विचार / लेख

कोई दलित नेता मुख्यमंत्री बनता है तो...
21-Sep-2021 1:17 PM
कोई दलित नेता मुख्यमंत्री बनता है तो...

-श्याम मीरा सिंह

एक दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाना और राष्ट्रपति बनाने में अंतर है। राष्ट्रपति को हमारे संविधान के अनुसार ‘रबर स्टाम्प’ कहते हैं, जबकि मुख्यमंत्री को विधानसभा का ‘असली’ नेता कहते हैं।

यूपी के मुख्यमंत्री के आगे देश के राष्ट्रपति भी सर झुकाकर सलाम करते हैं। इसलिए नहीं कि यूपी का मुख्यमंत्री साधुभेष बनाया हुआ है। बल्कि इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री की पॉवर में और राष्ट्रपति की असल पॉवर में अंतर है, यूपी का मुख्यमंत्री बहुत कुछ पॉवर एक्सरसाईज करता है।

हालाँकि बहुत से सीएम भी रबर स्टांप रहे हैं, मगर ये सीएम के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। अगर उनमें दम है तो राष्ट्रीय नेतृत्व में हस्तक्षेप रख सकते हैं। उतना स्पेस मिलने की उन्हें गुंजाइश मिल सकती है। लेकिन अगर बात राष्ट्रपति की करें तो अतीत में ऐसा कोई राष्ट्रपति नहीं रहा जिसने राष्ट्रीय नेतृत्व में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप किया हो। क्योंकि उसे संवैधानिक ताकत ही नहीं हैं। अधिकतर राष्ट्रपतियों का काम राष्ट्रपति बनने के बाद प्रिंटर से प्रिंट निकालना भर रह गया।

किसी भी पार्टी की मदद से कोई दलित नेता मुख्यमंत्री बनता है तो उसके साथ ‘प्रतिनिधित्व और विविधता’ का मूल्य भी आता है। ये अंत नहीं है मगर एक शुरुआत जरूर है। ये उस बात की शुरुआत के लिए अच्छा है जिसके बाद सीएम ही दलित नहीं होगा बल्कि वह अपनी पार्टी का शीर्ष नेता भी होगा। यानी जड़ और फल दोनों एक जगह से होंगे। अभी फल और जड़ में एक गहरा अंतर है। पैंतीस प्रतिशत दलित जनसंख्या वाला पंजाब आज पहली बार अपना सीएम देख रहा है। इसलिए जो भी है, अच्छी शुरुआत है।

दलित सीएम को लेकर इस देश का अनुभव ये रहा है कि वे अक्सर सांप्रदायिकता को बढऩे नहीं देते। अपनी क्षमता में अस्पताल और स्कूलों पर ध्यान देते हैं। सबसे अधिक ध्यान क़ानून व्यवस्था पर देते हैं क्योंकि उन्हें पता है थानों और चौकियों का सबसे अधिक शिकार उनका ही समाज रहता है। अब तक सवर्णों का राज देखने वाले इस बात को नहीं समझेंगे।

उन्हें मायावतीजी की सिर्फ मूर्तियाँ दिखेंगी, ‘सौ सैंया’ अस्पताल नहीं दिखेंगे। थानों में जिस तरह से सख्ती की गई वो नहीं दिखेगी, नकल रोकने का काम किया गया वो नहीं दिखेगा। वे हेलिकॉप्टर में उड़ते शाह-मोदी को देख सकते हैं मगर नोटों की माला पहनी मायावती नहीं। इसलिए भी जरूरी है कि इस मानसिकता और विचार पर चोट हो।

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