहां जो मानवीय संकट है उसे सुलझाना होगा। भारत वहां तालिबान के जुल्म को वैधता न दे।’ (bbc.com/hindi)