सामान्य ज्ञान
हमारे शरीर में धडक़ने वाला मु_ी भर का दिल हर मिनट करीब 70 बार धक धक करता है और दिन भर में कम से कम 10 हजार लीटर खून पंप कर पूरे शरीर में पहुंचाता है। वह भी सारा जीवन।
हमारा दिल दो पंपों से बना है। दाहिना हिस्सा फेफड़े तक खून पहुंचाता है, जहां उसे ऑक्सीजन मिलता है। बायां हिस्सा उतना ही खून शरीर की धमनियों में डालता है। हर हिस्से का एक एट्रियम होता है और एक चैंबर। रक्त प्रवाह एक ही ओर होता है। दाहिने, बाएं आलिंद, निलय और धमनियों के बीच बना वॉल्व उसे वापस आने से रोकता है। दिल दरअसल मांसपेशी मात्र है, लेकिन एक विशेष तरह की। वह पैर और बांह की मांशपेशियों जैसा होता है। उसी तरह काम करता है लेकिन एक दूसरे से जुड़ा होता है और थकता नहीं। दिल की धडक़न को आप रोक नहीं सकते, क्योंकि वह स्नायु से नहीं चलता। विशेष मांसपेशियां नियमित रूप से करंट पैदा करती है जिसके कारण दिल फैलता और सिकुड़ता है। ऐसा न होने पर कृत्रिम दिल लगाना पड़ता है।
दिल की धडक़न सामान्य न हो तो उसे आराम नहीं मिलता। तनाव में होने पर डिफीब्रिलेटर की मदद से उसकी उत्तेजना तोड़ी जाती है ताकि वह फिर से शरीर में खून पंप कर सके। मरीज का दिल बहुत धीरे धडक़ता हो तो कृत्रिम पेसमेकर से मदद मिलती है। 1958 में पहली बार किसी इंसान के शरीर में पेसमेकर लगाया गया। वह करंट पैदा करता है और दिल की मांसपेशियों तक पहुंचाता है।
ओपन हर्ट सर्जरी के लिए दिल को रोक देना पड़ता है। 50 के दशक में डॉक्टरों ने लाइफ सपोर्ट सिस्टम का आविष्कार किया जो ऑपरेशन के दौरान दिल और फेफड़े का काम संभालता है। आधुनिक चिकित्सा में सीना खोले बिना दिल की जांच या ऑपरेशन संभव है। डॉक्टर धमनी से होकर कैथेटर दिल तक ले जाते हैं और कंट्रास्ट एजेंट डालकर दिल का टेस्ट करते हैं। दिल का वॉल्व खराब हो जाए तो नया लगाना पड़ता है। इसके लिए सूअर का या धातु का कृत्रिम वॉल्व उपलब्ध है। अब फोल्डिंग वॉल्व बन गये हैं जिन्हें कैथेटर के जरिए लगाया जाता है।ा
कोरोनरी नसें दिल की मांसपेशियों तक रक्त यानी खाना और ऑक्सीजन पहुंचाती है. कोई नस बंद हो जाए तो मांसपेशियां मर जाती हैं। बाइपास सर्जरी से रक्त प्रवाह को ठीक रखा जाता है। यदि दिल में खून पहुंचाने वाली नसें बंद हों तो डॉक्टर कैथेटर के जरिए वहां स्टेंट डाल कर बंद हिस्से को खोल देते हैं। धातु का यह खोल धमनी में सामान्य रक्त प्रवाह को संभव बनाता शोधकर्ता प्लास्टिक का दिल बना रहे हैं जिसे शरीर में लगाया जा सके। इसका बछड़े पर सफल टेस्ट हुआ है, लेकिन शरीर के जादुई अंग को प्लास्टिक से बदलना इतना आसान नहीं।
पहला हार्ट ट्रांसप्लांटेशन 1967 में हुआ। अब तो यह आम बात हो गई है। हर साल दुनिया भर में हृदय दान करने वालों से मिले हजारों दिलों को नया शरीर मिलता है। नई जिंदगी, दान में मिलने वाले दिल बहुत कम हैं। अगर दिल ठीक से काम नहीं कर रहा है तो मदद के लिए कृत्रिम दिल भी हैं। अपना दिल शरीर में रहता है और उसकी मदद एक पंप से होती है।
हूंण जाति
हंूण मध्य एशिया की एक खानाबदोश जाति था। हूंणों ने पांचवीं शताब्दी के मध्य भारत पर पहला आक्रमण किया। 455 ई. में स्कंदगुप्त ने उन्हें आगे बढऩे से रोका, लेकिन बाद के आक्रमण में 500 ई. के लगभग हूंणों का नेता तोरमाण मालवा का स्वतंत्र शासक बनने में सफल हो गया। उसके पुत्र ने पंजाब में स्यालकोट को अपनी राजधानी बनकर चारों ओर आतंक मचाया। अंत में मालवा के राजा यशोधर्मा और बालादित्य ने मिलकर 528 ई. में उसे पराजित किया। पराजय के बाद भी हूंण भारत छोडक़र वापस मध्य एशिया नहीं गए। वे भारत में ही बस गए और उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया।