संयृुक्त बिहार का चारा घोटाला को पशुपालन घोटाला ही कहा जाना चाहिए क्योंकि मामला सिफऱ् चारे का नहीं है। असल में, यह सारा घपला बिहार सरकार के खज़़ाने से ग़लत ढंग से पैसे निकालने का है। कई वर्षों में करोड़ों की रक़म पशुपालन विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों ने राजनीतिक मिली-भगत के साथ निकाली है।
घपला रोशनी में धीरे-धीरे आया और जांच के बाद पता चला कि ये सिलसिला वर्षों से चल रहा था। शुरूआत छोटे-मोटे मामलों से हुई लेकिन बात बढ़ते-बढ़ते तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार तक जा पहुंची। मामले के जाल में फंसे लालू यादव को इस सिलसिले में जेल जाना पड़ा, उनके खिलाफ सीबीआई और आयकर की जांच हुई, छापे पड़े और अब भी वे कई मुक़दमों का सामना कर रहे हैं। आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सीबीआई ने राबड़ी देवी को भी अभियुक्त बनाया है। संयुक्त बिहार का चारा घोटाला एक ऐसा मामला है, जिसमें छह राजनीतिज्ञ, चार आई.ए.एस. अधिकारी, एक आई. आर.एस. अधिकारी, आठ पशुपालन और एक ट्रेजरी अफसर और 25 सप्लायरों ने न्यायिक प्रक्रिया का सामना किया है। सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू यादव समेत 45 लोगों को दोषी ठहराया है। प्राथमिकी दर्ज होने के करीब 17 साल बाद इस मामले में फैसला सुनाया गया है। इस मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र सहित कुल 56 आरोपी बनाए गए थे। संयुक्त बिहार में पशुपालन विभाग में हुए करोड़ों रुपये के चारा घोटाला मामले में आरोपी लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
इस मामले की सुनवाई के दौरान सात आरोपियों की मौत हो गई, दो वायदा माफ गवाह बन गए और एक ने आरोप स्वीकार कर लिया। वहीं एक को आरोप मुक्त करार दिया गया। सभी पर झारखंड के चाइबासा जिले के कोषागार से 37.70 करोड़ रुपये की फर्जी निकासी करने का आरोप है। इस घोटाले में आरोपी बनने के बाद लालू प्रसाद यादव को 1997 में मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा था। यह घोटाला 1996 में सामने आया था। घोटाले से संबंधित 61 में से 54 मामले वर्ष 2000 में पृथक राज्य के रूप में गठित होने के बाद झारखंड स्थानांतरित कर दिए गए। सीबीआई की विभिन्न अदालतें 43 मामलों में अपना फैसला सुना चुकी हैं। लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र पांच मामलों में आरोपी हैं।
चारा घोटाले के आरोपी राजनेताओं में लालू प्रसाद, डॉ. जगन्नाथ मिश्र, जगदीश शर्मा, आरके राणा, धु्रव भगत, विद्या सागर निषाद, भोला राम तूफानी ( सुनवाई के दौरान मौत), चंद्र वर्मा ( सुनवाई के दौरान मौत) है।
चाइबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने पहली बार वर्ष 1996 में इस घोटाले का रहस्योद्घाटन किया था। लालू यादव पर आरोप था कि उन्होंने मुख्यमंत्री व वित्तमंत्री के पद पर रहते हुए अवैध निकासी पर पाबंदी नहीं लगाई। बतौर सीएम घोटाले में शामिल अधिकारी श्याम बिहारी को सेवा विस्तार का लाभ दिया। पशुपालन विभाग के एक अधिकारी का जब तबादला हुआ तो उस पर रोक लगा दी। विपक्ष द्वारा घोटाले की बात उठाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की और लोकसेवक रहते हुए नियमों की अनदेखी की। इस वजह से उनकी जानकारी में सरकारी खजाने से लूट का सिलसिला चलता रहा।