विचार / लेख

सोशियल मीडिया संदेशों को डीकोड करने का झमेला
05-Dec-2024 3:33 PM
सोशियल मीडिया संदेशों को डीकोड करने का झमेला

-डॉ.राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

 सोशियल मीडिया में जिस तरह से आजकल शार्टकट मैसेज को प्राथमिकता दी जाने लगी है वह किसी मानसिक प्रताडऩा से कम कर नहीं आंकी जा सकती। कारण भी साफ है सोशियल मीडिया के संदेशों को डीकोड करने की अपनी समस्या सामने आने लगी है। यह कोई कपोल कल्पित परिकल्पना नहीं अपितु अमेरिका के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसंधान कर्ताओं के एक दो नहीं अपितु 8 शोध का परिणाम है। यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं या यों कहें कि सर्वेकर्ताओं को शोध परिणाम जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल साइकोलॉजी के अंक में प्रकाशित हुआ है। दरअसल आज के व्यक्ति को फुर्सत ही नहीं है अपनी बात दूसरे को सलीके से कहने की। जिस तरह से आज दैनिक जीवन में शार्टकट का सिलसिला चल निकला है ठीक उसी तरह से एक दूसरे को मैसेज भी शार्टकट में दिए जाने लगे हैं। कई बार तो हालात यह हो जाती है कि सामने वाला उसे डीकोड करने में बुरी तरह से झुंझलाने लगा है। हो यह रहा है कि हम लाख होशियार हो पर सोशियल मीडिया के माध्यम से कम्यूनिकेशन का जो तरीका अपनाया जाने लगा है वह सामने वाले के लिए एक नया तनाव का कारण बनता जा रहा है।

बानगी के रुप में देखे तो आने वाले नए साल को लेकर एक मैसेज ड्ब्लूटीएफ इन दिनों बहुत चल रहा है। अब इस मैसेज को डीकोड करने में दो तरह की परेशानी से दो चार होना पड़ रहा है। मैसेजकर्ताओं द्वारा ड्ब्लूटीएफ का उपयोग मानव इतिहास के सबसे डऱावने सालों में से एक 2020 से जोडक़र किया जा रहा है। सीधे सीधे रुप से बात करें तो यह मैसेज आने वाले साल की शुरुआत वेडनेसडे, थर्सडे और फ्राईडे यानी कि ड्ब्लूटीएफ से कर रहे हैं और लोगों को कोरोना त्रासदी की और ध्यान दिलाते हुए कि 2020 में भी साल की शुरुआत इसी तरह से हुई थी ऐसे में यह संदेश दिया जा रहा है कि आने वाला साल 2020 जितनी भले ही नहीं हो पर संकटपूर्ण होगा। यह केवल कपोल कल्पना हो सकती है पर इसका धडल्ले से उपयोग हो रहा है। दूसरी और इस ड्ब्लूटीएफ का ही दूसरा मतलब है कि व्हाट द फक यानी कि क्या मजाक है। यानी इस एक शार्टकट मैसेज के माध्यम से सोशियल मीडिया पर ड्ब्लूटीएफ के माध्यम से डऱावना भी बताया जा रहा है तो दूसरी और ड्ब्लूटीएफ को क्या मजाक है के रुप में पहले अर्थ या पहली व्याख्या को नकारा भी जा रहा है। यह तो एक मिसाल मात्र है।

मजे की बात यह है कि सोषियल मीडिया पर मैसेज के माध्यम से ही बहुत बड़ी संख्या में लागों की शुरुआत होने लगी है। वह जीएम यानी कि गुड़ मोर्निंग से शुरु होते हुए जन्म दिन की शुभकामनाएं तो एचबीडी, डीएलवाई मतलब अपने आप करों, फोमो यानी की कुछ छूट जाने का डऱ, ओटी मतलब ऑपरेशन थियेटर ना होकर विषय से परे या यों कहे कि आउट ऑफ टोपिक, एनपी लिखकर आप कोई प्रोबलम नहीं का संदेश दे देते हो। किसी का फोन आया और आप बात नहीं कर पाये तो टीटीवाईएल मैसेज कर देते हो जिसे डीकोड करने पर ही पता चलता है कि टाक टू यू लेटर यानी बाद में बात करता हूं। कोई जानकारी आपसे चाहता है तो आप शार्टकट के सहारे आईडीके लिख कर इतिश्री कर लेते हैं अब समझने वाला अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाकर डीकोड करेगा कि आप कहना चाहते हैं कि आई डोन्ट नो। यह तो कुछ उदाहरण मात्र है जिनका उपयोग अत्यधिकता में होने लगा है। यह तो टैक्स्ट मैसेज की बात है इमोजी मैसेज की दुनिया तो इससे भी अलग है। मजे की बात यह है कि इनका प्रयोग बहुतायत में होने लगा है।

दरअसल कम्यूनिकेशन भी एक कला है। एक समय था जब बच्चों की कम्यूनिकेशन स्कील विकसित की जाती थी। अब सोशियल मीडिया के इस जमाने में कम्यूनिकेशन स्कील तो दूर की बात शार्टकट के आधार पर ही काम चलाया जा रहा है। मजे की बात यह है कि सामने वाले से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे सबकुछ मालूम है। जबकि मैसेज प्राप्त करने वाले इसी उधेड़बुन में उलझ जाता है कि इसका मतलब क्या है? दूसरा से भी संकोच के कारण पूछ नहीं पाता। मनोचिकित्सक डॉ. नावा सिलटॉन का मानना है कि इस तरह के मैसेज सामने वाले में झुंझलाहट पैदा करने से अधिक कुछ नहीं कर पाता। देखा जाए तो बिना मांगे मानसिक तनाव प्राप्त करना है। देखा जाए तो कोई भी मैसेज करने की सार्थकता इस में होनी चाहिए कि सामने वाला एक नजर में समझ जाएं कि मैसेज में कहना क्या चाहा गया है। मजे की बात यह है कि आज की पीढ़ी पर भी इसका विपरीत परिणाम सामने आने लगा है। शार्टकट से काम चलाने के चक्कर में मैसेज के साथ जो भावनात्मकता होती है वह कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं देती और केवल डीकोड करने में ही समय जाया हो जाता है।

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news