चीन में दस-बारह बरस पहले एक छह सितारा होटल बनना शुरू हुई, जिसे बाद में बाजार की जरूरतों के हिसाब से एक रिहायशी इमारत में तब्दील कर दिया गया। हॉंगझाऊ के कारोबारी इलाके में यह इमारत अब 20 हजार लोगों के रहने के लायक बन रही है जो कि दुनिया की सबसे बड़ी बस्ती रहेगी। इसमें आगे चलकर 30 हजार लोग तक रह सकेंगे, और इमारत में इतने किस्म की सहूलियतें हैं कि यहां रहने वाले लोग पूरी जिंदगी बाहर निकले बिना रह सकते हैं। इसमें सुपर मार्केट, स्वीमिंग पूल, रेस्त्रां, अस्पताल, और स्कूल-कॉलेज सभी कुछ रहेंगे। इसे अंग्रेजी जुबान में डिस्टोपियन कहा जा रहा है जो कि एक दु:स्वप्न, डरावना, नर्क सरीखा, शोषण करने वाला, तानाशाह, और भी कई किस्म की नकारात्मक बातों से जुड़ा हुआ शब्द है।
अब यह इमारत किस तरह की साबित होती है इस पर तो अभी हमें कुछ पढऩे नहीं मिल रहा है, लेकिन यह सोच अपने आपमें पहली नजर में अटपटी, और दूसरी नजर में भयानक लगती है कि इस दुनिया के एक देश के एक शहर के भीतर एक इमारत में एक पूरी दुनिया ही खड़ी कर दी जाए, जो कि उसके भीतर बसे लोगों को पूरी जिंदगी वहीं पर बने रहना सुझाए। इसे बनाने वाले का तर्क यह भी है कि ऐसी बसाहट की वजह से शहर पर ट्रैफिक का दबाव घटेगा, क्योंकि लोगों का सारा काम इमारत के भीतर हो जाएगा। लेकिन ऐसी जिंदगी से समाज किस तरह का खड़ा होगा यह सोचना भी कुछ भयानक लगता है।
दुनिया में डिस्टोपियन शब्द की मिसाल देने के लिए पहले भी इस तरह की नियंत्रित जिंदगी की इमारतों की कल्पना की गई थी। इनमें लोगों की जिंदगी पर पूरी तरह काबू, जानकारियों पर नियंत्रण, और इसे चलाने वाली सत्ता की तानाशाही की तरह कई कहानियां लिखी गई हैं, कुछ फिल्में भी बनाई गई हैं। एक नजर में देखें तो ऐसी रिहायशी सोच लोगों को मशीनों के पुर्जे की तरह बना देने वाली दिखती है जो कि उसी जगह कमा रहे हैं, खा रहे हैं, और बाहरी दुनिया से जिनका कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह इंतजाम बसाहट की योजना के हिसाब से तो किफायत का लगता है, लेकिन यह समाज को खत्म कर देने की एक सोच भी है। लोग अगर मुर्गीखाने की मुर्गियों की तरह कतार में खड़े रहकर एक ही तरह का दाना खाकर कटने के पहले तक की जिंदगी गुजारने को तैयार हैं, तो यह सस्ती भी पड़ सकती है, वक्त और मेहनत भी बचा सकती है, लेकिन वह सोचने-समझने वाला इंसान नहीं बना सकती, वह एक बक्से में बंद सीमित सोच वाले पुर्जे बना सकती हैं।
लोगों के दिमाग पर कब्जा करने के लिए दिमाग के भीतर घुसना जरूरी नहीं रहता, उन्हें किसी नियंत्रित स्थिति में रखकर भी उनकी सोच को एक सरीखा किया जा सकता है। बहुत से संगठन, राजनीतिक दल, आध्यात्मिक संगठन, और धर्म इस तरह का करते भी हैं कि उनके सदस्यों में सिर बहुत से रहते हैं, लेकिन दिमाग किसी में नहीं रहते। दिमाग सिर्फ एक जगह से सबको मानसिक गुलामों की तरह नियंत्रित करता है, और लोग पुर्जे बनकर रह जाते हैं। जॉर्ज ऑरवेल सरीखे विज्ञान कथा लेखकों ने वक्त के बहुत पहले ऐसे उपन्यास लिखे जो कि बाद के दशकों में सही साबित होते रहे। लोगों की पूरी जिंदगी को नियंत्रित करने के लिए यह एक बहुत बड़ा साधन हो सकता है कि उनकी चौबीसों घंटों की जिंदगी पूरी की पूरी नियंत्रित की जाए। इससे लोगों का रहना, खाना-पीना, कमाना, और गंवाना तो नियंत्रित किया ही जा सकेगा, वे किस तरह के लोगों से मिल सकेंगे, किस तरह का मनोरंजन कर सकेंगे, इसे भी काबू किया जा सकेगा।
अभी तक सरकार और कारोबार लोगों के दिल-दिमाग को प्रभावित करने के लिए, उस पर कब्जे के लिए धर्म और जाति, रंग, नस्ल, और प्रादेशिकता का इस्तेमाल करते आए हैं। लेकिन पूंजीवाद अपनी अपार ताकत के साथ किस तरह लोगों की जिंदगी को गन्ने का रस निकालने वाली मशीन में डालकर उसका अधिक से अधिक रस हासिल कर सकता है, उसकी एक बड़ी मिसाल यह इमारत है जो कि साधारण समझ रखने वाले लोगों को एक बड़ी शानदार और कामयाब योजना लगेगी, और सतह के नीचे इसके खतरे लोगों को आसानी से समझ नहीं आएंगे।
लोगों को पूंजीवाद की साजिशें जल्दी और आसानी से समझ नहीं पड़तीं। पूंजीवाद साबुन को रेशे वाला बनाता है ताकि बदन की चमड़ी रगड़ी जा सके, और वह टॉवेल को नर्म बनाने का लिक्विड अलग से बेचता है, ताकि टॉवेल एकदम नर्म रहे। वह एक तरफ फास्टफूड को बढ़ावा देता है, और फिर उससे होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए बड़े महंगे इलाज मुहैया कराता है। अमिताभ बच्चन सुबह तनिष्क के गहने बेचते हैं, और शाम होते-होते वे सोना गिरवी रखकर कर्ज उठाने की कंपनियों को बढ़ाने लगते हैं। भारत के राज्यों में जहां बिल्डरों के लिए अमीरों की कॉलोनी के ही एक हिस्से में वहां के गरीब कामगारों के लिए भी छोटे-छोटे मकान बनाने की बंदिश लगाई गई थी, वहां इन बिल्डरों ने सरकार के साथ मिलकर गरीबों के मकानों के लिए शहर के बाहर जमीन छांटने, या सरकार को भुगतान कर देने की रियायत पा ली, और कामगारों के पास रहने के मकसद को ही शिकस्त दे दी। इसलिए चीन के इस एक सबसे बड़े अनोखे और अजीब रिहायशी प्रोजेक्ट के खतरों को लोकतंत्र, समाजशास्त्र, और मनोविज्ञान के नजरिए से भी समझना होगा। यह समाज के भीतर मिलीजुली बसाहट को खत्म करने की एक सोच को भी बढ़ा सकता है।