सामान्य ज्ञान
कन्हेरी गुफाएं महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट पर संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के परिसर में स्थित हैं। कन्हेरी की गुफाओं में एक पहाड़ को तलाशकर लगभग 109 गुफाओं का निर्माण किया गया है। यह बौद्ध धर्म की शिक्षा हीनयान और महायान का एक बड़े केन्द्र रहा है।
कन्हेरी के चैत्यगृह की बनावट कार्ले के चैत्यगृह जैसी ही है। कन्हेरी के चैत्यगृह के प्रवेश द्वार के सामने एक आंगन है, जो अन्य किसी चैत्यगृह में नहीं मिलता है। यहां से यज्ञश्री शातकर्णी का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसमें शकों और सातवाहनों के बीच वैवाहिक संबंधों का उल्लेख है।
कन्हेरी शब्द कृष्णागिरी यानी काला पर्वत से निकला है। इनको बड़े बड़े बेसाल्ट की चट्टानों से तराशा गया है। कन्हेरी का यह गिरिमंदिर बंबई से लगभग 25 मील दूर सालसेट द्वीप पर स्थित पर्वत की चट्टान काटकर बना बौद्धों का चैत्य है। हीनयान संप्रदाय का यह चैत्यमंदिर आंध्रसत्ता के प्राय: अंतिम युगों में दूसरी शती ई. के अंत में निर्मित हुआ था। इसकी बाहरी दीवारों पर जो बुद्ध की मूर्तियां बनी हैं, उनसे स्पष्ट है कि इसपर महायान संप्रदाय का भी बाद में प्रभाव पड़ा और हीनयान उपासना के कुछ काल बाद बौद्ध भिक्षुओं का संबंध इससे टूट गया था जो गुप्त काल आते आते फिर जुड़ गया, यद्यपि यह नया संबंध महायान उपासना को अपने साथ लिए आया, जो बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों से प्रभावित है। इन मूर्तियों में बुद्ध की एक मूर्ति 25 फुट ऊंची है।
गुफा में स्तंभों की संख्या 34 है और समूची गुफा की लंबाई 86 फुट, चौड़ाई 40 फुट और ऊंचाई 50 फुट है। स्तंभों के ऊपर की नर-नारी-मूर्तियों को कुछ लोगों ने निर्माता दंपति होने का भी अनुमान किया है जो संभवत: अनुमान मात्र ही है। कोई प्रमाण नहीं जिससे इनको इस चैत्य का निर्माता माना जाए। कन्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरीमंदिरों में की जाती है।