आजकल
जब कभी मेरा साप्ताहिक स्तंभ ‘आजकल’ लिखना होता है, तो लिखने का एक नशा सा छाने लगता है, और एक उत्साह बने रहता है कि लिखा जाए, हर हफ्ते लिखा जाए। लेकिन जब गाड़ी पटरी से उतरती है तो ऐसी बुरी तरह उतरती है कि कई-कई महीनों तक कॉलम लिखना नहीं हो पाता। मेरी एक दिक्कत यह भी हो गई है कि सोशल मीडिया पर रात-दिन इतना अधिक लिखना हो जाता है कि वहां पर खासी गुबार निकलने का जरिया रहता है, और उसके बाद लिखने के मुद्दे भी कुछ कम हो जाते हैं। अखबार का संपादक होने के नाते कोई और टोकने वाले नहीं रह जाते कि कॉलम लिखना नहीं हो रहा है। इसलिए पिछले कुछ बरसों में यह कॉलम लिखना नहीं के बराबर हो पाया। अब बोलकर टाइप करने की एक नई तकनीक हाथ लगी है, जिससे तकरीबन पूरा का पूरा बिना गलती के टाइप किया जा सकता है, और फिर कुछ मिनटों में बकाया सुधार हो सकता है इसलिए एक बार फिर यह कोशिश कर रहा हूं कि हफ्ते का यह कॉलम जारी रह सके। एक वक्त तो यह था कि इस कॉलम पर छपी हुई किताब, वही मेरी पहचान बनी हुई थी और कई नए लोगों से मुलाकात होने पर कभी-कभी यह भी सुनने मिलता था कि अरे आपकी वह किताब हमारी देखी हुई है, पढ़ी हुई है, या संभाल कर रखी हुई है। लिखने के लिए कोई ना कोई ऐसा मुद्दा भी जरूरी होता है जो कि लिखने पर बेबस करे, और आज बाकी वजहों के अलावा एक वजह यह भी है कि दिल्ली ने ऐसा एक मुद्दा पेश किया है।
दिल्ली में करीब 2 दर्जन मजदूरों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है जिन पर यह तोहमत है कि उन्होंने मोदी की आलोचना के पोस्टर दीवारों पर चिपकाए और कहीं-कहीं खंभों पर उनको टांगा भी है। अब यह पोस्टर क्या है इसे देखें तो इनमें मोदी से सवाल किया गया है मोदीजी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दिया? इस एक सवाल को दीवारों पर टांगने और चिपकाने के जुर्म में 2 दर्जन से अधिक गरीब मजदूर गिरफ्तार किए गए हैं, जिनमें से कुछ का काम है पोस्टर चिपकाने का, और कुछ खाली बैठे हुए थे और जिंदा रहने की बेबसी ने उन्हें मजदूरी करने के लिए यह काम दिलाया था और इस काम में कोई जुर्म नहीं दिख रहा था इसलिए उन्होंने यह किया। गनीमत यही है कि इन दो दर्जन लोगों में से 2-3 को छोडक़र बाकी सारे के सारे हिंदू नाम दिख रहे हैं वरना ये पोस्टर मुल्क के साथ गद्दारी भी करार दिए जाते। अब अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि इन पोस्टरों को छपवाया किसने है, कुछ लोगों का अंदाज है कि आम आदमी पार्टी से जुड़े लोगों ने इसे छपवाया और टंगवाया, लेकिन अभी तक कोई सुबूत पुलिस के हाथ नहीं लगे हैं इसलिए महज मजदूर गिरफ्तार हो रहे हैं। यह एक अलग बात है कि जिस रात ये पोस्टर चिपके, उसी शाम या रात आम आदमी पार्टी के ट्विटर अकाउंट पर यही सवाल मोदी से पूछा भी गया।
अब सवाल यह है कि यह सवाल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा गया है, और यह सरकार का किया गया खुद का खुलासा है कि उसने किस तरह कोरोना के करोड़ों टीके उस वक्त विदेश भेजे जिस वक्त इस देश में टीके लगना शुरू ही हुआ था। अब यह वैक्सीन डिप्लोमेसी अच्छी थी या नहीं। यह एक अलग बहस का मुद्दा है, यह हकीकत अपनी जगह साफ है कि जब देश में कुछ करोड़ वैक्सीन नहीं लगी थीं, तब भी कुछ करोड़ वैक्सीन देश के बाहर भी दूसरे देशों को भेजी गई थी। देश के बहुत से लोगों का यह मानना है कि दुनिया के किसी समझदार देश ने अपने देश के हर नागरिक के लिए वैक्सीन पूरी तरह जुटा लेने के पहले किसी दूसरे देश की मदद नहीं की है और हर किसी की जिम्मेदारी पहले अपने लोगों को बचाना होना चाहिए। हालांकि ऐसी नौबत में जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री रहते तो उनका क्या सोचना रहता इसे लेकर मेरी अपनी एक सोच है। लेकिन मैं अपनी सोच को इन दोनों तबकों में से किसी एक को बचाने के लिए या घेरने के लिए क्यों इस्तेमाल करूं। आज तो मोदी और उनकी वैक्सीन डिप्लोमेसी को लेकर सवाल करने वाले लोग आमने-सामने हैं, और क्योंकि मोदी के हाथों पुलिस है इसलिए ऐसे सवाल करने वाले लोगों के पोस्टर चिपकाने वाले मजदूर भी गिरफ्तार हो रहे हैं।
यह भी देखना चाहिए कि दिल्ली पुलिस ने कई थानों में जुर्म कायम करके पोस्टर चिपकाने वाले मजदूरों को जिस तरह गिरफ्तार किया है और उन पर जो दफा लगाई है वह कानून क्या है। आईपीसी की धारा 188 कहती है कि लोक सेवक के आदेश की अवमानना करने पर लोगों पर कार्रवाई की जा सकती है। एक दूसरी धारा जो इन मजदूरों पर लगाई गई है वह धारा 269 है जिसके तहत महामारी के दौर में लापरवाही बरतने और संक्रमण फैलाने की आशंका पर कार्रवाई करने का प्रावधान है। अब सभ्य भाषा में लिखे गए और छापे गए इन पोस्टरों में ऐसी कोई बात नहीं लिखी गई है जो अफवाह हो जो, अभद्र हो, जो किसी का अपमान हो, या जिसे पूछना लोकतंत्र के दायरे के बाहर की बात हो।
इस देश की जनता क्या अपने प्रधानमंत्री से यह पूछने की हकदार भी नहीं रह गई है कि इस देश के लोगों को लगे बिना यहां की वैक्सीन दूसरे देशों को क्यों भेजी गई? यह एक बहुत साधारण सा सवाल है जिसे पिछले कई हफ्तों से देश की जनता बार-बार पूछ रही है हजार बार पूछ रही है, और केंद्र सरकार के किसी-किसी स्तर से इसका कोई जवाब भी दिया गया है। अगर उसी सवाल को पोस्टरों की शक्ल में दिल्ली की दीवारों के रास्ते प्रधानमंत्री से पूछा गया है तो इसमें किस लोक सेवक के कौन से आदेश की अवमानना होती है यह बात कानून की हमारी बहुत मामूली समझ में बैठ नहीं रही है। इसके अलावा यह सवाल करना किस तरह महामारी के दौर में लापरवाही बरतना है या संक्रमण फैलाने की आशंका पैदा करना है यह भी हमारे समझ से बिल्कुल परे है। यह तो सवाल ही प्रधानमंत्री से इसलिए किया जा रहा है कि देश के लोग वैक्सीन पाने के लिए बेचैन हैं यह पोस्टर लगाने वाले कहीं भी वैक्सीन के खिलाफ कोई बात नहीं कह रहे, बल्कि वैक्सीन की अपनी चाहत बतला रहे हैं। ऐसे लोगों को तो इस बात को उठाने के लिए सम्मानित करना चाहिए कि वे वैक्सीन की जरूरत साबित कर रहे हैं, लेकिन उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है क्योंकि हिंदुस्तान में आज प्रधानमंत्री से सवाल करना केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाली दिल्ली पुलिस एक जुर्म करार दे रही है। यह सवाल देश के तकरीबन तमाम गैर एनडीए नेता उठा चुके हैं तकरीबन तमाम गैरचापलूस अखबार भी यह सवाल उठा चुके हैं।
ऐसे में इस सवाल को अगर एक जुर्म जाता है और उस दिल्ली में जुर्म माना जाता है जहां पर संसद बेसुध सोई हुई है, लेकिन जहां पर जागी हुई अदालतें केंद्र सरकार से बहुत से सवाल कर रही हैं। टीकों को लेकर भी सवाल कर रही हैं, और टीके लगाने को लेकर सरकार पर जोर भी डाल रही हैं कि इन्हें किस तरह मुफ्त में तमाम लोगों को लगाया जाना चाहिए। ऐसी दिल्ली में जहां पर कि सरकार के पास अदालत में देने के लिए कोई जवाब नहीं है और जहां पर वह अदालत को कहती है कि उसे सरकार के इस काम में दखल नहीं देना चाहिए उसे अपनी सीमा के भीतर रहना चाहिए, वहां पर एक मासूम सा सार्वजनिक सवाल जेल दिलवा रहा है, तो यह लोकतंत्र का एक किस्म से खात्मा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हीं के बहुत से शुभचिंतक, चेतन भगत से लेकर अनुपम खेर तक, सार्वजनिक रूप से यह बात समझा रहे हैं कि आज के हालात सुर्खियों पर काबू पाने या अपनी छवि को सुधारने-चमकाने के नहीं हैं, आज के हालात जिंदगियों को बचाने के हैं, तो ऐसी हालत में भी जिस किसी ने ऐसे मजदूरों की गिरफ्तारी का फैसला लिया है, हमारा यह मानना है कि यह फैसला लेने वाले लोग केंद्र सरकार या नरेंद्र मोदी के शुभचिंतक नहीं हो सकते। नरेंद्र मोदी की और बहुत सी गलतियां हो सकती हैं, बहुत सी खामियां हो सकती हैं, लेकिन क्या वे इतने नासमझ हो सकते हैं कि इन पोस्टरों पर मजदूरों की गिरफ्तारी की तोहमत और बदनामी अपने नाम आज और मढ़वा लें ? यह बात मुमकिन तो नहीं लगती है, लेकिन हम मोदी के ऐसे करीबी लोगों के, करीबी लोगों के, करीबी लोगों के, करीब भी नहीं हैं कि हमसे पूछ सकें कि आज के हालात में क्या सरकार और पुलिस की प्राथमिकता इस मासूम सवाल वाले पोस्टर को चिपकाने वाले गरीब बेरोजगार मजदूरों को गिरफ्तार करना होना चाहिए? आज हिंदुस्तान में सवाल कौन किससे पूछ सकते हैं? फिर यह है कि एक सवाल लिखकर पोस्टकार्ड भेजा गया हो, और पहुंचाने गए हुए डाकिए को गोली मार दी गई हो, उसे क्या कहा जाए?
आज तो जो मजदूर एक दिन की जिंदगी और गुजार लेने के लिए अपनी तरफ से कोई कानूनी मेहनत कर रहे हैं, उनकी ऐसी गिरफ्तारी हमारा ख्याल है कि सुप्रीम कोर्ट में दो मिनट भी खड़ी नहीं हो पाएगी, और जिस दिल्ली में बड़ी-बड़ी अदालतों की भरमार है, इन मजदूरों की तरफ से किसी को एक बड़ी अदालत में जाना चाहिए। अगर यह सिलसिला नहीं रुका तो पोस्टर चिपकाने की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग देख-देखकर ऐसे मजदूरों की गिरफ्तारी में जुटी हुई दिल्ली की पुलिस और कहां तक पहुंचेगी, इसका कोई ठिकाना तो है नहीं। जिस दिल्ली में लाश जलाने को जगह नहीं मिल रही है, जहां अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं मिल रही है, जहां कब्रिस्तान में दफनाने को जगह नहीं मिल रही है, जहां पर इंजेक्शन और दूसरी जीवनरक्षक दवाइयां नहीं मिल रही है, वहां पर ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस के पास वक्त ही वक्त है, वह पोस्टर चिपकाने वाले लोगों तक को पहचानने के लिए उनकी शिनाख्त करने के लिए सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग देखते बैठी है, और फिर उन मजदूरों को ढूंढकर उन्हें पकड़ते गिरफ्तार करते घूम रही है! क्या देश की राजधानी में पुलिस के पास यही आज सबसे महत्वपूर्ण काम रह गया है? और क्या ऐसे सवाल पूछने पर इस देश में क्या गिरफ्तारी के लिए महज मजदूर रह गए हैं? जिन मजदूरों के पास कोई काम नहीं रह गया है, जिनके पास कोई खाना नहीं रह गया है, उन्होंने अगर एक कानूनी काम करने का मजदूरी का जिम्मा लिया, तो उन्हें इस तरह गिरफ्तार किया जा रहा है ! क्या इन पोस्टरों को लगाने से दिल्ली में महामारी का संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ रही है? महामारी अधिनियम के तहत ऐसी गिरफ्तारियां, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लायक हैं ताकि महामारी एक्ट के तहत ऐसी और कार्रवाई ना हो सके और बेकसूर गिरफ्तार न किए जा सकें। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)