पालक अमरन्थेसी कुल का फूलने वाला पादप है, जिसकी पत्तियां एवं तने शाक के रूप में खाए जाते हैं। पालक में खनिज लवण तथा विटामिन पर्याप्त रहते हैं, किंतु ऑक्ज़ैलिक अम्ल की उपस्थिति के कारण कैल्शियम उपलब्ध नहीं होता। यह ईरान तथा उसके आस पास के क्षेत्र का देशज है। ईसा के पूर्व के अभिलेख चीन में हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि पालक चीन में नेपाल से गया था। 12वीं शताब्दी में यह अफ्रीका होता हुआ यूरोप पहुंचा।
100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी ऊर्जा ,प्रोटीन 2 .0 प्रतिशत ,कार्बोहाइड्रेट 2 .9 प्रतिशत ,नमी 92 प्रतिशतवसा 0 .7 प्रतिशत, रेशा 0 .6 प्रतिशत ,खनिज लवन 0 .7 प्रतिशत और रेशा 0 .6 प्रतिशत होता है। पालक में खनिज लवन जैसे कैल्शियम ,लौह, तथा विटामिन ए ,बी ,सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। इसी गुण के कारण इसे लाइफ प्रोटेक्टिव फ़ूड कहा जाता है।
पालक में विटामिन ए,बी,सी,लोहा और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। कच्चा पालक गुणकारी होता है। पूरे पाचन-तंत्र की प्रणाली को ठीक करता है। खांसी या फेफड़ों में सूजन हो तो पालक के रस के कुल्ले करने से लाभ होता है। पालक का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। ताजे पालक का रस रोज पीने से आपकी मैमोरी बढ़ सकती है। इसमें आयोडीन होने की वजह से यह दिमागी थकान से भी छुटकारा दिलाता है।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि बांहों को गठीला और मांसपेशियों को सुदृढ़ करने के इच्छुक लोगों को पालक नियमित रूप से खाना चाहिए। शोधकर्ताओं का कहना है कि पालक में मौजूद नाइट्रेट के कारण मांसपेशियां काफी मजबूत होती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अनुसंधानकर्ता पालक की इस विशेषता के अवगत होने के बाद इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि इससे कमजोर मांसपेशियों की समस्या से पीडि़त लोगों की कैसे सहायता की जा सकती है। अभी तक इसका परिक्षण चूहों पर सफल रहा है और शीघ्र ही मनुष्यों पर इसका अध्ययन किया जाएगा।
भारत में पालक की बहुत सी प्रजातियां उगाई हैं परन्तु अधिक पोषक तत्वों एवं मुलायम पत्तियों वाली कटाई के बाद अच्छी और जल्दी पुर्नवृद्धि वाली एवं देर से कल्ले फूटने वाली प्रजाति ही अच्छी मानी जाती है। पालक की कुछ मुख्य प्रजातियां हैं- पालक आल ग्रीन ,पालक पूसा ज्योति, पालक हरित, पालक भारती , जोवनेर ग्रीन ।
मैदानी क्षेत्रों में पालक की बुआई वर्ष में तीन बार की जा सकती है। 1 बसन्त ऋतु के शुरू में ,2 वर्षा के शुरू में , 3 मुख्य फ़सल सितम्बर व नवम्बर के मध्य में बीज द्वारा तैयार खेत में पंक्तियों में बुआई करना उचित रहता है। क्योंकि पंक्तियों में बुआई करने से खरपतवार नियंत्रण , अन्त:कर्षण क्रियाएं एवं कटाई आसानी से की जा सकती है। बीज को 20 सें.मी. की दूरी पर बनी पंक्तियों में 3-4 सें. मी. की गहराई पर बोना चाहिए। यह ध्यान रहें कि बीज बोने से पहले खेत में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए। एक हेक्टेअर क्षेत्र. की बुआई के लिए 25-30 कि. ग्राम. बीज काफी रहता है।