साहित्य/मीडिया
'कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग...' पढ़ें चुनिंदा शायरों के बेहतरीन शेर
05-Nov-2021 7:41 PM
आपसी रिश्तों की ख़ुशबू को कोई नाम न दोइस तक़द्दुस को न काग़ज़ पर उतारा जाए- महेंद्र प्रताप चाँद
रिश्तों का बोझ ढोना दिल दिल में कुढ़ते रहनाहम एक दूसरे पर एहसान हो गए हैं- मुसव्विर सब्ज़वारी
रिश्तों का ए'तिबार वफ़ाओं का इंतिज़ारहम भी चराग़ ले के हवाओं में आए हैं- निदा फ़ाज़ली
वक़्त ख़ामोश है टूटे हुए रिश्तों की तरहवो भला कैसे मिरे दिल की ख़बर पाएगा- इन्दिरा वर्मा
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताबपढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने-मेराज फ़ैज़ाबादी
कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोगटूट जाते हैं यही फ़ैसला करते हुए लोग- तारिक़ क़मर