ब्रिटेन में अभी 22 बरस की एक कॉलेज छात्रा ने खबरों में जगह बना ली जब उसने इंटरनेट पर अपने कौमार्य की नीलामी लगाई, और उसकी सबसे अधिक बोली लगाकर भारतीय मुद्रा में करीब 18 करोड़ रूपए में एक हॉलीवुड-सेलिब्रिटी ने खरीद लिया। लॉरा नाम की इस लडक़ी ने अपने इस फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि वह अपने भविष्य की आर्थिक सुरक्षा के लिए ऐसा कर रही है। उसका कहना है कि बहुत सारी लड़कियां तो अपना कौमार्य यूं ही खो देती हैं, मैंने कम से कम एक आर्थिक सुरक्षा हासिल की है। खबरों में बताया गया है कि बहुत से धनपति, और नेता भी इस गोपनीय नीलामी में शामिल हुए थे। और खरीददार के लिए लॉरा ने उसके सामने ही डॉक्टरों से अपना कौमार्य परीक्षण कराकर नीलामी की एक शर्त पूरी की। खबर में यह दिलचस्प बात है कि लॉरा एक धार्मिक पृष्ठभूमि से आई हुई लडक़ी है, और उसका कहना है कि उसके लिए यह नैतिक मुद्दा नहीं था, यह आर्थिक आजादी पाने की बात थी।
सोशल मीडिया पर यह बहस चल रही है कि क्या इस तरह कौमार्य को बेचना, और खरीदना नैतिक, जायज, या कानूनी है? जहां तक कानून की बात है तो दुनिया के अलग-अलग देशों में देह बेचने को लेकर अलग-अलग कानून हैं। और अब तो हिन्दुस्तान में भी देह बेचना जुर्म नहीं रह गया है। फिर भी भारत के बहुत से लोग इस नीलामी को अनैतिक मान रहे हैं, जबकि पश्चिम में जहां पर कि ये खरीददार और बेचने वाली लडक़ी रहते हैं, वहां इसमें गैरकानूनी कुछ नहीं है। सच तो यह है कि बहुत मामूली तनख्वाह की नौकरी करने वाली लड़कियों को भी जगह-जगह और लगातार इतना देह शोषण झेलना पड़ता है कि उसके मुकाबले इस तरह एक बार कौमार्य खोने की नौबत बहुत कम नुकसानदेह, और बहुत अधिक फायदे की दिखाई दे रही है। जो आदमी एक बार के देहसंबंध के लिए इतनी मोटी रकम खर्च कर रहा है, वह अपनी और लडक़ी की सेहत की जांच के लिए भी सावधान तो रहेगा ही, जो कि रोजमर्रा की जिंदगी में हर कामकाजी लडक़ी के साथ उसके कामकाज की जगह पर मुमकिन नहीं होता है।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि भारत में तवायफों के कोठों पर नई तवायफ के कौमार्य की नीलामी की बड़ी लंबी परंपरा रही है। इसे नथ उतारना कहा जाता था। कुंवारी लडक़ी के कौमार्य की सबसे अधिक बोली बोलने वाला व्यक्ति उस लडक़ी से पहली बार संबंध बनाता था, और उसके बाद वह लडक़ी कुंवारेपन में जो नथ पहनकर रहती थी, उसे फिर नहीं पहनती थी। एक बार नथ उतराई के बाद वह लडक़ी फिर रोजाना के कामकाज में बाकी ग्राहकों के लिए भी हासिल रहती थी। भारत में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है, और तवायफों की जिंदगी पर लिखी गई कई कहानियों, और उन पर लिखे गए कई उपन्यासों में इसका खुलासे से जिक्र रहते आया है।
ब्रिटेन की इस लडक़ी को कोसने के पहले भारत के कई हिस्सों के गांवों में चलने वाली कुछ परंपराओं के बारे में भी सोचने की जरूरत है। कई गांवों में ऐसी परंपरा रहती थी कि वहां आने वाली कोई भी नई बहू पहली रात गांव के मुखिया के साथ गुजारती थी। ऐसी पहली रात के लिए ऊंची जात के मुखिया को भी नीची जात की दुल्हन से कोई परहेज नहीं रह जाता था। और यह बात सिर्फ किस्से-कहानी में नहीं थी, बहुत सी जगहों पर ऐसा चलता था। कहने में एक बार बुरी लगेगी, लेकिन भारतीय सेना में कुछ बड़े अफसरों पर अभी एक मुकदमा पूरा ही हुआ है जिसमें कुछ बड़े अफसर मातहत अफसरों की बीवियों का देह-शोषण करते थे। यह बात फौजी अदालत में साबित हो चुकी है, और ऐसे बड़े अफसरों को सजा भी सुनाई जा चुकी है।
हिन्दुस्तान के जिन लोगों को कौमार्य की नीलामी बहुत ही अनैतिक बात लग रही है, उन्हें अपने देश की हकीकत जानना चाहिए। स्कूली जिंदगी से ही लड़कियों का देह-शोषण, खिलाड़ी लड़कियों का प्रशिक्षकों के हाथ शोषण, अंतरराष्ट्रीय पहलवान लड़कियों का सांसद-खेल संघ पदाधिकारी के हाथों शोषण, रिसर्च स्कॉलरों का गाईड के हाथों शोषण कोई बहुत अनसुनी बात नहीं है। यह शोषण चलते ही रहता है, और जाने कितनी ही लड़कियां हर दिन इसी तरह कौमार्य खोती हैं। उनकी शिकायतें पुलिस और अदालत में अनसुनी रह जाती हैं, और बलात्कारी उनके परिवार के लोगों को कत्ल कर देते हैं, गवाहों को मार डालते हैं, और जमानत पर छूटकर आकर फिर बलात्कार या कत्ल कर देते हैं।
ऐसे में पश्चिम की एक लडक़ी अगर अपने आपको अपने कौमार्य की अकेली मालकिन मानकर उसका इस्तेमाल कर रही है, तो उसकी हालत भारत जैसे देश की बेबस लड़कियों से तो फिर भी बेहतर लगती है जो कि आसपास के किसी भी खूनी शिकंजे में फंसकर कौमार्य खोने को मजबूर रहती हैं। हिन्दुस्तान जैसे पाखंडी देश में सरकारें और राजनीतिक दल, नेता और अफसर, और समाज के बाकी तमाम किस्म के ठेकेदार वेश्यावृत्ति को कानूनी बनाने के खिलाफ है, क्योंकि इससे उनकी तथाकथित नैतिकता पर चोट लगती है, उनकी इज्जत घटती है। दूसरी तरफ दुनिया के जिन देशों में वेश्यावृत्ति कानूनी है, वहां पर वेश्याओं की हालत हिन्दुस्तान के मुकाबले हजार गुना बेहतर है। उनके अपने कानूनी ठिकाने हैं जहां की वे मालकिन हैं, और ग्राहक अगर बदसलूकी करे, तो ऐसी कामकाजी महिलाओं को बचाने के लिए पुलिस और कानून है। उनकी मेडिकल जांच ठीक से होती है, उनसे उगाही करने वाले नेता, अफसर, और मवाली नहीं रहते हैं, या कि हिन्दुस्तान के मुकाबले कम रहते हैं।
इसी सिलसिले में एक दिलचस्प बात याद पड़ती है कि भारत के रेलवे बोर्ड के एक चेयरमैन करीब 25 बरस पहले सरकारी काम से जर्मनी गए, वहां पर उन्होंने होटल के अपने कमरे में एक कॉलगर्ल को बुला लिया। अगली सुबह उसे भुगतान करना था, और उसमें कुछ मोलभाव का झगड़ा हो गया। उन्होंने बिना भुगतान किए उस लडक़ी को कमरे से निकाल दिया। लडक़ी ने जाकर पुलिस में रिपोर्ट की, जर्मन सरकार ने अपनी वेश्या के हक के लिए भारत सरकार से विरोध दर्ज किया, और भारत सरकार को रेलवे बोर्ड के उस चेयरमैन को हटाना पड़ा था। इसलिए कौमार्य का पाखंड, और उसे लूटने की ताक में लगे हुए देश के मुकाबले अपना कौमार्य नीलाम करती एक लडक़ी अधिक हौसलामंद है क्योंकि वह मर्जी से वह काम कर रही है, और उसका वाजिब से भी अधिक दाम पा रही है। वह हिन्दुस्तान में होती तो उसके आसपास के मालिक, सहकर्मी, शिक्षक-प्रशिक्षक, हर कोई उसे मुफ्त में पाने के लिए अपनी खूनी पंजों के नाखून धार करके बैठे रहते।