विचार / लेख

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती सरकार
06-Nov-2024 4:25 PM
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती सरकार

-उमंग पोद्दार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि सभी निजी संपत्ति को सरकार नहीं ले सकती है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने 1978 में दिए गए अपने ही फ़ैसले को पलट दिया। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 9 जजों की बेंच ने 7-2 के बहुमत से यह फ़ैसला दिया है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह इस फ़ैसले पर एकमत थे।

वहीं जस्टिस बी।वी नागरत्ना फैसले से आंशिक रूप से सहमत थे जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई।

अपने फ़ैसले में बेंच ने कहा, ‘हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं मान सकते हैं। कुछ ख़ास संपत्तियों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इसका इस्तेमाल आम लोगों के लिए कर सकती है।’

बेंच ने साल 1978 में दिए जस्टिस कृष्ण अय्यर के उस फ़ैसले को खारिज़ कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य सरकारें अधिग्रहण कर सकती हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि पुराना फ़ैसला ख़ास आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। हालांकि राज्य सरकारें उन संसाधनों पर दावा कर सकती हैं, जिन्हें समुदाय, सार्वजनिक भलाई के लिए रख रहा है।

आमतौर पर 9 जजों की बेंच बहुत कम ही देखने को मिलती है। आज तक महज़ 17 मामलों में ही ऐसा देखा गया है।

ऐसी बेंच आमतौर पर संवैधानिक महत्व से जुड़े सवालों पर फ़ैसला लेने के लिए बनाई जाती है। आज़ादी के बाद से ही निजी संपत्ति और उसके अधिग्रहण पर विवाद होता आया है।

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान यह मुद्दा काफ़ी गरमा गया था। जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी संपत्ति का अधिग्रहण कर बाँटना चाहती है।

हालांकि कांग्रेस के घोषणापत्र में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया था।

संविधान का अनुच्छेद 39बी

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के मुताबिक़, सरकार की नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘समाज के संसाधनों’ को इस तरह से बाँटा जाए कि वे सभी के भलाई के काम आएं। इस सिद्धांत के आधार पर ही सरकार को अपनी नीति बनानी चाहिए। जिसका इस्तेमाल करते हुए सरकार ने संपत्ति पर नियंत्रण रखने के लिए कई क़ानून बनाए हैं।

इस मामले से जुड़े सीनियर वकील अंध्यारुजिना ने कहा, ‘इस फै़सले का असर केवल संपत्ति क़ानूनों पर नहीं बल्कि दूसरे क़ानूनों पर भी पड़ेगा।’

इसी मामले से जुड़े दूसरे वकील निपुण सक्सेना ने कहा, ‘संविधान के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए पहले भी कई तरह के क़ानून बनाए गए हैं, जैसे कोयले का राष्ट्रीयकरण, ज़रूरी चीज़ों के लिए क़ीमतों को तय करना। इसलिए इस फ़ैसले का बहुत ज़्यादा असर होगा।’

संपत्ति का अधिकार

आइए इस जटिल मुद्दे को समझने के लिए इतिहास में वापस जाते हैं।

संपत्ति के अधिकार को भारतीय संविधान में एक मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया था।

अनुच्छेद 19(1)(एफ), सभी नागरिकों को संपत्ति को इक_ा करने, उसे रखने और बेचने का अधिकार देता था। लेकिन अनुच्छेद 31 ने सरकार को ‘सार्वजनिक उद्देश्यों’ के लिए संपत्ति पर कब्ज़ा करने का अधिकार दिया।

एक तरफ़, समय के साथ सरकार ने संपत्ति अर्जित करने के उसके अधिकार को बचाने के लिए संविधान में कई संशोधन किए। वहीं दूसरी तरफ, न्यायपालिका ने नागरिकों की संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए कई ऐतिहासिक फ़ैसले सुनाए।

साल 1978 में, जनता पार्टी की सरकार ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर संवैधानिक अधिकार में बदल दिया।

संवैधानिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों की तुलना में कम सुरक्षा मिलती है।

मौजूदा समय में संपत्ति का अधिकार महज़ अनुच्छेद 300 ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है। वहीं कई तरह के क़ानून हैं, जैसे कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, जो अलग-अलग हालात में सरकार को संपत्ति पर कब्जा करने की शक्ति देते हैं।

संपत्ति अधिग्रहण करने का मामला हमेशा विवादों से भरा रहा है। जब 2013 में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने एक नया भूमि अधिग्रहण क़ानून लाना चाहा, तो उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। इसी तरह, बीजेपी की एनडीए सरकार इस क़ानून में बदलाव लाना चाहती थी लेकिन वे ऐसा करने में नाकाम रही।

क्या मामला है?

मौजूदा मामला, महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास अधिनियम (एमएचएडीए) में 1986 में किए गए संशोधन से जुड़ा है।

इस संशोधन में, राज्य सरकार के नियंत्रण वाली मुंबई बिल्डिंग रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड को कुछ पुरानी संपत्तियों को अधिग्रहित करने की अनुमति दी गई थी।

यह अनुमति इसलिए दी गई थी क्योंकि संपत्तियों के मालिक उनकी मरम्मत नहीं कर रहे थे और वे ढहने के कगार पर थी।

इस संशोधन से बोर्ड को उन पुरानी इमारतों की मरम्मत और उनके दोबारा निर्माण करने की शक्ति मिली। जिसे करने के बाद बोर्ड उन संपत्तियों को वहां रहने वाले किरायेदारों की सहकारी समिति को सौंप सकता था।

यह स्कीम उन इमारतों पर लागू होती है, जो कम से कम 60 साल पुरानी हो और सरकार को टैक्स देती हो। 1997 तक, महाराष्ट्र में ऐसी 15,000 से ज़्यादा इमारतें थीं।

मुंबई में 28,000 मकान मालिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था, प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) ने 1991 में बॉम्बे हाई कोर्ट में इस क़ानून को चुनौती दी। लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका को ख़ारिज कर दिया।

जिसके बाद संस्था ने 1992 में सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया।

दोनों पक्षों ने क्या दलील दी?

मकान मालिकों ने दलील दी कि ये निजी संपत्तियां समाज के संसाधन नहीं है और न तो इन संपत्तियों का अधिग्रहण लोगों की भलाई के लिए किया जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दिया जाने वाला मुआवजा भी बहुत कम है।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार और हाउसिंग अथॉरिटी ने कहा कि यह क़दम लोगों के हितों को बचाने के लिए लिया गया था।

वैसे तो यह क़ानून कांग्रेस सरकार लाई थी लेकिन शिव सेना (शिंदे) और बीजेपी सरकार ने भी इसका बचाव किया है।

सरकार ने कहा कि मुंबई में आवास की बहुत समस्या है। मकान मालिक इन इमारतों की मरम्मत नहीं कर रहे थे क्योंकि मालिकों के पास दूसरी जगह जाने का कोई रास्ता नहीं था। इसलिए इस क़ानून को लाना ज़रूरी था।

आखिरकार, इस मामले को साल 2002 में नौ जजों की बेंच के पास भेज दिया गया।

यह फैसला जरूरी क्यों है?

यह फ़ैसला महज़ महाराष्ट्र के इस कानून पर ही नहीं असर डालेगा। बल्कि यह इस बात पर भी प्रभाव डालेगा कि देश में कोई भी सरकारी संस्था कब और किस हद तक निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है।

हालांकि अब भी सरकार भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 जैसे क़ानूनों के तहत संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है।

इंदिरा गांधी द्वारा लाया गया संविधान का अनुच्छेद 31 सी कहता है कि अगर संपत्ति को लोगों की भलाई के लिए अधिग्रहित किया जाता है, तो वह समानता जैसे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता है।

यह अनुच्छेद 1969 में लाया गया था, जब अदालत ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फ़ैसले को रद्द कर दिया था। जिसके बाद 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने अनुच्छेद 31 सी का दायरा बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे ख़ारिज कर दिया। (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news