विचार / लेख
25 वें वर्ष में राज्य आंदोलन की यात्रा
-राहुल कुमार सिंह
लोग सिर्फ छत्तीसगढ़ का सपना ही नहीं देखते रहे, उस पर गंभीर विचार, सक्रिय पहल, गतिविधियां भी संचालित करते रहे। ऐसे लोगों में से कुछेक ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर, माधवराव सप्रे, पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. लोचनप्रसाद पाण्डेय, ठाकुर प्यारेलाल सिंह हैं। और भी जननायक है जिनकी चर्चा और सूची सहज उपलब्ध हो जाती है। किंतु कुछ ऐसे भी नाम हैं जो अल्पज्ञात बल्कि इस संदर्भ में लगभग अनजाने रह गए हैं। इन्हीं में से एक है डॉ. इंद्रजीत सिंह। मुस्लिम इतिहासकारों ने जिस क्षेत्र का आमतौर पर गोंडवाना नाम दे रखा था यही गोंडवाना आज के छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि है। गोंडवाना की सांस्कृतिक सामाजिक पहचान को रेखांकित करने के उद्देश्य से डॉ. इंद्रजीत सिंह ने लगभग 90 साल पहले पूरे गोंडवाना का व्यापक भ्रमण-सर्वेक्षण कर अंचल के भौगोलिक परिवेश और आदिम संस्कृति की विशिष्ट महानता को समझने के लिए गहन शोध किया और मध्य-भारत में सामाजिक मानवशास्त्र के क्षेत्र में किसी स्थानीय द्वारा किया गया यह पहला शोध सन् 1944 में 'द गोंडवाना एंड द गोंड्स' शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ जिसकी पृष्ठभूमि पर नागपुर विधानसभा में ठाकुर रामकृष्णसिंह व अन्य विधायकों ने गोंडवाना राज्य के गठन की गुहार की थी।
21 नवंबर 1955 को ठा. रामकृष्ण सिंह ने विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा था-हमारा छत्तीसगढ़ जो देश का बहुत पिछड़ा हुआ भाग है, इस बड़े प्रदेश (सीपी-बरार) में कभी नहीं पनप सकता। बृजलाल वर्मा, लाल श्याम शाह और वी. वाई. तामस्कर ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया। लाल श्याम शाह ने कहा-जब कमीशन यहां आया था तब आदिवासी विभाग के मंत्री व उपमंत्री ने गोंडवाना (छत्तीसगढ़) राज्य बनाने मेमोरेंडम दिया था, लेकिन उस पर क्यों ध्यान नहीं दिया गया? यह रहस्य की बात है। तामस्कर ने कहा कि गोंडवाना का मेमोरेंडम भी म. प्र. के मेमोरेंडम के साथ ही प्रस्तुत हुआ था। मगर सदन में प्रस्ताव को समर्थन नहीं मिला। यह प्रस्ताव राज्य पुनर्गठन आयोग के प्रस्तावों पर चर्चा के दौरान रखा गया था। चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने कहा-सिवाय प्रस्ताव महादेय और एकाध माननीय सदस्यों को छोड़ इस संशोधन की चर्चा किसी दूसरे ने भी नहीं की। इसका अर्थ यही है कि इसको समर्थन देने के लिए कोई तैयार नहीं है। इसलिए में समझता हूं कि इस पर कुछ ज्यादा कहने की आवश्यकता नहीं है।
अंतत: 1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश का गठन हो गया। छत्तीसगढ़ को भी उसमें मिला दिया गया। इन क्षेत्रों में न भाषाई समानता थी और न ही सांस्कृतिक साम्य था। म. प्र. के गठन के संदर्भ में राजेंद्र माथुर की टिप्पणी गौर करने योग्य है-'म.प्र. के पास एक मंत्रिमंडल है, एक सचिवालय है, एक प्रशासकीय ढांचा है और राज्य के लिए जरूरी सारा तामझाम है। लेकिन उसके पास एक राज्य की आत्मा नहीं है।'
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के इतिहास और पृष्ठभूमि की तलाश में जितनी सामग्री मेरे देखने में आई उनमें लगभग सभी संस्मरण, श्रेय और दावों के अधिक करीब हैं। स्रोतों-दस्तावेजों के आधार पर तैयार इतिहास की अपनी कमियां हो सकती हैं, लेकिन जड़ और जमीन के लिए यह आवश्यक है। इस दृष्टि से अग्रदूत समाचार पत्र के 30 नवम्बर 1955 अंक में अंतिम पृष्ठ-8 का मसौदा, जिसमें गोंडवाना प्रान्त की मांग क्यों? शीर्षक के साथ परिचय है कि एस.आर.सी. की रिपोर्ट पर हमारी विधान सभा ने पिछले सप्ताह विचार-विमर्श किया। कुछ सदस्य एक गोंडवाना प्रान्त की मांग कर रहे हैं। ठाकुर रामकृष्ण सिंह एम.एल.ए. ने इस मांग के समर्थन में विधान सभा में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे पठनीय है। उक्त का अंश इस प्रकार है-
अध्यक्ष महोदय, इस सदन में आज चार-पांच रोज से जो भाषावार प्रान्त के हिमायती हैं उन्होंने भाषण दिए। उससे यह स्पष्ट हो गया कि एक ही भाषा के बोलने वाले एक ही भाषा के बड़े प्रान्त में नहीं रहना चाहते। आयोग ने या हाई कमान्ड ने जो इस बात की कोशिश की कि एक भाषा के लोग एक ही प्रान्त में रहें तो इसका भी विरोध इसी सदन में आज 5 दिनों से हम देख रहे हैं। मराठी भाषा बोलने वाले लोग ही संयुक्त महाराष्ट्र में रहना नहीं चाहते। वे अपना अलग प्रान्त बनाना चाहते हैं। उनके भाषण में एक दूसरे के प्रति कटु भाव थे। इससे मुझे भास होता है कि जब एक भाषा के बोलने वाले आपस में एक दूसरे के प्रति इतनी कटु भावना रख सकते हैं तो वे दूसरी भाषा बोलने वाले के प्रति कैसी भावना रखेंगे। इन सब कारणों के अध्यक्ष महोदय, मैं एक भाषा के एक प्रान्त बनाने की योजना का विरोध करता हूं।
दूसरी बात जो श्री जोहन ने हमारे मुख्यमंत्री जी के प्रस्ताव में संशोधन रखा है उसका मैं समर्थन करता हूं। इस संबंध में अभी पहले हमारे एक उपमंत्री जी ने बहुत सुन्दर ढंग से ऐतिहासिक भूमिका दी है और वह इतनी यथेष्ठ है कि उसको मैं दोहराना नहीं चाहता। हम लोग जो गोंडवाना के समर्थक हैं वे यह चाहते हैं कि हमारा एक ऐसा कम्पोजिट प्रदेश बने जिनमें वे मराठी भाषी जो आज 95 वर्ष से हमारे साथ रहते आये हैं वे भी साथ रहें और अभी तक जिस प्रकार प्रेमपूर्वक रहते आये हैं उसी प्रकार रहें।
अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्तावित मध्यप्रदेश का इसलिये विरोध करता हूं कि वह इतना अन-बोल्डी है कि उसमें एडमिनिस्ट्रटिव कनविनिअन्स बिलकुल नहीं रहेगा। अध्यक्ष महोदय, मध्यभारत, भोपाल और विन्ध्य-प्रदेश का महाकोशल प्रदेश से कभी भी शासकीय संबंध नहीं रहा है। पर्वत, जंगल तथा अन्य कठिनाइयों के कारण आपस में आवागमन के लिए जो रेल और सड़क बनाने की सुविधा होनी चाहिए या इनको एक स्टेट के एडमिनिस्ट्रेशन में लाने के लिए जो सुविधा होनी चाहिये वह सुविधा बिलकुल नहीं है। आपने, अध्यक्ष महोदय, इस बात पर भी गौर किया होगा कि हमारे बस्तर से मध्यभारत की कितनी दूरी है। 800 से एक हजार मील की दूरी होती है। ऐसे प्रदेश में बस्तर जैसे पिछड़े प्रदेश में रहने वाला व्यक्ति कैसे सुखी रह सकता है यह सोचने की बात है।
दूसरी बात यह है कि हमारा छत्तीसगढ़, जो कि देश को बहुत ही पिछड़ा हुआ भाग है, इस बड़े प्रदेश में कभी पनप नहीं सकता। इसकी जो तरक्की होनी चाहिये इसकी तरफ से जो ध्यान देना चाहिये वह कभी भी प्रस्तावित मध्यप्रदेश के शासन में नहीं हो सकता। अध्यक्ष महोदय, आपने देखा होगा कि राजधानी के प्रश्न पर भोपाल, सागर, इटारसी और सबसे मुख्य जबलपुर की चर्चा होती रही पर किसी ने भी यह गौर नहीं किया कि हमारे बस्तर से या छत्तीसगढ़ से ये स्थान कितनी दूरी पर हैं। मैंने इस संबंध में इतने भाषण सुने पर किसी ने भी छत्तीसगढ़ का जिक्र नहीं किया। यह नहीं सोचा गया कि इन स्थानों से छत्तीसगढ़ कितनी दूर हो जावेगा।
हालांकि अध्यक्ष महोदय, मैंने अभी प्रस्तावित मध्यप्रदेश का विरोध किया है मगर जो होना है वह तो होकर रहेगा इसलिये इस सिलसिले में मैं यहां एक बात रिकार्ड करा देना चाहता हूं कि चाहे राजधानी भोपाल हो या सागर हो या जबलपुर हो पर उसमें हमारे छत्तीसगढ़ के हित का ध्यान रखा जाना चाहिये और वह यह है कि इसमें रायपुर शहर को उप-राजधानी बनाया जावे। रायपुर शहर छत्तीसगढ़ का हृदय है और छत्तीसगढ़ के सभी स्थानों से बराबर दूरी पर है। आज के हमारे मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर थी फिर गवर्नमेंट बराबर जबलपुर को उप-राजधानी मानती चली आ रही है इसलिये हम चाहते हैं कि सिर्फ सिर और चेहरे को ही न देखा जावे। इन्दौर, भोपाल और जबलपुर तो बड़े बड़े शहर हैं वे आकर्षण के केन्द्र हो सकते हैं। पर केवल चेहरे को ही न देखा जावे। हम दूर में जो गरीब लोग इस छत्तीसगढ़ में रहेंगे उनके ऊपर भी यथोचित ध्यान दिया जाना चाहिये इसलिए मेरा निवेदन है कि नवीन मध्यप्रदेश में रायपुर को उप-राजधानी बनाया जावे। यहां जो गरीब लोग रहे हैं उनमें पोलिटिकल जाग्रति नहीं है इसका प्रमाण है कि 82 सदस्यों में से किसी ने भी राजधानी के प्रश्न पर यह नहीं कहा कि रायपुर को उप-राजधानी बनाया जावे। इससे पता चलता है कि ये लोग कितने बैकवर्ड हैं। इसलिये मैं चाहता हूं कि प्रस्तावित मध्यप्रदेश का यदि निर्माण होता है तो रायपुर को उप-राजधानी बनाने के अलावा हाईकोर्ट बेंच, रेवन्यू बोर्ड बेंच और दीगर फेसिलिटीज जो होती हैं वे दी जावें। अध्यक्ष महोदय, मैं इन शब्दों के साथ गोंडवाना प्रान्त की मांग का समर्थन करता हूं।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर रामकृष्ण सिंह पहले विधायक थे जिन्होंने विधानसभा में छत्तीसगढ़ राज्य की मांग उठाई थी। इससे पहले उन्होंने रायपुर के गिरधर भवन में 30 अक्टूबर 1955 को एक बैठक बुलाई थी, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य की मांग सदन में उठाने के विषय पर विचार विमर्श किया गया था। बैठक में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क्रांतिकुमार भारतीय, दशरथ लाल चौबे और कमलनारायण शर्मा ने जोरदार शब्दों में छत्तीसगढ़ राज्य की आवश्यकता प्रतिपादित की थी।
(पूर्व संयुक्त संचालक, संस्कृति एवं पुरातत्व छत्तीसगढ़)