विचार / लेख

ट्रंप टावर इज अमेरिका!
07-Nov-2024 3:53 PM
ट्रंप टावर इज अमेरिका!

-सुदीप ठाकुर

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट कमला हैरिस के मुकाबले रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप की जीत आठ साल पहले हुए राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को मिली जीत से एकदम अलग है। इसके अमेरिका के आंतरिक कारण भी हैं और वैश्विक कारण भी।

वास्तव में 2016 में डोनाल्ड ट्रंप की जीत को अमेरिका के बड़े अखबार डिजास्टर की तरह देख रहे थे। उनका चार साल का कार्यकाल विवादों में रहा। चार साल बाद 2020 में वह चुनाव हार गए। लेकिन इन आठ सालों में अमेरिका में बहुत कुछ बदल चुका है।

नवंबर, 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव जीता था, लेकिन जीत के बावजूद उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा था। इस विरोध को देखने का मुझे भी मौका मिला था। दिसंबर, 2016 में अमेरिका के फॉरेन मीडिया विभाग ने कुछ भारत के हिंदी और अंग्रेजी के चुनिंदा अखबारों और टीवी चैनलों के पत्रकारों को आमंत्रित किया था, जिसमें अमर उजाला के पत्रकार के रूप में मैं भी शामिल था।

चार दिसंबर 2016 को जब हम लोग न्यूयॉर्क पहुंचे थे, तब राष्ट्रपति चुनाव को मुश्किल से एक महीना हुआ था और चूंकि अमेरिकी परंपरा के मुताबिक नए राष्ट्रपति जनवरी में कार्यभार संभालते हैं, तो डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति के रूप में काम शुरू नहीं किया था। भारतीय पत्रकारों के दल को यों तो अमेरिकी के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत आमंत्रित किया गया था, लेकिन हमें न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में पावर सेंटर को क़रीब से देखने का मौका भी मिला। बढ़ती सिहरन के बीच दिसंबर की एक दोपहर हम लोग न्यूयॉर्क स्थित ट्रंप टावर के सामने थे।

हमारी स्वाभाविक उत्सुकता अमेरिका के नए राष्ट्रपति के इस संस्थान को देखने में थी। न्यूयॉर्क स्थित 58 मंजिला ट्रंप टावर एक व्यावसायिक परिसर है, और यह बताने की जरूरत नहीं कि ट्रंप राजनेता से पहले एक कारोबारी हैं।

इस टावर में किसिम किसिम के शो रूम के साथ ही पब भी है, जहां हमारे कुछ साथियों ने बियर की चुस्कियों के बीच नए राष्ट्रपति की मौज ली। हमें यह भी पता चला कि उस वक्त ट्रंप इस परिसर में स्थित एक आवासीय फ्लैट में मौजूद हैं, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी।

लेकिन ट्रंप टावर के बाहर का नजारा एकदम अलग था। अमेरिका के नए राष्ट्रपति के निजी परिसर से मुश्किल से सौ मीटर की दूरी पर डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के विरोध में प्रदर्शन चल रहा था। लोग ट्रंप के खिलाफ नारे लगा रहे थे। अनेक लोग तख्तियां थामे खड़े थे जिनमें लिखा था, टूरिस्ट ट्रंप टावर इज नॉट अमेरिका....।

यह अमेरिकी लोकतंत्र का वह चेहरा था, जिसका जिक्र अक्सर हम सुनते आए हैं। लोकतंत्र का यह चेहरा वाकई आकर्षित करने वाला था, क्योंकि हम अपने यहां प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति तो छोड़ दें, किसी मंत्री के घर के इतने नजदीक इस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद नहीं कर सकते।

इस पर भी हैरत हो सकती है कि सुरक्षा बल इन प्रदर्शनकारियों को वहां से खदेड़ नहीं रहे थे। निस्संदेह यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन था। इसके बावजूद अमेरिकी लोकतंत्र में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है।

दरअसल अमेरिकी लोकतंत्र "अमेरिका फर्स्ट" तक ही सीमित है। वरना तो क्या डेमोक्रेट और क्या रिपब्लिकन राष्ट्रपति...अंततः वह वही करते हैं, जो अमेरिका के हित में सर्वोपरि हो चाहे पूरी दुनिया को उसकी कुछ भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। इन आठ सालों में अमेरिका और संकुचित हुआ है, अमेरिका और ज्यादा अमेरिका हो गया है, इतना कि शायद अब ट्रंप टॉवर के बाहर कोई खड़ा होकर चिल्लाने लगे कि ट्रंप टावर इज अमेरिका!

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