अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प किसी कारखाने के दिन में कम से कम दो बार बजने वाले सायरन की तरह कम से कम दो बार दुनिया को चौंकाने वाली मुनादियां कर रहे हैं, और दुनिया भर में उनका असर होते दिख रहा है, कम से कम जो देश ताकतवर हैं वहां ट्रम्प का विरोध भी हो रहा है। अपने पड़ोस में बसे कनाडा को लेकर ट्रम्प शुरू से हमलावर रहे हैं, और वे पूरी तरह असभ्य जुबान में वहां के राष्ट्रपति को एक राज्य का गवर्नर कहते आए हैं, और कनाडा से कहते आए हैं कि वह एक देश बने रहने के बजाय अमरीका का राज्य बन जाए, और उसमें वह अधिक सुखी रहेगा। उन्होंने कनाडा की पेट भर बेइज्जती करने के बाद जिस अंदाज में कनाडा से अमरीका आने वाले सामानों पर अंधाधुंध टैरिफ लगाने की धमकियां दी है, उनका नतीजा हुआ है कि कनाडा में लोग अमरीकी सामानों, और अमरीका जाने का भी बहिष्कार कर रहे हैं। कनाडा के बाजारों में तख्तियां लगी हैं कि अमरीकी सामान न खरीदें, और कनाडा की जनता ऐसा कर भी रही है।
लोग जब कभी जनता के स्तर पर ऐसा आर्थिक बहिष्कार करते हैं, तो उन्हें उसके दाम भी चुकाने पड़ते हैं। उन्हें कुछ सामान महंगे लेने पड़ते हैं, और कुछ सामानों के बिना काम चलाना पड़ता है। मैंने ट्रम्प के रूख को देखते हुए उसके चुनावी नतीजे आने के पहले ही फेसबुक पर लिखा था कि अगर अमरीकी जनता ट्रम्प को राष्ट्रपति बनाती है, तो मैं चार बरस कोई अमरीकी सामान नहीं खरीदूंगा। और अमरीकी जनता ने चार बरस के लिए मेरे सरीखा एक सबसे छोटा ग्राहक खो दिया।
आज जब अमरीका दुनिया के अलग-अलग देशों को, भारत को भी धमकाते हुए, हर देश के साथ बदसलूकी करते हुए उन पर नए-नए टैक्स लाद रहा है, तो इन देशों को भी यह सोचना चाहिए कि वे कौन सी गैरजरूरी अमरीकी चीजों की खपत कर रहे हैं? आज की दुनिया में कुछ अमरीकी चीजों का तो कोई विकल्प नहीं है, लेकिन कई अमरीकी सामान ऐसे हैं कि उनके बिना लोगों का काम चल सकता है। आज भला दुनिया में कौन से ऐसे इंसान हैं जो कोका कोला बिना जिंदा नहीं रह सकते, या अमरीकी चॉकलेट, शराब, या कपड़े-जूते लिए बिना जिनका जीना मुश्किल होगा? आज ट्रम्प एक डॉन के अंदाज में दुनिया की लोकतांत्रिक सरकारों को जिस तरह चाकू-पिस्तौल दिखा रहा है, उनसे उगाही कर रहा है, उसे देखते हुए उन देशों की जनता को भी कनाडा की तरह की जागरूकता दिखानी चाहिए। अपने नागरिकों की ताकत के बिना कोई देश बहुत ताकतवर नहीं रहते। और अगर जनता ही किसी देश और उसके सामानों का, उस देश में सैर-सपाटे पर जाने का बहिष्कार करने लगे, तो राष्ट्रपति के चार बरस का कार्यकाल पूरा होते न होते अमरीकी जनता को यह समझ आ जाएगा कि उसे अपने गलत वोट की कैसी कीमत चुकानी पड़ रही है। अमरीकी टैरिफ के शिकार देशों के लोग अगर ऐसा बहिष्कार करें, और अमरीका के बजाय योरप के किसी पश्चिमी देश में घूमने चले जाएं, अमरीकी सामानों के दूसरे देशों के विकल्प छांट लें, तो चार बरस बाद भी अमरीका की जनता किसी और बेदिमाग, बददिमाग मवाली को चुनने के पहले चार बार सोचेगी।
दिक्कत यह है कि जिन लोगों में लोकतंत्र की समझ कम रहती है, जो दिखावे के राष्ट्रवादी रहते हैं, जिनके लिए धर्म ही सबसे बड़ा फतवा रहता है, उन लोगों के लिए आर्थिक बहिष्कार एक सबसे बड़ा साम्प्रदायिक हथियार रहता है। भारत में ही किसी धर्म के लोग उन्हें नापसंद किसी दूसरे धर्म के लोगों का आर्थिक बहिष्कार करके खुश हो लेते हैं कि उनके पेट पर लात पड़ी। भारत और पाकिस्तान के साम्प्रदायिक लोग एक-दूसरे देश का आर्थिक बहिष्कार करके खुश हो लेते हैं कि दूसरे धर्म की बहुतायत वाले पड़ोसी देश का नुकसान हो गया। ऐसा करते हुए वे यह नहीं देखते कि उनका खुद का भी कितना नुकसान हुआ है।
आज अमरीका में कानूनी-गैरकानूनी रूप से गए हुए, और वहां के नियमों के खिलाफ बने हुए हिन्दुस्तानियों के साथ अमरीका जो सुलूक कर रहा है, उसे लेकर भारत में अमरीकी सामानों का बहिष्कार करने का कोई फतवा अभी तक नहीं गूंजा है। चीन के साथ सरहद पर जरा सा तनाव होता है, तो हिन्दुस्तानी बाजारों से मामूली चीनी सामानों को हटाने के लिए बहिष्कार और आगजनी होने लगते हैं। दूसरी तरफ इस बात को बड़ी हिकमत से छुपा लिया जाता है कि भारत का सबसे बड़ा आयात चीन से होता है, और कच्चे माल का होता है। अगर चीन का आर्थिक बहिष्कार किया जाएगा, तो उसकी सेहत पर तो जरा सा फर्क पड़ेगा, लेकिन भारत के कारखाने ठप्प हो जाएंगे, और भारत की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। भारत के कारखाने अमरीकी कच्चे माल पर उस तरह से नहीं टिके हुए हैं, और भारत के ग्राहक तो कम्प्यूटर सरीखे एक-दो सामानों से परे किसी भी सामान के लिए अमरीका के मोहताज नहीं हैं, दूसरे देशों से उनके पर्याप्त विकल्प मिल रहे हैं।
अभी कुछ महीने पहले तक ट्रम्प के जख्मी होने पर इस हिन्दुस्तान के लोगों ने उसकी तस्वीरों के साथ हवन किए थे, और ट्रम्प की जीत के लिए तो हवन चल ही रहे थे। अब जब ट्रम्प अपने 45 दिनों के कार्यकाल में 45 से अधिक बार हिन्दुस्तान के खिलाफ बोल चुका है, और कार्रवाई कर चुका है, तो कम से कम भारत की जनता को प्रतीकात्मक रूप से ही सही, अमरीका का बहिष्कार करना चाहिए। ट्रम्प में इंसानियत चाहे धेले भर की न हो, उसके भीतर एक बेरहम कारोबारी ठूंस-ठूंसकर भरा हुआ है। जब अमरीकी कारोबार के पेट पर लात पड़ेगी, तो ट्रम्प को तुरंत ही वह जुबान समझ आ जाएगी। भारत की जनता को अपनी सरकार का मुंह देखने की जरूरत नहीं है, इंटरनेट पर मामूली सी सर्च बता देगी कि किस अमरीकी ब्राँड के कौन से गैरअमरीकी विकल्प मौजूद हैं। भारत को ऐसे हर ब्राँड को इस देश में बेरोजगार करना चाहिए। लेकिन ऐसी जागरूकता के लिए एक राजनीतिक और लोकतांत्रिक परिपक्वता भी जरूरी होती है, और हिन्दुस्तानियों के दिल-दिमाग से इसे निचोडक़र आखिरी बूंद तक निकाल फेंका गया है। चेतनाविहीन यह समाज अपने भीतर के लोगों से नफरत के लायक बच गया है, देश के जो आर्थिक दुश्मन हैं, उनके खिलाफ इसकी चेतना जाग नहीं रही है। आज भी अगर ट्रम्प के सिर पर बारिश होने लगेगी, तो हिन्दुस्तान में कई लाख लोग छतरी तान लेंगे। उधर ट्रम्प अगर बीफ खाकर बीमार हो जाएगा, तो हिन्दुस्तान में उसकी दस्त बंद करवाने के लिए हवन होने लगेंगे। आज का यह मौका बताता है कि एक समाज के रूप में हिन्दुस्तानियों की सोच किस हद तक जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)